________________
ताओ उपनिषद भाग २
एक झोंका लगे और ताश का घर गिर गया हो, और आप जार-जार रो रहे हों; और तब मैं कहूं कि आप व्यर्थ रो रहे हैं, यह तो बनाते समय ही जानना था कि ताश का घर है और गिरेगा। यह नाव कागज की है और डूबेगी। लेकिन कागज की नाव भी थोड़ी-बहुत देर तो चल सकती है। चलते समय कागज की नाव को कागज का मानना बहुत मुश्किल है। चलना काफी प्रमाण है। डूबते में ही खयाल आता है। इस जगत में सत्य का जो अवतरण है, दुख में आसान है। क्या है अच्छा? क्या है बुरा? यह बेटा अच्छा था, यह बेटा बुरा है। इसमें भी परिवर्तन के जगत में मेरी कोई आकांक्षाओं-अपेक्षाओं का जोड़ है, तो ही।।
लाओत्से कहता है, जो सहिष्णु हो जाता है, वह निष्पक्ष हो जाता है।
निष्पक्ष का अर्थ है कि जब भीतर कोई अपेक्षा न रही, तो बाहर कोई पक्ष न रहा। लाओत्से से अगर कोई कहे कि फलां आदमी को अच्छा बनाओ, फलां आदमी बुरा है, तो लाओत्से कहेगा कि मेरी कोई अपेक्षा नहीं। कौन बुरा है, मुझे पता नहीं चलता; और कौन अच्छा है, मुझे पता नहीं चलता। और क्या करने से कौन अच्छा हो जाएगा, मुझे पता नहीं चलता। और मुझे अच्छा हो जाएगा, तो दूसरे को भी अच्छा होगा, कहना मुश्किल है। दूसरे की अपेक्षाएं हैं।
इस दुनिया में बुरे से बुरा आदमी भी कुछ लोगों के लिए तो अच्छा होता ही है। इस दुनिया में अच्छा से अच्छा आदमी भी कुछ लोगों के लिए तो बुरा होता ही है। इस दुनिया में शत-प्रतिशत अच्छे होने का कोई उपाय नहीं है। शत-प्रतिशत बुरे होने का कोई उपाय नहीं है। अगर जमीन पर आप अकेले ही हों, तो शत-प्रतिशत कुछ भी हो सकते हैं। लेकिन जमीन पर और लोग भी हैं। और उनकी अपेक्षाएं हैं।
तो जीसस दस-बारह लोगों को अच्छा आदमी था, जब सूली लगी तो। बाकी सब को बुरा आदमी था। क्योंकि जो भी अपेक्षाएं थीं, इसने पूरी नहीं की। अच्छे आदमी के लक्षण सदा से जाहिर रहे हैं।
जीसस वेश्या के घर में ठहर गया। अब इससे और ज्यादा बुरे आदमी का क्या लक्षण होगा? तो जिन-जिन के मन में वेश्या के घर जाने की आकांक्षा रही होगी, उन सब को मौका मिला कि इस आदमी पर सारा क्रोध निकाल लिया जाए। जिसको हम अच्छाई से पैदा हुआ क्रोध कहते हैं, उसमें निन्यानबे प्रतिशत तो ईर्ष्या होती है। ये वे ही लोग थे जो वेश्या के घर जाना चाहे होंगे; लेकिन लोग बुरा कहेंगे, इसलिए नहीं जा सके। और यह हद हो गई कि एक आदमी जिसको लोग अच्छा कहते हैं, वह वेश्या के घर में ठहर गया। तो अब दो में से एक ही बात रही। या तो तय हो जाए कि यह आदमी बुरा है, तो इनको शांति मिले; या यही तय हो जाए कि अच्छा आदमी भी वेश्या के घर में जा सकता है, यह स्वीकृत हो जाए, तो भी शांति मिले।
यह दूसरी बात बहुत मुश्किल है। इस दूसरी बात का बड़ा जाल है। इस दूसरी बात का भारी इतिहास है। और जब तक विवाह पवित्र है, तब तक वेश्या अपवित्र रहेगी ही। जब तक विवाह ही न मिट जाए जमीन से, तब तक वेश्या तिरोहित नहीं हो सकती। वह उसकी बाई-प्रोडक्ट है। तो इसकी तो लंबी जटिलता है। यह तो हो नहीं सकता। अब एक ही उपाय है कि जीसस बुरा आदमी करार दे दिया जाए। और यह सबको ठीक लगेगा। पिता भयभीत है कि उसका लड़का वेश्या के घर न चला जाए। पत्नी भयभीत है कि उसका पति कहीं वेश्या के घर न चला जाए। सारा समाज भयभीत है। और वेश्या इसी समाज की उत्पत्ति है। इन्हीं सबने मिल कर वेश्या को निर्मित किया है। और ये सभी भयभीत हैं। और ये सभी वेश्या को सहारा दे रहे हैं।
लेकिन वे अंधेरे में फैले हुए हाथ हैं। जीसस की गलती है तो एक कि वे उजाले में वेश्या के घर चले गए। वही उनकी भूल है। वे फांसी से बच सकते थे, थोड़ी कुशलता चाहिए थी। सभी जाते थे वेश्या के घर-ऐसी कोई अड़चन न थी-जिन्होंने सूली दी थी। लेकिन वे ज्यादा कुशल थे, ज्यादा होशियार थे। वे जानते थे, काम करने का एक ढंग होता है। इस आदमी ने गैर-ढंग से किया।
286