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सफलता के स्वतने, अळंकार की पीड़ा और स्वर्ग का द्वार
अलौकिक है। जो व्यक्ति मंजिल के पास पीठ मोड़ लेता है, मंजिल उसके पीछे चलनी शुरू हो जाती है। और जो व्यक्ति सफलता के बीच से ओझल हो जाता है, उसके लिए असफलता का जगत में नाम-निशान मिट जाता है। वह आदमी फिर असफल हो ही नहीं सकता।
असल में, उस आदमी ने वह कीमिया पा ली, वह कला पा ली, जिससे वह आदमी आदमी नहीं रह जाता, परमात्मा ही हो जाता है। क्योंकि सफलता को जो छोड़ सके, मंजिल के सामने पीठ मोड़ सके, वह आदमी नहीं रह गया। आदमी की सारी कमजोरी क्या है? आदमी की सारी कमजोरी अहंकार की है। वह कमजोरी न रही।
लाओत्से तिरोहित हो गया। उसका एक शिष्य उसका दूर तक गांव तक पीछा किया। लाओत्से ने उस शिष्य को बहुत कहा कि तू मेरे पीछे मत आ, क्योंकि अब मैं तिरोहित होने जा रहा हूं। और तू पीछे रुक, क्योंकि वहां बड़ी संभावना है सफलता की। वहां लोग हजारों आ रहे हैं पूछने मुझे।
उस शिष्य को भी यह समझ में आया। और आदमी कैसे रेशनलाइजेशन करता है। और आदमी कैसे अपने को तर्क दे लेता है! आखिर में उसने लाओत्से से कहा कि आपके ही काम के निमित्त मैं वापस जाता हूं। आप वहां नहीं होंगे और इतने लोग आएंगे आपको पूछते; तो नहीं, उतना तो मैं नहीं समझा सकूँगा जो आप समझा सकते थे, लेकिन फिर भी कुछ तो समझा सकूँगा। आपके ही निमित्त मैं वापस जाता हूं।
उसके मन में भी मोह पकड़ना शुरू हुआ कि अब इस लाओत्से के साथ भटकना बेमानी है। इसे अब कोई जानता भी नहीं। जिन गांवों से यह गुजर रहा है, इसे कोई पहचानता भी नहीं। और अब यह कहां जाकर समाप्त होगा, पता नहीं। और इसकी जिंदगी भर की मेहनत! इसने जिंदगी भर तो वहां सुगंध फैलाई, अब लोग आने शुरू हुए हैं सुगंध के कारण, और यह भाग गया! तो वह शिष्य एक रात लौट गया वापस।
लाओत्से जिस दिन चीन की सीमा छोड़ कर चीन के बाहर निकला, आखिरी बार उस सीमा पर सीमा-अधिकारी ने उसे देखा। उसके बाद उसका कोई पता नहीं चल सका कि वह कहां गया। परंपरा चीन में कहती है कि लाओत्से जिंदा है। क्योंकि ऐसा आदमी मर कैसे सकता है? मरता तो सिर्फ अहंकार है। और जिस आदमी ने अहंकार इकट्ठा ही न किया हो; और जब सम्राट उसके चरणों में आकर सिर रखने को आतुर हो रहे थे, तब अपने झोपड़े से भाग गया हो; ऐसा आदमी मर कैसे सकता है?
तो लाओत्से के संबंध में दो अनूठी बातें कही जाती हैं। एक तो यह कि वह बासठ साल की उम्र में पैदा हुआ। मां के पेट में बासठ साल वह था; बूढ़ा पैदा हुआ। और लाओत्से को प्रेम करने वाले लोग कहते हैं कि ऐसे लोग बूढ़े ही पैदा होते हैं।
हममें से अधिक लोग मरते दम तक भी बचकाने ही रहते हैं। अगर हम अपनी तरफ देखें, तो लाओत्से की बात बहुत उलटी नहीं मालूम पड़ेगी। अस्सी साल के आदमी को भी अगर देखें, तो खिलौनों से खेलता हुआ मालूम पड़ेगा। खिलौने बदल जाते हैं; बाकी खिलौने जारी रहते हैं।
__ एक बच्चा है, वह अपनी दूध की बोतल मुंह में दिए चूस रहा है। एक बूढ़ा है, वह अपना चुरुट पी रहा है। मनोवैज्ञानिक कहते, दोनों एक ही काम कर रहे हैं। लेकिन बूढ़ा अगर अपनी दूध की बोतल मुंह में दे, तो बेहूदा मालूम पड़ेगा। इसलिए उसने तरकीबें ईजाद कर ली हैं। इसीलिए सिगरेट से या चुरुट से जो धुआं आपके भीतर जाता है, वह ठीक वैसी ही गर्म धारा भीतर ले जाता है जैसा मां का दूध। और वह धारा के जाने का ढंग ठीक वैसा ही है। और वह सुखद मालूम होता है। वह गर्मी सुखद मालूम होती है, उष्णता सुखद मालूम होती है। उष्णता की धार भीतर जा रही है, वह सुखद मालूम होती है। अब इस बूढ़े में और बच्चे में बहुत फर्क नहीं है। और अगर फर्क है, तो और ज्यादा नासमझी का फर्क है। बच्चा कम से कम दूध ही पी रहा है, ठीक ही कर रहा है।
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