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________________ भी आकाश खाली है। जल्दी ही बादलों से भर जाएगा। बादल आएंगे; घने होंगे, वर्षा करेंगे और फिर समाप्त हो जाएंगे। आकाश फिर भी वैसा ही बना रहेगा। आकाश एक निष्क्रियता है, पैसिविटी। बादल एक सक्रियता है, एक्टिविटी। बादल बनते हैं, मिटते हैं; आकाश बनता भी नहीं, मिटता भी नहीं। बादल कभी होते हैं, कभी नहीं होते। आकाश सदा होता है। बादलों का अस्तित्व जन्म और मृत्यु के बीच में है। आकाश के अस्तित्व के लिए न कोई जन्म है, न कोई मृत्यु है। आकाश समय के बाहर है। बादल समय के भीतर बनते हैं और बिखर जाते हैं। आकाश शाश्वत है। इस सूत्र का नाम है : शाश्वत नियम का ज्ञान-नोइंग दि इटरनल लॉ। जहां भी सक्रियता है, वहां शाश्वतता नहीं होगी। क्योंकि क्रिया को तो विश्राम में जाना ही पड़ेगा। कोई भी क्रिया, कोई भी एक्टिविटी शाश्वत, सदा नहीं हो सकती। थकेगी; और विश्राम में लीन होना पड़ेगा। सिर्फ निष्क्रियता शाश्वत हो सकती है। इस सूत्र को समझ लेना बहुत जरूरी है। धर्मों ने कहा है, ईश्वर स्रष्टा है, गॉड इज़ दि क्रिएटर। लाओत्से राजी नहीं है। लाओत्से कहता है, सृजन तो एक क्रिया है। और अगर ईश्वर स्रष्टा है, तो कभी तो थक ही जाएगी क्रिया। और हर करने से विश्राम लेना ही होता है। करने का अंतिम परिणाम सदा न करना है। तो अगर ईश्वर स्रष्टा है, अगर सृजन ही उसका स्वरूप है, तो ईश्वर शाश्वत नहीं हो सकता। शाश्वत तो सिर्फ आत्यंतिक निष्क्रियता ही हो सकती है। अगर आकाश भी बनता हो, सक्रिय होता हो, आकाश भी अगर कुछ करता हो, तो बादलों की तरह ही कभी न कभी विलीन हो जाएगा। आकाश कुछ भी नहीं करता। बादल कुछ करते हैं। करते हैं, तो रिक्त हो जाते हैं। अभी वर्षा से भरे आएंगे, उमड़ेंगे, घुमड़ेंगे; शोरगुल होगा, बड़ी गति होगी, बिजलियां चमकेंगी। फिर पानी झर जाएगा, बादल रिक्त हो जाएंगे, खो जाएंगे। सभी क्रिया रिक्त हो जाती है। हो ही जाएगी। क्योंकि सभी क्रियाएं प्रारंभ होती हैं। और जो भी प्रारंभ होता है, वह अंत भी होगा। जो प्रारंभ नहीं होता, वही अंत से बच सकता है। लाओत्से का ईश्वर निष्क्रियता है। इसलिए लाओत्से उसे ईश्वर भी नहीं कहता। वह उसे शाश्वत नियम कहता है-ताओ। जीवन के बहुत पहलुओं में हम इसे देखें, तो फिर स्वयं के भीतर भी देखना आसान हो जाएगा। और तब लाओत्से की साधना हमारे खयाल में आ जाएगी-वह क्या चाहता है और कैसे आदमी उस परम शाश्वतता को उपलब्ध हो सकता है। एक बीज हम बो देते हैं; वृक्ष जन्म जाता है। शाखाएं-प्रशाखाएं फैलती हैं; फूल खिलते हैं। और फिर एक दिन वह वृक्ष उसी मिट्टी में वापस गिर कर खो जाता है। एक व्यक्ति पैदा होता है। और फिर एक दिन हम उसे कब्र में सुला कर वापस मिट्टी में मिल जाने देते हैं। सुबह आप जागते हैं। सांझ थक जाते हैं और नींद में खो जाते हैं। जन्म भी एक जागना है और मृत्यु भी एक सांझ है। फिर वापस हम वहीं गिर जाते हैं, जहां से हम आते हैं। लेकिन क्या हमारे भीतर भी ऐसा कुछ है, जैसा बादलों के साथ आकाश है? 261
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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