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ताओ उपनिषद भाग २
कैसे बचूं? वह सुबह को गंवा देता है सांझ से बचने में। और जब सांझ आ जाती है, तो सांझ का दुख भोगता है। और सुबह का सुख कभी नहीं भोग पाता, क्योंकि सांझ तो मौजूद हो जाती है सुबह के साथ।
जो आदमी बहुत शांति चाहने की कोशिश में लगता है, जब शांति होती है, तब वह डरा और भयभीत और चिंतित और घबड़ाया रहता है कि अब टूटी, अब टूटी। अशांति आती ही है। जब अशांति आती है, तब वह शांति चाहता रहता है। और जब शांति आती है, तब वह अशांति से भयभीत प्रतीक्षा करता रहता है : अब आई, अब आई, अब आई। समता असंभव हो जाती है।
समता कीमती शब्द है। समता का अर्थ है: अशांति है, तो वह जानता है कि अशांति है; और शांति है, तो वह जानता है कि शांति है। समता का अर्थ है: वह अशांति को भी झेलता है शांतिपूर्वक। अशांति को भी झेलता है शांतिपूर्वक, क्योंकि वह जानता है, जीवन का नियम है, सुबह होती है, सांझ होती है। शांति को भी गुजारता है शांतिपूर्वक; अशांति को भी झेलता है शांतिपूर्वक। इस स्थिति का नाम समता है। समता का अर्थ है, न अब अशांति छुती उसे, और न अब शांति छूती उसे। न तो अब वह चाहता है कि अशांति न हो और न चाहता है कि शांति हो। अब वह कुछ भी नहीं चाहता। अब वह देखता रहता है। एक साक्षी! जो होता है, देखता रहता है।
इस साक्षी-भाव में समता घटित होती है। वह समता स्थिर है; क्योंकि अशांति उसे मिटा नहीं सकती और शांति उसे ज्यादा नहीं करती। वह दोनों के बीच स्थिर है। ऐसी समता हो, तो स्थायी हो सकती है। शांति स्थायी नहीं हो सकती; अशांति भी स्थायी नहीं हो सकती। क्योंकि शांति और अशांति एक ही बड़ी घटना के दो हिस्से हैं। समता स्थिर हो सकती है। समता शाश्वत हो सकती है, सदा हो सकती है।
पांचवां प्रश्न : आपने कहा कि जो लोग ताओ को प्राप्त होते हैं, वे जीवन को प्रतिपल एक खतरे की तरह देखते हैं और गंभीर हो जाते हैं। ऐसे लोग अतिथि की तरह हो जाते हैं, ऐसा उनका स्वभाव हो जाता है। दूसरी तरफ जब आप कृष्ण की बात करते हैं, तो कहते हैं कि जीवन उनके लिए खेल है, वे हंसते हुए जीवन को पार कर जाते हैं, जो वे करते हैं, वह नृत्य है, मजा है। साथ ही आप कहते हैं, संतों के आचरण की भिन्नता होगी ही। आचरण की भिन्नता की बात तो समझ में आती है, किंतु लाओत्से और कृष्ण के इस स्वभाव की भिन्नता समझ में नहीं आती। कृपया समझाएं।
स्वभाव कृष्ण का आपकी समझ में कभी नहीं आएगा। स्वभाव लाओत्से का आपकी समझ में कभी नहीं आएगा। कृष्ण का स्वभाव कृष्ण की समझ में आता है। लाओत्से का स्वभाव लाओत्से की समझ में आता है। आपको अपना स्वभाव समझ में आएगा। स्वभाव का मतलब ही यही होता है।
जो हमें दूसरे का समझ में आता है, वह आचरण है। दूसरे का आचरण ही दिखाई पड़ता है। स्वभाव कैसे दिखाई पड़ेगा? कृष्ण क्या करते हैं, वह दिखाई पड़ता है। कृष्ण क्या हैं, वह कैसे दिखाई पड़ेगा? बुद्ध क्या करते हैं, वह दिखाई पड़ता है। क्या बोलते हैं, वह सुनाई पड़ता है। क्या हैं, वह कैसे दिखाई पड़ेगा? स्वभाव का अर्थ है, जो अप्रकट भीतर छिपा है। वह आपको नहीं दिखाई पड़ेगा। आपको तो आचरण ही दिखाई पड़ेंगे।
अगर बुद्ध शांत बैठे हैं और कृष्ण बांसुरी बजा रहे हैं। तो आपको दिखाई पड़ता है कि कृष्ण बड़े मजे में हैं; क्योंकि बांसुरी बजा रहे हैं। मजा बांसुरी बजने के कारण आप अनुमान कर रहे हैं। बुद्ध मजे में नहीं होंगे, क्योंकि आंख बंद करके बैठे हैं, बांसुरी नहीं बजा रहे हैं। लेकिन स्वभाव आपको दिखाई नहीं पड़ सकता। बुद्ध और कृष्ण एक ही स्वभाव में हैं। लेकिन वह स्वभाव बुद्ध अपने ढंग से प्रकट करेंगे। प्रकटीकरण व्यक्तित्व की बात है।
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