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मंत की पहचान : सजग व अविणीत, अठंशग्य व लीलामय
बहुत धुंधला चित्र लाओत्से देना चाहेगा, धुंधला जान कर, ताकि हमारी समझ उस रहस्य, उस धुंधलके में प्रवेश करने के लिए ऊपर उठे। बहुत बंधे हुए शब्द नहीं लाओत्से देता, इशारे करता है।
लाओत्से कहता है, जैसे सर्दी के दिन हों, बर्फीला नाला हो, पैर डालते खून जमता हो, उस नाले को कोई पार करे, तो जैसा सजग हो, वैसे वे सजग हैं। इस जीवन को पार करते समय उनकी सजगता ऐसी है, जैसे बर्फीले नाले को कोई पार करते वक्त हो। _ थोड़ा खयाल करें। अगर बर्फीले नाले को पार करना पड़ रहा है आपको, तो रोआं-रोआं जाग जाएगा। कहीं नाले में गिर न पड़ें! एक-एक पैर उठाएंगे, तो उस पैर पर पूरा ध्यान होगा। अतीत भूल जाएगा, भविष्य भूल जाएगा। एक-एक पैर वर्तमान में ही महत्वपूर्ण हो जाएगा।
या ऐसा समझें कि किसी खंदक-खाई के ऊपर से, बहुत संकरे रास्ते से गुजरते हों, जहां जरा पैर चूके तो अतल खाई में गिर जाएं और प्राण खो जाएं। वहां आपको याद रहेंगी अतीत की बातें? वहां आपको खयाल आएगा बीता हुआ? या वहां सपने आपके मन को घेरेंगे? या वहां भविष्य की योजनाएं आपको पकड़ेंगी? असंभव है। क्योंकि मन जरा सा भी चूक गया वर्तमान से, तो नीचे अतल खाई है। नहीं, वहां आप अत्यंत सजग होकर, जाग कर, शायद जीवन में पहली बार जाग कर चलेंगे। एक-एक कदम आपकी चेतना से भरा होगा, स्मृतिपूर्वक होगा।
इसलिए जापान में झेन फकीरों ने, जिन पर लाओत्से का भारी प्रभाव है, अनेक-अनेक उपाय खोजे हैं आदमी को सजगता सिखाने के। उनमें तलवार चलाने की कला भी एक है। सोचा भी नहीं जा सकता कि ध्यान से तलवार चलाने का क्या संबंध होगा? लेकिन लाओत्से का यह सूत्र ही कारणभूत है।
जापान के फकीरों ने अनुभव किया कि आदमी को बिठा दो और कहो कि शांत हो जाओ, तो वह शांत नहीं होता। बल्कि अशांत हालत में जितना शांत मालूम पड़ता था, ध्यान के लिए बैठ कर उतना भी शांत नहीं रह जाता, और अशांत हो जाता है। जो लोग भी ध्यान में बैठने का कभी प्रयास किए हैं, उन सभी को अनुभव होगा कि मन और अशांत हो जाता है, मन और दौड़ने लगता है, मन और व्यस्त हो जाता है। जो बातें साधारणतया खयाल नहीं आती, वे भी खयाल आने लगती हैं। और जो विचार कभी नहीं उठे, वे भी मन पर छा जाते हैं। न मालूम भीतर जैसे सब पागलपन प्रकट होना शुरू हो जाता है।
कभी आधा घंटा शांत बैठने की कोशिश करें। तो वह आधा घंटा पागलपन का हो जाएगा। भला बाहर के लोग समझते हों कि आप ध्यान कर रहे हैं, आप भलीभांति समझते हैं कि आप बिलकुल पागल हो गए हैं। क्या कारण है?
लाओत्से कहता है कि वह सजगता तभी अनुभव हो सकती है, जब जीवन एक खतरा हो, पल-पल खतरा हो। है जीवन पल-पल खतरा। हमें उसका पता नहीं है, इसलिए हम बेहोश चलते हैं। जैसे किसी आदमी की आंख पर पट्टी बंधी हो और उसे पता न हो कि वह खाई के किनारे से गुजर रहा है और अगर एक पैर चूक जाए तो जीवन समाप्त हो जाएगा। तो आंख पर पट्टी बंधा हुआ आदमी खाई के किनारे चलते समय भी अपने विचारों में खोया रहेगा। आंख की पट्टी खोल दें, विचार बंद हो जाएंगे। खतरा दिखाई पड़ेगा।
तो झेन फकीर कहते हैं कि तलवार चलाओ और तलवार चलाने में उस जगह आ जाओ, जहां तलवार ही रह जाए और खतरा इतना तीव्र हो कि तुम्हारे मन को पीछे और आगे जाने का उपाय न रहे। इसी क्षण ठहर जाए। इसलिए झेन फकीरों के मंदिरों के सामने तलवारों के चिह्न बने हुए हैं। और जहां तलवार सिखाई जाती है, उन कक्षों का नाम ध्यान-कक्ष है।
लाओत्से कहता है, वे पुरुष, वे संतजन सजग हो गए थे, यह पहली लक्षणा।
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