SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 297
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ताओ का द्वार-सहिष्णुता व निष्पक्षता फिर भी उपाय थे: माफी मांगी जा सकती थी, पश्चात्ताप किया जा सकता था, व्रत-नियम लिए जा सकते थे। इसने और जिद्द की। इस आदमी ने कहा कि इसमें पाप कुछ है ही नहीं। और वेश्या होगी वह तुम्हारे लिए, मेरे लिए नहीं है। क्योंकि वेश्या एक संबंध है; व्यक्ति नहीं होता कोई वेश्या। कोई औरत वेश्या नहीं होती, न कोई औरत पत्नी होती है। किसी के लिए वेश्या होती है, किसी के लिए पत्नी हो सकती है-वही औरत। क्योंकि वेश्या होना एक संबंध है दो व्यक्तियों के बीच। जीसस ने कहा, मेरे लिए वह वेश्या नहीं है, तुम्हारे लिए रही होगी। तुम मत जाओ। लेकिन यह समझ के बाहर थी बात। इस आदमी को सूली लगानी जरूरी हो गई। जो इसके पीछे चल रहे थे, वे भी सोचते थे कि ऐन वक्त, आखिर में परमात्मा कुछ ऐसा करेगा, चमत्कार दिखाएगा, कि सिद्ध हो जाएगा कि जीसस सही है। शक तो उनको भी होता रहा होगा; क्योंकि वे भी उसी समाज से पैदा हुए थे। उनको भी लगा तो होगा कि लोग ही ठीक कह रहे हैं। लेकिन जीसस का प्रभाव था, जीसस के प्रति प्रेम था, तो पीछे चलते रहे। दस-बारह लोग ही थे। जीसस भलीभांति जानते थे कि ये वक्त पर भाग जाएंगे। और वक्त पर वे सब भाग गए। और जब जीसस की सूली से उनकी लाश उतारी गई, तो वही वेश्या. लाश को उतार रही थी, बाकी सब शिष्य भाग गए थे। निश्चित ही, जीसस के लिए वह वेश्या वेश्या नहीं थी। और उस वेश्या के लिए जीसस सिर्फ एक पुरुष नहीं थे, एक खरीददार नहीं थे। और जब निकटतम शिष्य भाग गए, जो बाद में एपास्टल्स हो गए, जो बाद में बारह महा संत हो गए, वे सब भाग गए थे, तब एक वेश्या ने उन्हें उतारा था। वही आखिर तक खड़ी रही थी उस भीड़ में। कौन भला है, कौन बुरा है, कौन तय करे? कैसे तय करते हैं हम? क्या है क्राइटेरियन? क्या होता है मापदंड तय करने का? एक ही मापदंड होता है सदाः आपकी अपेक्षाओं के लिए जो अनुकूल पड़ता है; आपकी अपेक्षाओं के जो प्रतिकूल पड़ता है। लेकिन अगर किसी व्यक्ति की कोई अपेक्षा ही नहीं है, तो वह निष्पक्ष हो जाता है। जीसस जैसे लोगों की यही मुसीबत है। एक वेश्या ने कहा कि चलें और मेरे घर ठहर जाएं आज रात, तो जीसस की कोई भी तो अपेक्षा नहीं है। आप होते तो सोचते कि कल बदनामी होगी, गांव में खबर हो जाएगी, पत्नी क्या कहेगी, बच्चे क्या कहेंगे, क्या होगा, क्या नहीं होगा, आप हजार बातें सोचते। जीसस बस चल पड़े। बुद्ध के साथ भी ऐसा हुआ। एक दिन एक वेश्या ने आकर सुबह ही निमंत्रण दे दिया भोजन का। उसके ही पीछे रथ पर सवार प्रसेनजित आता है, सम्राट है। और प्रसेनजित आकर कहता है कि मेरे घर पधारें! पर बुद्ध ने कहा, निमंत्रण तो मुझे आपके पहले मिल गया। पर प्रसेनजित ने कहा कि अगर इसकी खबर भी लोगों को हो जाएगी कि आप आम्रपाली वेश्या के घर भोजन करने गए, महा अनर्थ हो जाएगा, प्रतिष्ठा धूल में मिल जाएगी। आप और वेश्या के घर जाएंगे! पर बुद्ध ने कहा, निमंत्रण उसका ही पहले है और हां भी भरी जा चुकी है। और जिन बातों से आप मुझे भयभीत करते हैं, अगर मैं उनसे भयभीत ही होता हूं, तो फिर मैं बुद्ध ही नहीं हूं। अब तो होगी बदनामी, तो अच्छा। इस जगत में बदनामी होगी। लेकिन अगर वेश्या के घर जाने की बदनामी से डर कर प्रसेनजित, तुम्हारी मैं मान लूं, तो अनंत-अनंत काल में जो बुद्ध हुए हैं, वे मुझ पर हंसेंगे। वहां मेरी बड़ी बदनामी हो जाएगी। तो इस बदनामी को हो जाने दो। लाओत्से कहता है, निष्पक्ष हो जाता है वैसा व्यक्ति। जीता है-पक्षों से नहीं, सहजता से। कोई निर्णय नहीं लेता-क्या बुरा है और क्या भला है, क्या होना चाहिए और क्या नहीं होना चाहिए। थोड़ी कठिनाई लगेगी; क्योंकि जिनकी नैतिक बुद्धि है और जो सोचते हैं कि जीवन की जो ऊंची से ऊंची बात है, वह नीति है, उनको बहुत कठिनाई होगी। नीति ऊंची से ऊंची बात उनके लिए है, जिनके जीवन अनैतिक हैं। जैसे 287]
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy