SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 230
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ताओ उपनिषद भाग २ बोधिधर्म से जब पूछा चीन के सम्राट वू ने कि तुम कौन हो? तो बोधिधर्म ने कहा, आई डू नॉट नो, मुझे कुछ भी पता नहीं। वू तो बहुत हैरान हो गया। उसने कहा कि मैं तो सोचा था कि तुमसे आत्म-ज्ञान की शिक्षा लूंगा; तुमको खुद ही पता नहीं कि तुम कौन हो। बोधिधर्म को समझना मुश्किल है। यही लाओत्से कहता है कि हमारी समझ के परे हैं। बोधिधर्म ने जब कहा कि मुझे पता नहीं, तो वू यही समझा, जैसा कोई साधारण आदमी कहता है कि मुझे पता नहीं। बोधिधर्म हंसने लगा और उसने कहा कि तुम थोड़ा उन लोगों के पास रहो, जो और तरह की भाषा बोलते हैं, ताकि तुम मेरी भाषा समझ सको। बोधिधर्म का यही मतलब था-अघोषणा। क्योंकि मैं क्या कहूं कि कौन है? कैसे कहूं कि कौन है? बोधिधर्म ने कहा, मुझे कुछ भी पता नहीं है। संत अघोषित हैं। और असंत का मन बहुत घोषणाएं करना चाहेगा कि मैं यह हं, यह है, यह हूं। उसे पूरे वक्त डर बना है। अगर घोषणा न की तो कौन जाने, कोई पहचाने न पहचाने। संत आश्वस्त है। जो भी है-अघोषित, मौन। 'वे एक घाटी की भांति हैं-रिक्त।' एक पहाड़ की भांति नहीं। एवरेस्ट के शिखर की भांति नहीं; आकाश में उठे हुए नहीं, घोषणा करते हुए नहीं। एक घाटी की भांति, छिपे हुए, अंधेरे में, जिसकी कोई भी घोषणा नहीं है। आड़ में, अंधेरे में, गप्त, मौन! और सबसे अदभुत बात कही है, 'मटमैले जल की भांति। वैकेंट लाइक ए वैली एंड डल लाइक मडी वाटर।' संत की सोच सकते हैं आप कल्पना मटमैले पानी की भांति? बरसात में जो पानी मटमैला होकर बहता है, वैसे हैं। स्वच्छ होने तक की घोषणा नहीं, पवित्र होने तक की घोषणा नहीं, संत होने तक की घोषणा नहीं-लाइक मडी वाटर, मटमैले जल की भांति। गंगा के पवित्र जल होने की घोषणा नहीं; मटमैले जल की भांति। कोई घोषणा नहीं है। नालियों में से भी बह सकते हैं, गंगा में से भी बह सकते हैं। कोई अंतर नहीं पड़ता। निम्नतम के साथ उसी तरह जी सकते हैं, जैसे श्रेष्ठतम के साथ। स्वर्ग में हों कि नर्क में, कोई भेद नहीं। आखिरी बात। जापान का एक सम्राट संत की खोज में था लाओत्से को पढ़ कर कि ऐसा संत कहां मिले, लाइक मडी वाटर, लाइक ए वैकेंट वैली। गहन खाई की तरह शून्य, मटमैले पानी की तरह, कहां मिले? मंदिरों में गया, जिन पर स्वर्ण-शिखर थे। वहां संत मिले, वे शिखरों की भांति थे। लेकिन वह सम्राट पूछता कि खाई की भांति, घाटी की भांति, मटमैले जल की भांति! वह खोजता रहा। उसे कहीं भी संत नहीं मिले, जैसे संत की वह तलाश में था। जब वह अपने गांव वापस लौट रहा था, राजधानी, तो गांव के नगर-द्वार पर ही एक भिखारी भीख मांगता था। उसने चिल्ला कर उस सम्राट को कहा कि बहुत बार तुम्हें घोड़े पर आते-जाते यहां से वहां देखता हूं, किसकी खोज कर रहे हो? सम्राट ने कहा, मैं उसकी खोज कर रहा हूं, उस संत की, जो खाई की भांति होता है लाओत्से ने कहा है; मिट्टी से मिले जल की भांति। तो वह फकीर खूब हंसने लगा और उसने कहा कि जाओ भी। सम्राट ने कहा कि तुमने पूछा और फिर कहा जाओ भी! उस फकीर ने कहा कि तुम अब जाओ ही। सम्राट को बड़ी हैरानी हुई। और जब गौर से उस फकीर की तरफ देखा, तो उसे खाई दिखाई पड़ी उस फकीर की आंखों में। पर उसने कहा कि तुम तो भिखारी हो और तुम्हारी आंखों में खाई दिखाई पड़ती है। मैं तो इसीलिए तुम्हारी तरफ कभी न देखा कि एक भिखारी है, कुछ मांगने न लगे। और मैं जगह-जगह खोजता फिरा। तो उस फकीर ने कहा कि तुम खोजते थे वहां, जहां शिखर ही हो सकते हैं। तुमने वहां खोजा ही नहीं। लेकिन किसी को बताना मत। हम भीख मांग कर किसी तरह अपने को छिपाए हैं। किसी को बताना मत, किसी को खबर मत करना। 220
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy