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________________ ताओ उपनिषद भाग २ तो बुद्ध के जीवन की एक घटना कहूं, उससे यह खयाल में आ जाए। बुद्ध के पास एक राजकुमार दीक्षित हुआ, श्रोण। भोगी था बहुत। फिर त्यागी हो गया बहुत। क्योंकि आदत बहुत की थी। इससे कोई अंतर न पड़ता था कि बहुत क्या था। बहुत भोगी था। छोड़ दिया भोग, बहुत त्यागी हो गया। कहते हैं, कभी खाली पैर जमीन पर न चला था। राह से गुजरता था, तो मखमल पहले बिछाई जाती, तब वह गुजरता था। फिर दीक्षित हुआ, साधु हो गया बुद्ध का। तो भिक्षु पगडंडी पर चलते थे, तो वह कंटकित, कांटे से भरे मार्ग पर चलता था। भिक्षु देख कर चलते थे कि रास्ते पर कांटे न हों; वह देख कर चलता था कि कांटे जरूर हों। पैर उसके घावों से भर गए। भिक्षु छाया में बैठते, तो वह धूप में बैठता। भिक्षु एक दिन में एक बार खाते, तो वह दो दिन में एक बार खाता। बहुत! यह मजा है। भोग मन छोड़ सकता है, त्याग पकड़ सकता है। लेकिन अति नहीं छोड़ सकता। मन अति में जीता है। मन को अति चाहिए। छह महीने में, उसकी बड़ी सुंदर काया थी, सोने जैसा उसका शरीर था, वह सब काला पड़ गया। सारे शरीर पर फफोले हो गए। सारा शरीर जल गया। बुद्ध को अनेक बार और-और भिक्षुओं ने आकर कहा, श्रोण महा तपस्वी है! हम तो उसके सामने कुछ भी नहीं हैं। बुद्ध हंसते और वे कहते कि तुम्हें पता नहीं, वह महा भोगी रहा, महा तपस्वी होना उसे आसान है। छह महीने तक बुद्ध ने कुछ भी न कहा। श्रोण अपने को गलाता चला गया, सुखाता चला गया। फिर एक सांझ बुद्ध उसके पास गए। और बुद्ध ने कहा कि श्रोण, मैं कुछ पूछने आया हूं, कुछ बात, जिसकी मुझे कम जानकारी है, लेकिन तुम्हें है, उस संबंध में कुछ जानने आया हूं। श्रोण चकित हुआ और उसने कहा कि आप और मुझसे जानने आए हैं! क्या? तो बुद्ध ने कहा, मैंने सुना है कि जब तुम राजकुमार थे, तो तुम बड़े कुशल वीणावादक थे। मैं तुमसे यह पूछने आया हूं कि वीणा के तार अगर बहुत कसे हों, तो संगीत पैदा होता है या नहीं? तो श्रोण ने कहा, तार बहुत कसे हों, तो टूट जाएंगे; संगीत पैदा नहीं होगा। टूट कर सिर्फ बिखरा हुआ विसंगीत पैदा होगा; संगीत पैदा नहीं होगा। तार टूट जाएंगे। बुद्ध ने कहा, तो श्रोण, तार अगर बिलकुल ढीले हों, तो संगीत पैदा होता या नहीं? तो श्रोण ने कहा, आप भी कैसी बातें पूछते हैं! तार ढीले हों, तो चोट ही नहीं पड़ सकती; संगीत कैसे पैदा होगा? तो बुद्ध ने कहा, संगीत कब पैदा होता है? तो श्रोण ने कहा कि तारों की एक ऐसी भी अवस्था है, जब न तो हम कह सकते कि वे कसे हैं और न कह सकते कि ढीले हैं। तार एक ऐसी समता में भी खड़े हो जाते हैं जब न कसे होते हैं और न ढीले होते हैं; तभी संगीत पैदा होता है। तो बुद्ध ने कहा कि मैं तुमसे यही कहने आया हूं कि जो वीणा में संगीत के पैदा होने का नियम है, वही जीवन में भी संगीत के पैदा होने का नियम है। न तो जीवन के तार ढीले हों भोग की तरफ, तो भी संगीत पैदा नहीं होता। और जीवन के तार विपरीत कस जाएं त्याग की तरफ, तो भी संगीत पैदा नहीं होता। जीवन के तारों की भी एक ऐसी अवस्था है श्रोण, जब तार न ढीले होते और न कसे। एक ऐसा क्षण भी है चेतना का, जब न भोग होता और न त्याग; जब न आदमी इस अति में होता और न उस अति में, बीच में ठहर जाता है; तभी जीवन का परम संगीत पैदा होता है। उस परम संगीत का नाम ही समाधि है। तो तूने जो वीणा के साथ सीखा, जीवन के साथ भी कर। देखता हूं कि पहले तेरे तार बहुत ढीले थे, तब संगीत पैदा नहीं हुआ। अब पागल की तरह तार तूने इतने कस लिए हैं कि अब भी संगीत पैदा नहीं हो रहा है। 238
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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