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संत की पहचान सजग व अविणीत, अशुन्य व लीलामय
बर्नार्ड शॉ ने कहा कि जब मुझे ही तय करना है और मुझी को बोलना है, तो वहीं बोल लेंगे और वहीं तय कर लेंगे। अगर तय किसी और को करना हो और बोलना मुझे हो, तो पहले से तैयारी करवानी पड़ेगी। जब मुझे ही यह काम करना है, तो वहीं ठीक समय पर कर लेंगे।
उस आदमी ने कहा, लेकिन निश्चित होना पहले से ठीक होता; कुछ भूल-चूक हो जाए! . वह आदमी ठीक कह रहा है। अगर उसको बोलना हो, तो वह तय करेगा तो ही बोल सकता है। और मजे की बात यह है कि तय करने वाले अक्सर बोलने में भूल करते हैं। नहीं तय करने वाले से भूल हो नहीं सकती; क्योंकि जो भी निकले, वही बोलना है।
इररिजोल्यूट, अनिश्चित का अर्थ यही है कि क्षण जो भी लाएगा, उसमें मैं पूरी तरह, जो भी मुझसे हो सकेगा, उसके लिए राजी हूं। उसके लिए पूर्व-धारणा नहीं है। मैं आज तय नहीं करता कि कल कैसे जीऊंगा। और जिस आदमी ने आज तय किया कि कल कैसे जीएगा, उसका कल आज ही मर गया। उसका भविष्य आज ही अतीत हो गया। अगर मैंने तय किया कि इस शब्द के बाद कौन सा शब्द मैं बोलूंगा, तो मैं एक यंत्र हो गया, आदमी न रहा। जिस आदमी को अपने पर जितना कम भरोसा है, उतना पूर्व-निश्चय करके जीएगा। कम भरोसे के लोग सब कुछ तय कर लेंगे, तभी चल सकेंगे। जिनका भरोसा पूर्ण है, वे बिलकुल अनिश्चय से चलेंगे। उनका हर कदम तय करने वाला होगा। उनका हर कदम तय करने वाला होगा।
जीसस से उनके शिष्य पूछते हैं। उस रात जब वे पकड़े गए और दूसरे दिन सुबह जब सूली लगाई गई, तो उनका एक शिष्य पूछता है कि जब सूली लग जाएगी तो आप क्या करिएगा? जीसस ने कहा, कम से कम सूली तो लगने दे। सूली लगने दे। मुझे पता नहीं है; जैसे तू देखेगा कुछ हो रहा है, वैसे ही मैं भी देखूगा कि कुछ हो रहा है। फिर अभी से निश्चय कैसे किया जा सकता है ?
हमारा कमजोर मन सब निश्चय करके चलता है। ध्यान रखना, निश्चय करना कमजोर मन का लक्षण है। आमतौर से हम मानते हैं कि निश्चय करने वाला बहुत मजबूत मन वाला है। ठीक है, कमजोर मन निश्चय करे, तो उन कमजोर मनों से मजबूत हो जाएगा जो निश्चय न करें। कमजोर मन निश्चित करे, तो उन मनों से मजबूत हो जाएगा जो कमजोर हैं और निश्चित न करें।
लेकिन लाओत्से उन संतों की बात कर रहा है, जिनका मन ही न रहा। कमजोर मन की तो बात ही अलग, मन ही न रहा। और मन जब तक रहेगा, कमजोरी रहेगी। मन कमजोरी है। वे क्या निश्चय करें? समय आता है और वे जीते हैं पल-पल, मोमेंट टु मोमेंट। दूसरे पल की कोई आयोजना नहीं है।
जीसस की प्रार्थनाओं में प्रसिद्ध प्रार्थना है कि हे परमात्मा, मुझे आज की रोटी दे; कल की मैं चिंता न करूं। आज काफी है। आज का मतलब : अभी, यही क्षण पर्याप्त है।
वे सतत अनिर्णीत हैं। उनके पास कोई भी निर्णय नहीं है। क्योंकि उनके पास वे स्वयं हैं। जिनके पास स्वयं का होना नहीं है, वे निर्णय के आधार पर जीएंगे।
बुद्ध के पास कोई आता है: बद्ध एक जवाब देते हैं। वही प्रश्न लेकर दूसरा आदमी आता है; बुद्ध दूसरा जवाब देते हैं। आनंद बहुत बार बुद्ध से कहता है कि आपको ऐसा नहीं लगता कि आप असंगत हैं, इनकंसिस्टेंट हैं! क्षण भर पहले आपने एक आदमी से यह कहा था और क्षण भर बाद ही आपने दूसरे आदमी से यह कहा। और उन दोनों के प्रश्न समान थे। बुद्ध कहते हैं, उन दोनों के प्रश्न समान थे; लेकिन वे दोनों व्यक्ति अलग थे। और एक ने सुबह पूछा था और एक ने दोपहर। सुबह से दोपहर तक गंगा का कितना जल बह जाता है। मैं सुबह से बंधा हुआ नहीं हूं। दोपहर हो गई, अब दोपहर का ही उत्तर होगा। सांझ होगी, सांझ का ही उत्तर होगा।
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