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________________ ताओ उपनिषद भाग २ इसलिए अगर बुद्ध में कोई संगति खोजने जाए, तो बहुत गहरी खोज करनी पड़े; तब संगति मिलेगी। ऊपर तो असंगति मिलेगी। एक वक्तव्य दूसरे वक्तव्य को खंडित करता हुआ मालूम पड़ेगा। सिर्फ क्षुद्र बुद्धि के लोग, मीडियाकर लोग कंसिस्टेंट होते हैं। उनकी जिंदगी भर खोज जाओ, तो जो उन्होंने जब दूध की चम्मच उनके मुंह में थी तब कहा था, जब वे मर रहे होंगे तब भी वही कह रहे होंगे। एकदम कंसिस्टेंट होंगे, संगत होंगे। उसका मतलब यह है कि झूले के बाद वे जीए ही नहीं। झूला ही उनकी कब्र हो गया। जो जीएगा, वह क्षुद्र अर्थों में संगत नहीं हो सकता; एक आंतरिक संगति होगी। उसे खोजना मुश्किल है। उसे वही खोज सकता है, जो आंतरिक संगति पर ध्यान रखे। बुद्ध एक आदमी से कहते हैं ईश्वर नहीं है, एक से कहते हैं ईश्वर है, तीसरे के संबंध में चुप रह जाते हैं। अब इतना असंगत-ईश्वर है, ईश्वर नहीं है, दोनों। लेकिन भीतर एक संगति है गहरी। आनंद रात में पूछता है कि मैं सो न पाऊंगा, मैं मुश्किल में पड़ गया। मैंने तुम्हारे तीनों उत्तर सुन लिए। तो बुद्ध कहते हैं, पहली तो बात यह आनंद कि जो तुझे नहीं कहा गया था, वह तुझे सुनना नहीं था। न तूने पूछा था, न तेरा सवाल था, तो तूने जवाब क्यों लिया? ऐसे अगर तू हर जवाब इकट्ठे करेगा, तो कैसे सो पाएगा? और जब मैं देने वाला सो रहा हूं मजे से, तुझे चिंता क्या है? पर वह आनंद कहता है कि नहीं, आपकी आप जानें; बाकी मैं बड़ी मुश्किल में पड़ा हूं कि ये सब बातें एक साथ कैसे हो सकेंगी! सुबह आपने कहा ईश्वर नहीं है; दोपहर कहा है; सांझ चुप रह गए, जब किसी ने पूछा। असंगति दिखाई पड़ती है। मुझे थोड़ी शांति दे दें, थोड़ा बता दें, तो मैं सो जाऊं। तो बुद्ध कहते हैं, असंगत मैं हो कैसे सकता हूं! असंगत तो वह आदमी हो सकता है, जिसका सिद्धांत तय हो। सुबह जो आदमी आया था-मैं तो दर्पण की तरह हूं-उसकी जो शक्ल थी, वह मुझमें बन गई। दोपहर जो आदमी आया, वह दूसरा था। मैं तो दर्पण की तरह हूं। मेरा अपना कोई सिद्धांत बांध कर नहीं बैठा हूं। उसकी जो शक्ल थी, वह मुझमें बन गई। क्या तुम दर्पण से कहोगे कि बड़े असंगत हो! सुबह एक शक्ल दिखाई दी, दोपहर दूसरी, सांझ तीसरी। जो आदमी सुबह आया था पूछते कि ईश्वर है, वह नास्तिक था। वह मानता था कि ईश्वर नहीं है। वह मुझसे पूछने आया था, ताकि मैं भी गवाह बन जाऊं और कहूं कि नहीं है। वह आदमी गलत था। उसने बिना खोजे मान लिया कि ईश्वर नहीं है। तो मुझे उसे तोड़ना पड़ा और मुझे कहना पड़ा बलपूर्वक कि ईश्वर है। मैंने उसे हिला दिया। अब उसे खोज में लगना पड़ेगा। अब मैं उसका पीछा करूंगा जिंदगी भर। जब भी उसको खयाल आएगा, ईश्वर नहीं है, तब बुद्ध की शक्ल उसे याद आएगी कि उस आदमी ने कहा था है। अब मैं उसका पीछा करूंगा। जो आदमी दोपहर आया था, वह आस्तिक है; उसी तरह आस्तिक, जैसे सुबह वाला नास्तिक था। खोजा नहीं है, मान लिया कि है। उसकी आस्तिकता उतनी ही अज्ञानपूर्ण थी, जितनी सुबह वाले की नास्तिकता। मुझे उसे भी हिलाना पड़ा। मुझे उसे भी यात्रा पर भेजना पड़ा। मैंने कहा, ईश्वर? बिलकुल नहीं है। अब यह आदमी जब मंदिर में पूजा का थाल सजा कर खड़ा होगा, तो कहीं न कहीं मैं इसे दिखाई पड़ता ही रहूंगा-बुद्ध ने कहा है। मुझसे पूछने इसीलिए आया था कि बुद्ध का वजनी सबूत साथ हो जाए। बुद्ध भी कह दें है, तो अपनी पूजा में वह और गहन उतर जाए। लेकिन उसकी पूजा झूठी है; क्योंकि अभी होने का बोध ही उसका असत्य है। अभी उसे कुछ भी पता नहीं है। बिना जाने माना कि है, बिना जाने माना कि नहीं है, ये दोनों एक जैसे हैं। आनंद, यह तुझे लगता है कि यह विपरीत। और इसलिए मुझे इनको विपरीत उत्तर देने पड़े। लेकिन दोनों उत्तरों में एक संगति है। मैं दोनों को उनकी अज्ञान की स्थिति से हिलाना चाहता था। ___ सांझ जो आदमी आया था, वह न आस्तिक है, न नास्तिक। उसकी जिज्ञासा गवाह को खोजने की जिज्ञासा नहीं थी। वह मुझसे कुछ अपने को सिद्ध करवाने नहीं आया था। उसकी जिज्ञासा बड़ी सरल और निर्दोष थी। उसने 212
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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