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ताओ उपनिषद भाग २
वृक्ष जन्मा, मिट्टी उठी आकाश की तरफ। मिट्टी वृक्ष के पत्ते बनी। मिट्टी ने वृक्ष में फूल खिलाए। फिर फूल गिर गए, पत्ते गिर गए, वृक्ष गिर गया। मिट्टी वापस मिट्टी में मिल गई। क्या वृक्ष में ऐसा भी कुछ था जो आकाश जैसा था? यह तो बादल जैसा हुआ-वृक्ष का होना, पत्तों का फैलना, सक्रियता। यह तो बादलों जैसा था। वृक्ष में क्या कुछ ऐसा भी था जो आकाश जैसा था? जो तब भी था जब बीज अंकुरित न हुआ और तब भी है जब वृक्ष वापस मिट्टी में खो गया?
एक आदमी जन्मा; यह एक बादल का जन्म है। उमड़ेगा, घुमड़ेगा, युवा होगा, वासनाएं पकड़ेंगी, दौड़ आएगी, जीवन एक गहन सक्रियता बन जाएगी : चिंता और तनाव और बेचैनी, सफलताएं और असफलताएं। और एक लंबी कथा होगी। और फिर सब मिट्टी में गिर जाएगा। उमर खय्याम ने कहा है : डस्ट अनटू डस्ट। और फिर मिट्टी वापस मिट्टी में गिर जाएगी। क्या इस आदमी में बादल ही बादल थे या आकाश जैसा भी कुछ था? ये वासनाएं तो बादल हैं। और कभी बहुत भरी होती हैं। एक जवान आदमी को देखें; वह पानी से भरा हुआ बादल है। एक बूढ़े आदमी को देखें; वर्षा हो गई, बादल रिक्त हो गया है। जो भरा था, वह बिखर गया। एक बूढ़ा आदमी सूख गया बादल है। लेकिन क्या इस आदमी की वासनाओं, क्रियाओं, इसकी दौड़, इसकी उपलब्धियों, इन सबके पीछे कुछ आकाश भी है या नहीं?
अगर कोई आकाश पीछे नहीं है, तो कोई आत्मा नहीं है। और अगर पीछे कोई आकाश है, तो ही आत्मा है। जो मानते हैं मनुष्य के भीतर कोई आत्मा नहीं है, वे कह रहे हैं कि बादल तो उठते हैं, लेकिन आकाश नहीं है। लेकिन आकाश के बिना बादल उठ भी नहीं सकते। आकाश तो हो सकता है बादलों के बिना, लेकिन बादल आकाश के बिना नहीं हो सकते। या कि हो सकते हैं? आकाश के होने में कोई भी अड़चन नहीं है। बादल न हों, तो आकाश के होने में जरा भी कमी नहीं पड़ती। न होने से आकाश में कुछ बढ़ती होती है, न न होने से कुछ घटता है। आकाश होता है बादलों के बिना भी। बादल एक दुर्घटना है; या कहें, एक घटना है; आकाश एक अस्तित्व है। बादल सांयोगिक हैं, एक्सीडेंटल हैं, किन्हीं कारणों पर निर्भर हैं।
इसे थोड़ा समझें। आकाश में बादल बनते हैं, तो किन्हीं कारणों पर निर्भर हैं-संयोगात्मक हैं। सूरज निकलेगा, पानी भाप बनेगा, आकाश की तरफ उठेगा, तो बादल बनेंगे। अगर सूरज ठंडा हो जाए, धूप न पड़े, पानी उबले नहीं, तो बादल नहीं बनेंगे। सूरज तपता रहे, आग बरसाता रहे, पानी न हो, तो बादल नहीं बनेंगे। आकाश अकारण है। सूरज हो या न हो, पानी हो या न हो, बादल बनें या न बनें, चांद-तारे रहें या न रहें, पृथ्वी बचे या न बचे, आदमी हो या न हो, आकाश अकारण है, अनकंडीशनल है। उसके होने में कुछ भी अंतर न पड़ेगा।
इसका अर्थ हुआ कि जिन चीजों का भी कारण होता है, वे चीजें बादलों की तरह होती हैं; और जिनका कोई कारण नहीं होता, अकारण, वे चीजें आकाश की तरह होती हैं। आप पैदा हुए, तो आपके पैदा होने में दो हिस्से हैं। एक बादल जैसा। आपके माता-पिता न होते, तो आपको यह शरीर नहीं मिल सकता था। हजार-हजार कारण हैं, जिनसे आपको यह शरीर मिला। लेकिन आप कारण में ही समाप्त अगर हो जाएं, तो फिर आप नहीं हैं, आपके भीतर कोई आकाश नहीं है। आपके माता-पिता भी न होते, आपका शरीर भी न होता, तो भी आप होते, तो ही आपके भीतर आत्मा है। अन्यथा आत्मा का कोई अर्थ नहीं रह जाता।
लाओत्से कहता है, हमारे सबके भीतर बादल भी हैं और आकाश भी है। और जैसे बादल नहीं हो सकते आकाश के बिना, आपकी वासनाएं भी नहीं हो सकतीं आत्मा के बिना। जैसे आकाश चाहिए बादलों को तैरने के लिए, वैसे ही आत्मा भी चाहिए वासनाओं को तैरने के लिए। आत्मा हो सकती है बिना वासनाओं की; वासनाएं नहीं हो सकतीं बिना आत्मा के।
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