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तटस्थ प्रतीक्षा, अस्मिता-विसर्जन व अनेकता में एकता
पकड़ में आ गई, तो आप अभागे हैं, मुश्किल में पड़ेंगे। क्योंकि अभी यात्रा करनी थी वहां तक; अब वह यात्रा भी नहीं होगी। सब ठीक हैं, लेकिन उसके लिए जो पहुंच गया केंद्र पर और उसने केंद्र पर खड़े होकर देखा कि सभी रास्ते चले आ रहे हैं यहीं। लेकिन जो अभी परिधि पर खड़ा है और एक रास्ते पर भी नहीं चला है, वह कहता है सब रास्ते ठीक हैं, वह चलने के लिए अपने हाथ से अपने पैर काटे डाल रहा है। वह चल नहीं पाएगा। . इसलिए कई दफे बड़ी मजेदार घटनाएं घटती हैं। सभी धर्मों ने कहा है कि बाकी सब धर्म गलत हैं। सभी धर्मों ने कहा है। और बड़ा कीमती है उनका वक्तव्य-खतरनाक भी। सभी कीमती चीजें खतरनाक होती हैं। सिर्फ गैर-कीमती चीजें खतरनाक नहीं होती। जितना महत्वपूर्ण सत्य हो, उतना ही खतरनाक भी होता है। क्योंकि अगर उसमें जरा भी भूल-चूक हुई, तो खतरा हो जाएगा। सभी धर्मों ने कहा है कि यही धर्म सत्य है। यह खतरनाक वक्तव्य है, बहुत शक्तिशाली वक्तव्य है।
खतरनाक है, अगर आपने इसका मतलब लिया कि दुनिया में मेरे अलावा कोई भी सत्य नहीं। अगर इतना ही मतलब लिया, तो बहुत खतरनाक है। इसका मतलब कुछ और था। इसका मतलब यह था कि जिसे चलना है, उसके लिए एक ही सत्य हो, तो ही चल सकता है। और धर्मों ने फिक्र नहीं की परम सत्य की घोषणा की। क्योंकि जब कोई पहुंच जाएगा, तो वह खुद ही पता चल जाएगा। उसकी जल्दी नहीं है।
हम सब के पास बहुत अबॉर्टिव माइंड हैं; गर्भपात हो गया जिन मस्तिष्कों का, ऐसे मस्तिष्क हैं हमारे पास। पूरा हो नहीं पाता कुछ भी और वक्तव्य हमारे भीतर घने हो जाते हैं। चल नहीं पाते और मंजिल की भाषा पकड़ जाती है। लाओत्से ठीक है और मंसूर भी। लेकिन यह उस दिन पता चलेगा, जब आप पहुंचेंगे। अभी जल्दी न करें। अभी आपको जो ठीक लगे, उसको ठीक मान लें। और जो गलत लगे, उसे बिलकुल गलत मान लें। लेकिन ठीक मान कर अगर बैठना हो, तो इसका कोई प्रयोजन नहीं है। ठीक मानने का एक ही अर्थ होना चाहिए कि मुझे चलना है।
लोग समझते हैं कि दुनिया में हिंदू, मुसलमान, ईसाई, जैन, बौद्ध के बीच वैमनस्य कम हो रहा है। दुनिया अच्छी हो रही है। मामला ऐसा नहीं है। वैमनस्य इसलिए कम नहीं हो रहा है कि दुनिया अच्छी हो रही है, वैमनस्य इसलिए कम हो रहा है कि अब किसी को भी किसी धर्म पर नहीं चलना है। झगड़े की भी क्या जरूरत है? वैमनस्य इसलिए कम नहीं हो रहा है कि लोग बड़े उदार और भले हो गए हैं। वैमनस्य इसलिए कम हो रहा है कि धर्म की अब उपेक्षा की जा सकती है। वह इतना महत्वपूर्ण ही नहीं है कि उस पर झगड़ा किया जाए। उस पर झगड़ा करने का भी मन नहीं रहा।
अगर कोई आज आदमी कह देता है ईश्वर नहीं है, तो कोई झगड़ा करने का भी मन नहीं होता। ठीक है, नहीं होगा। यह कुछ उदारता बढ़ गई है, ऐसा नहीं है। उपेक्षा बढ़ गई है। उपेक्षा है, कोई मतलब नहीं है, ठीक है। अगर आज कोई कहता है कि गीता और कुरान में एक ही बात लिखी है, तो हम कहते हैं कि होगी। इसका यह मतलब नहीं है कि हमको पता है कि एक ही बात लिखी है। इसलिए कि बेमानी है, क्यों व्यर्थ समय खराब करते हो! होगी, मान लिया, ज्यादा बातचीत न चलाओ।
एक मित्र ने मुझे किताब भेजी है। उन्होंने गीता और बाइबिल दोनों में एक ही संदेश है, इसके लिए बड़ी खोजबीन की है। मैं उनकी पूरी किताब देख गया। खोजबीन बिलकुल बेकार है। कहीं भी कोई तालमेल वे बिठा नहीं पाए। एक वक्तव्य से भी दूसरे वक्तव्य का कोई मेल नहीं है। लेकिन राधाकृष्णन से लेकर विनोबा तक सबने सम्मतियां दी हैं उनको कि आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। उनकी सम्मतियां देख कर मुझे लगा कि उनमें से किसी ने भी वह किताब नहीं पढ़ी है। सिर्फ यह देख कर कि गीता और बाइबिल को समतल बनाने की कोशिश की है, काम अच्छा है, सब ने सम्मतियां दी हैं। क्योंकि एक भी वक्तव्य का कोई मेल नहीं है।
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