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ताओ उपनिषद भाग २
से मैं बच सकूँ। और अब तक मैंने जो भी इंतजाम किए, वे सब व्यर्थ हुए जाते हैं। अब तक उनका भरोसा था बहुत। फौजें थीं, तोपें थीं, महल थे, किले थे; सुरक्षित था। लेकिन अब ये फौजें और ये पत्थर की दीवारें कुछ भी न कर पाएंगी। मौत करीब आई चली जाती है। मुझे कोई ऐसा सूत्र चाहिए कि मौत मुझे भयभीत न करे। यह बुढ़ापा द्वार पर दस्तक देता है; बहुत कंपता है मन।
___मंत्रियों ने कहा, हम सलाह दे सकते थे कि और बड़ा किला कैसे बनाया जाए; हम सलाह दे सकते थे कि फौजें और बड़ी कैसे की जाएं; लेकिन जिस संबंध में आप पूछ रहे हैं, उस संबंध में तो हमें कुछ भी पता नहीं है।
तो सारे राज्य में खबर, खोजबीन की गई। एक बूढ़े फकीर ने आकर कहा कि मैं एक सूत्र दिए देता हूं, जो वक्त पर काम पड़े। लेकिन जब तक वक्त न आ जाए, तब तक इसे खोल कर देखना मत। वक्त! जब तुम्हें ऐसा लगे कि सब उपाय व्यर्थ हो गए, तुम जो भी कर सकते थे, अब किसी काम का न रहा। जब तक तुम कर सको, तब तक तुम कर लेना। जब तुम पाओ कि तुम्हारी करने की क्षमता चुक गई, अब तुम कुछ भी न कर पाओगे, तभी इस सूत्र को देखना। उसने एक ताबीज में बंद करके वह सूत्र दे दिया।
सम्राट ने वह ताबीज अपनी बांह पर बांध लिया। कई मौके आए, जब मन हुआ कि खोल कर ताबीज देख ले लेकिन तभी उसे पता चला कि अभी तो मैं कुछ कर सकता हूं।
वर्षों बीत गए। फिर दुश्मन का हमला हुआ और वह राज्य हार गया। और हारा हुआ घोड़े पर भागा जा रहा है, दुश्मन उसके पीछे हैं। तब अचानक उसे ताबीज का खयाल आया। पर उसे लगा, अभी तो मैं कुछ कर ही सकता हूं। अभी दुश्मन दूर हैं, तेज घोड़ा मेरे पास है, अभी मैं इन सीमाओं के बाहर निकल ही जा सकता हूं। वह भागता रहा। लेकिन अचानक एक ऐसे मोड़ पर पहुंचा पहाड़ के कि आगे रास्ता समाप्त था और गड्ड आ गया। पीछे लौटने का कोई उपाय न रहा, पीछे दुश्मन हैं। उनके घोड़ों की टाप प्रतिपल बढ़ती चली जाती है। और आगे खड्ड है, और आगे जाया नहीं जा सकता। और रास्ता बस एक छोटी पगडंडी है। आखिरी घोड़े की टाप मालूम पड़ने लगी कि बस अब छाती पर ही पड़ रही है, सिर पर ही पड़ रही है, तब उसने तोड़ कर ताबीज पढ़ा। उसमें एक छोटा सा वाक्य लिखा था। लिखा था ः यह भी बीत जाएगा, दिस टू विल पास। और कुछ भी न था। कोई उपाय भी न था करने का। ताबीज हाथ में लिए वह खड़ा रहा। बुद्धि कुछ साथ न देती मालूम पड़ी। यह भी फकीर ने क्या धोखा दिया! सोचता था, कोई मंत्र होगा, कोई जादू होगा, कोई चमत्कार की ताकत होगी कि कुछ भी कर लूंगा। इसमें कुछ भी न था; एक कागज के छोटे से टुकड़े पर लिखा था ः यह भी बीत जाएगा।
खड़ा रहा शांत। घोड़ों की टापों की आवाजें बढ़ती गईं, बढ़ती गईं, बढ़ती गईं और फिर धीमी पड़ने लगीं। उन्होंने कोई दूसरा रास्ता पकड़ लिया था। फिर घोड़े दूर निकल गए। फिर उसने ताबीज को वापस बांध लिया। वापस उसकी फौजें जीत गईं। वह अपने राज्य में लौट आया।
लेकिन तब से वह हर घड़ी ताबीज को खोल कर और पढ़ने लगा। हर घड़ी! किसी ने उसे गाली दे दी है, अपमान कर दिया है, और वह कागज को पढ़ लेता और मुस्कुराता और ताबीज को बंद कर लेता। उस दिन से उसे किसी ने चिंतित नहीं देखा। उस दिन से उसे किसी ने दुखी नहीं पाया। उस दिन से किसी ने उसे क्रोधी नहीं पाया। उस दिन से मौत, जीवन, कोई चिंता उसकी न रह गई। उसके मंत्री उसके आस-पास घूमते थे कि कभी उसके कागज में झांक लें-क्या है मंत्र! आदमी बिलकुल ही बदल गया। क्या है जादू उस मंत्र में? बस एक छोटा सा सूत्र था : यह भी बीत जाएगा।
अगर ठीक से समझें, तो जो भी बीत जाता है, वह आपके भीतर बादल है। और जो नहीं बीतता, वही आप हैं। जो भी आता है और बीत जाता है, वह आप नहीं हैं। इस बात की स्मृति गहरी हो जाए, तो आप प्रशांति के
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