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________________ ताओ उपनिषद भाग २ कोई धोखा नहीं हुआ है, कोई धोखा नहीं हुआ है। जीवन में अपरिचय हो, तो लोग एक-दूसरे के प्रति गंभीर भाव रखते हैं, ताकि वही प्रकट हो जो होना चाहिए-शिष्ट, आचरणपूर्वक, व्यवस्थित, अनुशासित। फिर जब निकटता बढ़ती जाती है, तो अनुशासन छूट जाता है। दो मित्रों की गहरी मित्रता का मतलब ही यह होता है कि अब मजे से एक-दूसरे को गाली देते हैं और बुरा नहीं मानते। गंभीरता चली गई है। लाओत्से कहता है कि वे जीवन में ऐसे जीते हैं, जैसे अतिथि हों—पूरा जीवन। पूरा जीवन, हर स्थिति में वे इस जगत में एक आउटसाइडर हैं, अतिथि हैं। इस जगत को कभी अपना घर नहीं मान पाते। संतजन इस जगत को कभी अपना घर नहीं मान पाते, कभी एट-होम इस संसार में वे अनुभव नहीं कर पाते। कोलिन विल्सन ने एक बहुत अदभुत किताब लिखी है: दि आउटसाइडर। उस किताब में उसने बड़ी मेहनत ली है कि इस जगत के जो भी महत्वपूर्ण लोग हैं, वे सब आउटसाइडर्स हैं। बुद्ध हों, कि सुकरात हो, कि लाओत्से हो, सब आउटसाइडर्स हैं। यहां वे ऐसे रहते हैं, जैसे एक अपरिचित घर में अतिथि की तरह हों। और यह अतिथिपन उनका कभी नहीं टूटता, क्योंकि अजनबीपन कभी नहीं टूटता। यह बड़े मजे की बात है, हम अपने से जितने कम परिचित होते हैं, उतना ही हमें लगता है कि हम दूसरों से . ज्यादा परिचित हैं। और जब अपने से परिचय बढ़ता है, तो दूसरे से अपरिचय बढ़ने लगता है। इसे ऐसा समझें कि जो आदमी समझता है कि मैं इतने लोगों को जानता हूं, एक बात पक्की समझना कि अपने को नहीं जानता होगा। और जो आदमी अपने को जान लेता है, तत्क्षण उसे पता चलता है कि मैं किसी को भी नहीं जानता। अतिथि की भांति वैसा आदमी जीता है। लेकिन लाओत्से बहुत मजे की बात इसमें कह रहा है कि वे जीवन में ऐसे होते हैं, जैसे अतिथि हों-ऐसा गंभीर अभिनय करते हैं। अतिथि की तरह होते हैं; और जो कुछ भी वे करते हैं वह एक अभिनय है, वास्तविकता नहीं है। थोड़ा उदाहरण लें, तो खयाल में आ सके। बुद्ध वर्षों के बाद घर लौटे हैं। तो आनंद ने बुद्ध से एक प्रतिज्ञा ली थी दीक्षा के पहले कि मैं सदा साथ रहूंगा। बुद्ध राजमहल में आ गए हैं। राजधानी के द्वार पर सारे नगर ने स्वागत किया। सिर्फ यशोधरा, पत्नी नहीं आई। बुद्ध ने आनंद से कहा, देखते हो आनंद, यशोधरा दिखाई नहीं पड़ती। आनंद को बड़ी चिंता हुई, कि बुद्ध होकर और अभी भी पत्नी का खयाल! बारह वर्ष, इतने परम ज्ञान को पाया, अभी भी पत्नी का खयाल! पर आनंद ने धीरज रखा कि देखेंगे, समय पर पूछ लेंगे। फिर बुद्ध महल पहुंचे हैं। द्वार पर भी पत्नी नहीं है। फिर महल के भीतर प्रविष्ट हुए हैं। तो बुद्ध ने आनंद से कहा कि आनंद, तुझे मैंने आश्वासन दिया है कि तू जहां भी मेरे साथ रहना चाहेगा, रहेगा। अभी भी मैं अपना वचन नहीं तोडूंगा, लेकिन फिर भी तुझसे प्रार्थना करता हूं कि पत्नी बारह वर्ष से नाराज बैठी है; छोड़ कर मैं उसे भाग गया था। कोई और उपाय न था, कोई और उपाय न था। और अब अगर पहली दफा बारह वर्ष के बाद भी मैं किसी को लेकर भीड़-भड़क्के में उससे मिलूं, तो उसकी नाराजगी नहीं टूटेगी। उसे थोड़ा मौका दे कि वह नाराज हो ले, चिल्ला ले, जो उसने बारह वर्ष में इकट्ठा किया हो, वह निकाल ले। तो अच्छा हो कि तू थोड़ा पीछे रुक जा! मैं उससे अकेले में ही जाकर मिल लूं। आनंद और भी घबड़ाया। पत्नी से अकेले में मिलने की क्या बुद्ध को जरूरत है? लेकिन बुद्ध ठीक कह रहे हैं। और बुद्ध का अकेले मिलना परिणामकारी हुआ। और यशोधरा ने उनको अकेले आते देख कर निश्चित ही क्रोध निकाला, चिल्लाई, नाराज हुई, सब लांछनाएं दीं कि तुमने धोखा दिया! और तुमने इतना भी भरोसा न किया मेरा कि तुम मुझसे पूछ तो लेते! 216
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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