________________
ताओ उपनिषद भाग २
इसलिए लाओत्से कहता है, रहस्य को समझो। हू कैन मेनटेन हिज काम फॉर लांग? लंबे समय तक कौन रह सकेगा शांत? कौन रह सकेगा समता में? बाई एक्टिविटी! उलटी बात कहते हैं।
मेरे साथ एक प्रोफेसर लाओत्से की इस किताब का, ताओ तेह किंग का अध्ययन करते थे। एक दिन उन्होंने मुझे आकर कहा कि मालूम होता है कुछ गलत छप गया है। उन्होंने कहा कि मालूम होता है बाई इन-एक्टिविटी होना चाहिए था, बाई एक्टिविटी छप गया है। उनका लगना ठीक था। क्योंकि अगर हम वचन को फिर से पढ़ें: हू कैन मेनटेन हिज काम फॉर लांग? बाई इन-एक्टिविटी। ठीक मालूम पड़ेगा। कौन रह सकता है सदा समता में? जो निष्क्रिय हो जाए। लेकिन लाओत्से कहता है कि नहीं, जो सक्रिय हो।
लेकिन सिर्फ सक्रिय होने से नहीं होगा। सक्रिय तो हम सब हैं। कौन सक्रिय नहीं है? सिर्फ सक्रिय होने से नहीं होगा। इसलिए दूसरी शर्त है, यह भी जानें, इट कम्स बैक टु रेस्ट। यह भी जानें कि सब सक्रियता अनिवार्यतया विश्राम में आ जाती है। सब सक्रियताएं अंततः निष्क्रिय हो जाती हैं। इस सत्य को जान कर जो सक्रिय रहे, वह पूर्ण समता को, सदा समता को उपलब्ध हो जाएगा।
अगर बिलकुल ठहरना हो, तो पूरा दौड़ना आना चाहिए। अगर परम शून्य में प्रवेश करना हो, परम शून्य में । ठहर जाना हो, तो पूर्ण दौड़ आनी चाहिए। जो पूरा दौड़ेगा, वह एक क्षण पूर्ण रूप से ठहर जाएगा।
हम सब की तकलीफ यह है कि हमारी पूरी जिंदगी कुनकुनी है, ल्यूकवार्म है। पूरी कहीं भी नहीं है। दौड़ते हैं, तो मरे-मरे। इसलिए जब ठहरते हैं, तब भी पैर चलते रहते हैं। जागते हैं, तो मरे-मरे। इसलिए जब सोते हैं, तब भी सपने जगाए रखते हैं। भोजन करते हैं, तो मरे-मरे। इसलिए भोजन से उठ जाते हैं, लेकिन मन से भोजन नहीं उठ पाता। जो भी करते हैं, वह इतना अधूरा है कि वह जो आधा शेष रह जाता है, वह पीछा करता है।
लाओत्से कहेगा, जो भी करें, उसे इतने गहरे में करें कि विपरीत अपने आप आना शुरू हो जाए। और जब इस राज को कोई समझ लेता है, तो फिर भागता नहीं। किसी भी चीज से नहीं भागता। सक्रियता से, कर्म के जगत से नहीं भागता।
लाओत्से के लिए संन्यास का वही अर्थ है, जो कृष्ण के लिए है। लाओत्से के लिए संन्यास का यह अर्थ नहीं है कि कोई छोड़ कर जगत को भाग जाए। लाओत्से के लिए संन्यास का वही अर्थ है जो कृष्ण के लिए है कि जो कर्म में अकर्म को उपलब्ध हो जाए; जो करते हुए इस रहस्य को समझे कि मैं न करने में अभी-अभी प्रवेश कर जाऊंगा; कर लूं पूरा, ताकि न करने में भी पूरा उतर जाऊं।
ऐसा व्यक्ति सतत समता में जी सकेगा। उसकी समता को कोई भी तोड़ नहीं सकेगा। कोई तोड़ने का उपाय नहीं है। क्योंकि असमता से वह भागता नहीं है, असमता में भी जीता है। हिमालय पर जो चला गया है, उस आदमी को क्रोधित कर देना बहुत आसान है। हो सकता है, उसे तीस वर्षों से क्रोध न आया हो। लेकिन क्रोधित कर देना बहुत आसान है। लेकिन जो बाजार में बैठ कर शांत हो गया हो, भला तीस ही दिन केवल उसको शांति के उपलब्ध हुए हों, तो भी उसे क्रोधित करना बहुत मुश्किल है। क्योंकि क्रोध की सारी स्थितियां मौजूद हैं, उनके बीच वह शांत हो गया है। जो क्रोध की स्थितियां छोड़ कर शांत हो गया, उसकी शांति धोखा भी हो सकती है। सौ में निन्यानबे मौकों पर होगी। अन्यथा भागने का कोई कारण नहीं था, भयभीत होने का कोई कारण नहीं था।
'अतः जो व्यक्ति ताओ को उपलब्ध होता है, वह हमेशा स्वयं को अति पूर्णता से बचाता है।'
अब यह एक और ताओ का बुनियादी नियम है। 'और चूंकि वह अति पूर्णता से बचा रहता है, इसलिए वह क्षय और पुनर्जीवन के पार चला जाता है।' पहले सूत्र में लाओत्से ने जो कहा, दूसरे सूत्र में जो कह रहा है, वह विपरीत मालूम पड़ेगा। विपरीत नहीं है।
236