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ताओ उपनिषद भाग २
अगर हम बूढ़े की भी जिंदगी को देखें सामान्यतया, तो हमें पता चलेगा कि वह...कहां, बचपन नहीं बदल पाता, रूप बदल जाते हैं, ढंग बदल जाते हैं, बचपन जारी रहता है। उन्हीं छोटी बातों पर क्रोध आता है। उन्हीं छोटी बातों पर अहंकार घना होता है। उन्हीं छोटी बातों का लोभ लगता है। उतना ही भय है, उतनी ही वासना है। सब उतना ही जारी रहता है। कहीं कोई अंतर नहीं है।
तो अगर हम लाओत्से की तरफ से समझें, तो उसका मतलब हुआ कि हममें से अधिक लोग बच्चे ही मरते हैं। और लाओत्से बूढ़ा पैदा होता है, बासठ वर्ष का पैदा होता है, ऐसी कथा है। कथा मीठी है। और पूरब ने मीठी कथाएं पैदा की हैं, जो बड़ी अर्थपूर्ण हैं। क्योंकि लाओत्से तब तक पैदा ही नहीं होता, जब तक प्रौढ़ नहीं हो जाता। जब प्रौढ़ हो जाता है, तभी पैदा होता है।
और दूसरी बात लाओत्से के बाबत है कि उसका पता नहीं कि वह कभी मरा। मरा ही नहीं। ऐसा आदमी मरता भी नहीं। क्योंकि हमारे भीतर मरने वाली जो चीज है, वह हमारे अहंकार के अलावा और कुछ भी नहीं। हम नहीं मरते; पर हमारा निर्मित अहंकार मरता है। जब हम मरते हैं, तब भी हमारा अहंकार ही मरता है; हम नहीं मरते। और हमें जो पीड़ा होती है, वह हमारे मरने की पीड़ा नहीं है, वह हमारे अहंकार के मरने की पीड़ा है। मरते वक्त जो-जो हमने इकट्ठा किया है, वह छिनता है; जो-जो हमने बनाया है, वह छूटता है; जो-जो हमने पाया है, वह छीना जाता है। एक बात तो तय है कि हमने अपने को नहीं बनाया। और एक बात तय है कि हम मरने में भी नहीं छीने जाते हैं।
आपको याद है कि आप जन्म के पहले थे? नहीं है याद, क्योंकि हमें अहंकार के अतिरिक्त और कोई चीज याद ही नहीं है। और अहंकार तो जन्म के बाद सघन होता है। इसलिए हमारी जो याददाश्त है, मनसविद कहते हैं कि . वह तीन साल की उम्र के पहले नहीं जाती। ज्यादा से ज्यादा तीन साल की हमें याद आती है। पहली से पहली जो याद है, वह करीब तीन और पांच साल के बीच की होती है। क्यों? हम तीन साल भी तो थे, कोई याद नहीं बनती। क्योंकि तीन साल हमारे अहंकार को निर्मित होने में लग जाते हैं।
इसलिए बहुत मजे की बात है कि बच्चे अक्सर झूठ बोलने में और चोरी करने में जरा भी तकलीफ अनुभव नहीं करते। उसका कुल कारण, उसका कारण यह नहीं है कि वे चोर हैं और झूठे हैं। उसका कुल कारण इतना है कि अभी वह अहंकार निर्मित नहीं हुआ जो मेरे और तेरे का फासला कर पाए। इसलिए जिसको हम चोरी समझ रहे हैं, बच्चे के लिए शुद्ध समाजवाद है। अभी फासला नहीं है कि यह मेरा है और यह तेरा है। अभी मैं निर्मित नहीं हुआ है। इसलिए हम जिसे चोरी कह रहे हैं, वह हमारे अहंकार के कारण कह रहे हैं। और बच्चे के लिए अभी सभी चीजें, जो उसकी पसंद पड़ जाए, उसकी है। अभी पसंद सब कुछ है। अभी वह अहंकार निर्णय करने वाला नहीं बना कि जो कहे, यह मेरा है और यह तेरा है।
बच्चे को झूठ और सच में भी अभी फर्क नहीं है, क्योंकि बच्चे को सपने में और सच्चाई में फर्क नहीं है। तो अक्सर बच्चे सुबह उठते हैं और रात सपने में जो खिलौना उनका टूट गया, उसके लिए सुबह रोते मिल जाते हैं। या सपने में जो खिलौना खो गया, उसके लिए वे सुबह रो सकते हैं और तड़प सकते हैं कि वह खिलौना कहां गया! क्योंकि अभी स्वप्न में और सत्य में भी फासला नहीं है। असल में, रात के सपने में और दिन की सचाई में फर्क करने के लिए भी अहंकार की जरूरत है।
इसलिए एक मजे की घटना घटती है : बच्चे को सपने में और सुबह की सचाई में फर्क नहीं होता; और जब लाओत्से जैसा आदमी अहंकार को छोड़ कर जगत को देखता है, तब उसको सपने में और सच्चाई में कोई फर्क नहीं होता फिर दुबारा। इसलिए शंकर जैसा आदमी कह पाता है, जगत माया है। उसका और कोई मतलब नहीं, उसका कुल मतलब इतना है कि अब एक दूसरे अर्थ में जगत भी सपने जैसा हो गया। एक दिन सपना भी जगत जैसा