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________________ ताओ का द्वार-महिष्णुता व निष्पक्षता लाओत्से की बात समझनी थोड़ी कठिन है। और इसलिए पश्चिम में बहुत नासमझी भी पैदा होती है। लाओत्से जैसे लोगों के विचार जब पश्चिम में पहुंचते हैं, तो उन्हें लगता है, यह तो बहुत इम्मॉरल थिंकिंग है, यह तो बहुत नीतिविहीन चिंतन है। निष्पक्ष? कैसे निष्पक्ष हो सकते हैं हम? जहां इतना संघर्ष है अच्छाई और बुराई में, वहां हम कैसे निष्पक्ष हो सकते हैं? उसका कारण है कि अगर हम परिवर्तन से ही अपने को देखेंगे, तो निष्पक्ष नहीं हो सकते; शाश्वत से देखेंगे, तो निष्पक्ष हो सकते हैं। शाश्वत के तल से देखने पर परिवर्तन का जगत स्वप्नवत हो जाता है। रात एक सपना देखा। देखा कि राम और रावण में बड़ी कलह चल रही है। पूरी रामायण देखी। अगर नैतिक आदमी हैं, तो राम के साथ तादात्म्य बन जाएगा। अगर अनैतिक आदमी हैं, तो रावण के साथ तादात्म्य बन जाएगा। लेकिन सुबह जाग कर देखा, सपना टूट गया, सुबह जाग कर देखा। सुबह जाग कर, उस रात सपने में राम और रावण का जो संघर्ष था, उसमें क्या कोई भी पक्ष जाग कर रह जाएगा? अगर रह जाए, तो समझना अभी नींद खुली नहीं, सपना जारी है। सुबह अगर हंसी आए और पता चले कि सब ठीक था; और सपने में रावण जीते तो और राम जीतें तो कोई अंतर न पड़े और सुबह पूरी बात पर हंसी आ जाए, तो समझना नींद खुल गई, अब आप निष्पक्ष हो गए। लाओत्से जैसे व्यक्ति के लिए परिवर्तन का जगत एक स्वप्न है। स्वप्न से ही जो घिरा है, वह पक्ष करेगा। स्वप्न में ही जो बंधा है, वह पक्षपात करेगा। लेकिन जहां पक्षपात है, वहां असहिष्णुता होगी, अधैर्य होगा, असंतोष होगा, संताप होगा। अगर उठना है आनंद तक, तो अभेद और निष्पक्ष हुए बिना कोई रास्ता नहीं है। 'जो निष्पक्ष हो जाता है, निष्पक्ष होकर वह सम्राट जैसी गरिमा को उपलब्ध होता है। बीइंग इम्पार्शियल ही इज़ किंगली, निष्पक्ष होकर वह सम्राट जैसी गरिमा को उपलब्ध होता है।' सम्राटों की भी गरिमा कुछ नहीं है जैसी गरिमा को वह उपलब्ध होता है जो निष्पक्ष हो जाता है। क्योंकि उसकी आंखों की शांति की फिर कोई कल्पना नहीं, कोई तुलना नहीं हो सकती। क्योंकि उसकी आंख में कहीं कोई पक्ष न रहा, तो आंख ट्रांसपैरेंट हो जाती है, पारदर्शी हो जाती है। जिसका कोई पक्ष न रहा, उसकी गति अकंप हो जाती है। पक्ष के कारण हम झुकते हैं, और हमारा सारा जीवन कंपित होता रहता है। अभी तो वैज्ञानिक कहते हैं कि हमारी शरीर तक की भाषा में पक्षपात होता है। अभी बॉडी लैंग्वेज पर बहुत काम चलता है; बहुत खोज चलती है शरीर की भाषा पर। आप किसी आदमी के पास किस ढंग से खड़े होते हैं, बताया जा सकता है कि आपका पक्ष क्या है; उस आदमी के पक्ष में हैं कि विपरीत हैं। जब आप किसी आदमी के विपरीत में हैं, तो आप हटे हुए खड़े होते हैं; खड़े भी रहते हैं और भीतर से हटे भी रहते हैं-कहीं पास न आ जाएं। जिस आदमी के आप पक्ष में होते हैं, गिरे हुए होते हैं, निकट आ जाएं। स्त्रियां तो बहुत साफ बता देती हैं उनके शरीर की भाषा से। अगर एक स्त्री को किसी से प्रेम है, तो वह गिरने को बिलकुल तैयार है। अगर प्रेम नहीं है, तो वह पीछे दीवार खोज रही है कि कहीं टिक जाए, बच जाए, हट जाए। शरीर-भाषाशास्त्री कहते हैं कि अगर स्त्री का आपसे प्रेम है, तो उसके बैठने का ढंग और होगा; अगर नहीं है, तो और होगा। और एक-एक सिंबल, एक-एक संकेत उसके शरीर से मिलेंगे। शरीर तक, जब आप चलते हैं, उठते हैं, लोगों के बीच घूमते हैं, तो खबर देता है। अगर वेश्यालय पड़ गया, तो आपकी चाल तेज हो जाती है। मंदिर आ गया, तो नमस्कार हो जाता है। अगर वेश्याओं के मुहल्ले से गुजर रहे हैं, तो धड़कन बढ़ जाती है-कहीं कोई देख न ले। आपके पक्ष, आपके विपक्ष पूरे वक्त आपको कंपित किए हुए हैं। लाओत्से कहता है, जो निष्पक्ष हो जाता है, वह सम्राट की गरिमा को उपलब्ध हो जाता है। शायद और कोई बेहतर प्रतीक लाओत्से को नहीं सूझा; क्योंकि सम्राट निष्पक्ष नहीं होते। लेकिन कोई और उपाय नहीं है। इसका मतलब यह हुआ कि सम्राटों के पास भी सम्राटों की गरिमा नहीं होती। 289
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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