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संत की पचान : सजग व अविणीत, अशून्य व लीलामय
बुद्ध चुपचाप खड़े होकर सुनते हैं। क्रोध निकल गया, नाराजगी निकल गई, फिर वह रोने लगी। फिर बारह वर्ष की पीड़ा है और बारह वर्ष का दुख है, वह सब निकला। फिर उसके आंसू सूखे। बुद्ध चुपचाप खड़े हैं। वह सब कहे चली. जा रही है। फिर उसने आंखें ऊपर उठाईं, बुद्ध की तरफ देखा। और तब यशोधरा ने कहा कि तुम अकेले आए, इस बात ने ही मुझे बदल दिया। अगर तुम भीड़-भड़क्का साथ लेकर आते, तो मैं मानती कि मेरे लिए तुम्हारे मन में कोई भी जगह नहीं है। बुद्ध फिर भी चुपचाप खड़े हैं। पत्नी उनके पैरों पर गिर पड़ी है। नाराजगी निकल गई, दुख निकल गया; वह क्षमा मांग रही है। बुद्ध ने उसे कहा कि मैं जो लेकर आया हूं, एक ही आकांक्षा मेरे मन में रही है कि तुझे भी वह कब मिल जाए।
यह सब अभिनय है। बुद्ध के तल पर यह सब अभिनय है। लेकिन पत्नी दीक्षित हो गई। वह भिक्षुणी हो गई। और पांच साल गुजर गए, ध्यान में गहरी उतर गई। तब एक दिन यशोधरा ने बुद्ध से कहा, तुमने खूब अभिनय किया! कितनी मैं पुलकित हुई उस दिन जान कर कि नगर के द्वार पर आकर तुमने पूछा, आनंद से कहा, यशोधरा नहीं दिखाई पड़ती। बारह वर्ष का दुख मेरा छूट गया। कितनी पुलकित हुई उस दिन जान कर कि तुम अकेले आए हो, आनंद को बाहर रोक कर। तुम्हारे बाबत जितनी नाराजगी थी, सब बह गई। लेकिन अब मैं जानती हूं कि तुमने खूब अभिनय किया। तुम्हारा अभिनय ही मुझे बदलने का कारण हो सका।
लाओत्से कहता है, ऐसे व्यक्ति इस जगत के भीतरी हिस्से कभी नहीं हो पाते; लेकिन निरंतर अभिनय करते रहते हैं कि इस जगत के भीतरी हिस्से हैं। ऐसे व्यक्ति इस जगत में कोई संबंध निर्मित नहीं कर पाते; लेकिन निरंतर
अभिनय करते रहते हैं कि सब संबंध बहुत गहरे हैं। और यह अभिनय बड़ा गंभीर है। होगा ही गंभीर, अन्यथा अभिनय टिकेगा नहीं। अभिनय गंभीर न हो, तो टिक नहीं सकता। एक तो अभिनय और फिर गंभीर न हो, तो टिकेगा नहीं।
संत का यह भी एक भीतरी लक्षण कि जगत में वह बाहरी होकर भीतरी की तरह जीएगा, अतिथि की तरह जीएगा और एक गहन अभिनय में संलग्न होगा। कर्ता वह नहीं है अब। अब तो जो भी है, वह बाहर है और खेल है। वह रामलीला में राम का पात्र भर, राम का अभिनय भर कर रहा है। वह असली राम नहीं है।
और अगर हम असली राम का भी पता लगाने जाएं, तो फिर बहुत मजा आएगा। अगर असली राम का भी हम पता लगाने जाएं, तो वे भी रामलीला में एक अभिनय के पात्र से ज्यादा नहीं थे। और वही उनकी खूबी है। इसलिए जिस सीता को खोजने के लिए जिंदगी दांव पर लगाएं, उस सीता को एक नासमझ धोबी के कुछ कहने से जंगल छोड़ दें! जिस राज्य को जीतने के लिए अथक श्रम लें, फिर उसे ऐसा ही दान कर दें! अगर राम के लिए यह सब वास्तविक हो, तो बहुत कठिन हो जाए। यह वास्तविक नहीं है। एक बड़े अभिनय का हिस्सा है।
और राम अति गंभीर हैं। अन्यथा इस छोटी सी बात के लिए, धोबी की बात के लिए सीता को छोड़ने का कोई अर्थ न था। लेकिन अति गंभीर हैं। अभिनय को पूरा कर रहे हैं। इसलिए हमने अच्छे शब्द खोजे हैं; हम इसे कहते हैं : रामलीला। यह राम का अभिनय है कि राम रो रहे हैं। सीता खो गई है; छाती पीट रहे हैं। जंगल में दरख्तों से पूछ • रहे हैं कि मेरी सीता कहां है? और मजा यह है कि एक सोने के हिरन के पीछे भागे हैं। हमको भी पता है कि सोने का हिरन नहीं होता। राम को भी पता होगा ही। सोने के हिरन के पीछे भागे हैं। वह एक बड़े अभिनय का हिस्सा है। सोने के हिरन के पीछे भागे हैं, फिर लक्ष्मण को चिल्लाए हैं कि बचाओ!
सीता ने भी बहुत मजे की बात कही है। लक्ष्मण जाने को तैयार नहीं है छोड़ कर। पहरे पर उसे खड़ा किया है। और राम कह गए हैं कि हटना मत। लेकिन राम की जिंदगी खतरे में है, कुछ उपद्रव हुआ है। और चिल्लाहट आती है कि मुझे बचाओ लक्ष्मण, भागो! लेकिन लक्ष्मण हट नहीं सकते। तो सीता लक्ष्मण से कहती है कि मुझे पता है भलीभांति कि तुम चाहते हो तुम्हारा भाई मर जाए, तो तुम मुझे पा लो।
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