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________________ हले एक प्रश्न। किसी ने पूछा है: लोग अक्सर कहते सुने जाते हैं, जो होता है ठीक ही होता है। इस ठीक का क्या अर्थ हैं? क्या यह सिर्फ एक सांत्वना है मन को समझाने के लिए? क्या यह संभव है कि जो भी होता ठो, सभी ठीक होता हो? कहीं यह वैसा ही तो नहीं है, जैसा ईसप की कथा में लोमड़ी को अंगून नवढे मालूम पड़े, क्योंकि वह उन तक पहुंच नहीं सकी। श्रेष्ठतम नियम भी निकृष्टतम उपयोग में लाए जा सकते हैं। जीवन की परम रहस्य की बातें भी क्षुद्रताओं को छिपाने का कारण बन सकती हैं। ऐसा ही यह सूत्र भी है, और लाओत्से से संबंधित है, इसलिए इस पर विचार करना उचित है। लाओत्से कहेगा, जो होता है ठीक ही होता है। इसलिए नहीं कि यह कोई सांत्वना है, कोई कंसोलेशन है; बल्कि इसलिए कि ऐसी ही लाओत्से की दृष्टि है। लाओत्से कहता है, जो गलत है, वह हो ही कैसे सकता है? और जो भी हो सकता है, वह ठीक है। यहां ठीक से संबंध, जो हो रहा है, उसके संबंध में वक्तव्य नहीं है, बल्कि जो हो रहा है, उसको देखने वाले के संबंध में वक्तव्य है। जब लाओत्से कहता है, जो होता है ठीक होता है, तो वह यह कह रहा है कि अब इस जगत में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो मेरे लिए बुरा हो। यह वक्तव्य, जो होता है, उसके संबंध में नहीं है। यह वक्तव्य साक्षी के संबंध में है, लाओत्से के खुद के संबंध में है। लाओत्से यह कह रहा है कि अब ऐसा कुछ भी नहीं है, जो मेरे लिए बुरा हो सके। मैं उस जगह खड़ा हूं, जहां बुराई नहीं छू सकती है। अब सभी कुछ ठीक है। अब इसलिए सभी कुछ ठीक है कि लाओत्से उस आनंद में है, जिस आनंद को नष्ट करने का अब कोई उपाय नहीं है। आपके लिए सभी कुछ ठीक नहीं हो सकता। आपके लिए वही ठीक होगा, जिससे सुख मिले; और वह गलत होगा, जिससे दुख मिले। जब तक आपको दुख मिल सकता है, तब तक सभी कुछ ठीक नहीं हो सकता। जब तक आप दुखी हो सकते हैं, तब तक सभी कैसे ठीक होगा? छोटा बच्चा आपका पैदा हो प्यारा और मर जाए, कैसे कह सकेंगे कि ठीक हुआ? जिसे प्रेम करते हों और वह न मिल सके, कैसे कह सकेंगे कि ठीक हुआ? जीवन भर, जो आप समझते हैं अच्छा है, करते रहें और परिणाम बुरे हों, कैसे कह सकेंगे कि ठीक हुआ? नहीं कह सकेंगे; क्योंकि आपका सुख कारण-निर्भर है। तो जिन कारणों से सुख सध जाता है, वे ठीक हैं; और जिन कारणों से नहीं सधता, वे ठीक नहीं हैं। जब तक आपको सुख-दुख में फर्क है, तब तक कुछ गैर-ठीक होगा ही। बीमारी को कैसे ठीक कहिएगा? और मौत को कैसे ठीक कहिएगा? 297
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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