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________________ निष्क्रियता, नियति व शाश्वत नियम में वापसी 267 आधार से जुड़ गए। वह सम्राट जुड़ गया प्रशांति के आधार से। जो मेरे भीतर नहीं बीतता है कभी, वही मैं हूं। लेकिन मेरी सब क्रियाएं बीत जाती हैं। मैं कुछ भी करूं, वह बीत जाता है। तो मेरे करने से शाश्वत नियम से कोई जोड़ नहीं है। वरन मेरे न करने की जो अवस्था है, वही शाश्वत से संयुक्त है। "सभी चीजें रूपायित होकर सक्रिय होती हैं । ' सभी चीजें रूप लेती हैं, सक्रिय हो जाती हैं। बादल रूप लेता है, सक्रिय हो जाता है। वृक्ष रूप लेता है, सक्रिय हो जाता है। वासना आपके भीतर रूप लेती है, सक्रिय हो जाती है। ‘सभी चीजें रूपायित होकर सक्रिय होती हैं; लेकिन हम उन्हें विश्रांति में पुनः वापस लौटते भी देखते हैं।' लाओत्से कहता है, सभी कुछ बनता है, निर्मित होता है। फिर हम इन्हें लौटते भी देखते हैं, वापस विश्रांति में गिरते भी देखते हैं। जब सभी बन कर गिर जाता है...। अगर यह दिखाई पड़ना शुरू हो जाए, अगर यह दिखाई पड़ना शुरू हो जाए कि सभी रूप, चाहे वे सुंदर हों या कुरूप, चाहे वे प्रीतिकर हों या अप्रीतिकर, बनते हैं और बिखर जाते हैं; बिखरना अनिवार्य नियम है; बनने का ही हिस्सा है बिखर जाना; जो आज पैदा हुआ है, वह मरने को ही पैदा हुआ है; और जो फूल खिला है, वह गिरने को ही खिला है; वह गिरना, कुम्हलाना, बिखर जाना खिलने का ही दूसरा हिस्सा है; अगर इतना आर-पार दिखाई पड़ना शुरू हो जाए, तो आपके पास धर्म की आंख पैदा हो गई। बुद्ध कहते थे धर्म-चक्षु इसको । वे कहते थे, सब अनित्य है, सब मरणधर्मा है; कुछ भी टिकेगा नहीं, कुछ भी बचेगा नहीं; जिसका भी आदि है, उसका अंत है; इसे जो देख लेता है, उसे धर्म चक्षु उपलब्ध हो जाता है। उसे वह आंख मिल जाती है, जिसको हम धर्म की आंख कहें। कुरान को कोई कंठस्थ कर ले, तो वह आंख नहीं मिलती। और न गीता को कंठस्थ करने से मिलती है। वह आंख मिलती है इस अनुभव से । हमें तो रूप दिखाई पड़ता है। आकाश में एक बादल बना, तो हमें बादल दिखाई पड़ता है, आकाश खो जाता है। जो सदा था और जो अभी भी है और जो आगे भी होगा, वह भूल जाता है; और बादल सब कुछ हो जाता है और जब बादल होता है, तो हम यह भूल ही जाते हैं कि थोड़ी देर में बादल बिखर जाएगा। यह बादल कुछ' भी नहीं है, सिर्फ घनी हो गई भाप है, सिर्फ सघन हो गया धुआं है। यह खो जाएगा। जो व्यक्ति, बादल घिरे हों, तब भी यह देख पाता है; जिस व्यक्ति के लिए, जब बादल घिरे हों, तब भी आकाश स्वच्छ दिखाई पड़ता है, उसे धर्म की आंख उपलब्ध हो गई । सब रूप निर्मित होते हैं, बिखर जाते हैं। लेकिन रूप मन को बड़ा पकड़ लेते हैं । वास्तविक रूपों को तो हम छोड़ दें; अगर एक सुंदर शरीर की तस्वीर भी है, तो लोग उसको भी छाती से लगाए देखे जाते हैं। कागज के टुकड़े पर स्याही की रेखाएं एक रूप बन जाती हैं। लोग उससे भी आंदोलित होते हैं। लोग उससे भी प्रभावित होते हैं। लोग उससे भी जकड़ जाते हैं। तो जो कागज पर खींची गई रेखाओं से आंदोलित हो जाते हैं, वे अगर मांस-मज्जा और हड्डी की रेखाओं से प्रभावित हो जाते हों तो आश्चर्य तो नहीं है। लेकिन जो कागज पर खींची रेखाओं से आंदोलित होते हैं, वे अगर थोड़ा गौर से देख पाएं, तो पीछे कोरा कागज ही दिखाई पड़ेगा। और जो हड्डी-मांस-मज्जा से भी प्रभावित होते हैं, वे भी थोड़ा गहरा देख पाएं, तो उन्हें भी पीछे कोरा आकाश ही दिखाई पड़ेगा। सभी रूप स्याही से खींची गई रेखाओं के ही रूप हैं। सभी रूप - चाहे एक वृक्ष निर्मित हो रहा हो, और चाहे एक व्यक्ति निर्मित हो रहा हो, और चाहे एक सूर्य निर्मित हो रहा हो – सभी रूप... । बुद्ध ने कहा है, सभी चीजें संघात हैं, जोड़ हैं। सभी जोड़ बिखर जाते हैं। बुद्ध की मृत्यु करीब आई है। भिक्षु रो रहे हैं। एक भिक्षु बुद्ध से पूछता है कि अब आपका क्या होगा? आप कहां जाएंगे? किस मोक्ष में ?
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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