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________________ नीस सौ उनसठ में एक बहुत अनूठी नोबल प्राइज दो अमरीकी वैज्ञानिकों को दी गई। एक का नाम है डाक्टर सेग्रेल और दूसरे का नाम है डाक्टर चैंबरलेन। अनूठी इसलिए कि उन्होंने जो खोज की, वह अब तक की सारी वैज्ञानिक व्यवस्था के प्रतिकूल है। और जिस कारण से उन्हें नोबल पुरस्कार मिला, वह कारण, अब तक के विज्ञान का जो भवन है, उस पूरे भवन को भूमिसात कर देता है। उन्होंने जो बात कही, वह लाओत्से के तो करीब पड़ती है, न्यूटन के करीब नहीं पड़ती। उन्होंने जो खोज की, उससे गीता का मेल बैठ सकता है, मार्क्स का मेल नहीं बैठ सकता। वह खोज है एंटी-प्रोटोन की। इन दोनों वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया है कि जगत में पदार्थ है, मैटर है, तो एंटी-मैटर भी होना जरूरी है। क्योंकि इस जगत में कोई भी चीज बिना विपरीत के नहीं हो सकती है। यहां प्रकाश है, तो अंधकार है। और जन्म है, तो मृत्यु है। अगर पदार्थ है, मैटर है, तो एंटी-मैटर, पदार्थ के प्रतिकूल भी कुछ होना चाहिए। और उन्होंने जो कहा, वह सिर्फ कहा नहीं, उसे सिद्ध कर लिया। उनका कहना है, इस पदार्थ के बीच भी, जहां प्रोटोन काम कर रहा है, जहां पदार्थ के अन्यतम आधारभूत अणु काम कर रहे हैं, वहां एंटी-प्रोटोन, ठीक उनके विपरीत भी एक शक्ति काम कर रही है। वह शक्ति हमें साधारणतः दिखाई नहीं पड़ती और उसका हमें कोई अनुभव नहीं होता। लेकिन इस जगत में कोई भी चीज बिना प्रतिकूल के नहीं हो सकती है। दि अपोजिट इज़ इनएविटेबल। वह जो प्रतिकूल है, वह अनिवार्य है, अपरिहार्य है। उससे बचा नहीं जा सकता। उन प्रतिकूलों से मिल कर ही जगत निर्मित होता है। उसे सेग्रेल और चैंबरलेन ने एंटी-प्रोटोन कहा है, या एंटी-मैटर कहा है। और लाओत्से, कृष्ण, बुद्ध और क्राइस्ट उसे दूसरे नाम देते रहे हैं—आत्मा कहें, शाश्वत नियम कहें, मोक्ष कहें, परमात्मा कहें। एक बात उन सब की समान है कि वह इस संसार के प्रतिकूल है, इस संसार से बिलकुल विपरीत है। और समस्त धर्म की अब तक की खोज यही है कि संसार नहीं हो सकता, अगर इसके प्रतिकूल कोई संसार न हो। बहुत मजे की बात है कि सेग्रेल और चैंबरलेन ने यह भी अनुमान दिया है...। यह तो अभी अनुमान है। जो उन्होंने सिद्ध किया, वह मैंने आपसे कहाः एंटी-मैटर के बिना मैटर नहीं हो सकता। उसके उन्होंने वैज्ञानिक प्रमाण दिए। उस पर ही उन्हें नोबल पुरस्कार मिला है। उनकी एक परिकल्पना भी है, जो कभी सही हो सकती है। क्योंकि वह परिकल्पना भी इसी सिद्धांत पर आधारित है, जो कि सिद्ध हो गया है। उनका कहना है कि जैसे हमारे इस जगत में नियम हैं-जैसे ग्रेविटेशन नीचे की तरफ खींचता है, पानी नीचे की तरफ बहता है, आग ऊपर की तरफ उठती है, प्रोटोन एक खास परिक्रमा में घूमते हैं इन दोनों वैज्ञानिकों का कहना है कि ठीक इस जगत को बैलेंस करने के लिए कहीं एक जगत और होना ही चाहिए, जो इसके बिलकुल 279
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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