SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अक्षय व बिनराकार, सनातन व शून्यता की प्रतिमूर्ति 197 इकहार्ट ने कहा है: इटरनल नाउ, सदा अभी । उसके लिए सब कुछ वर्तमान है। और हमारे लिए, अगर हम खोजने जाएं, तो कुछ भी वर्तमान नहीं है । हम कहते हैं : वर्तमान, अतीत, भविष्य । लेकिन कभी आपने देखा, आपका अतीत भी काफी बड़ा है। अगर आप पचास साल जीए हैं, तो पचास साल का अतीत है। और अगर आपको पिछले जन्मों की याद आ जाए, तो अरबों-खरबों साल का अतीत है। भविष्य भी अनंत है। अगर आपको अभी पचास साल जीना है, तो पचास साल का । और अगर आपको खयाल आ जाए पुनर्जन्मों का, तो अनंत भविष्य है। अनंत है अतीत, अनंत है भविष्य - हमारे लिए । और वर्तमान क्या है? एक क्षण भी नहीं। अगर हम बारीकी से खोजने जाएं, तो किस क्षण को आप वर्तमान कहेंगे? जब आप कहेंगे, तब वह अतीत हो चुका होगा। जब तक आप जानेंगे कि यह वर्तमान है, वह अतीत हो चुका होगा। अगर मैं कहूं कि नौ बज कर पैंतीस मिनट पर अभी यह क्षण वर्तमान है; लेकिन मेरे इतना कहने में ही वह क्षण अतीत हो गया। अब वह है नहीं। हमारे पास वर्तमान इतना कम है कि हम उसकी घोषणा भी नहीं कर सकते । घोषणा करें, वह अतीत हो जाता है। सच तो यह है कि हमारे लिए वर्तमान का केवल एक ही अर्थ है : जहां हमारा भविष्य अतीत होता है, वह बिंदु । व्हेयर फ्यूचर पासेस इनटू पास्ट, जहां भविष्य हमारा अतीत बनता है, बस वह जगह। वर्तमान का हमें कोई पता नहीं है। परमात्मा के लिए सब कुछ वर्तमान है, हमारे लिए सब कुछ अतीत या भविष्य है। जहां हमारा भविष्य अतीत बनता है, उसी रेखा पर हम मान कर चलते हैं कि वर्तमान है। हमें उसका अनुभव कभी नहीं होता । अगर उस वर्तमान को हम अनुभव करने लगें, उस वर्तमान को अगर हम पकड़ने लगें, वह वर्तमान अगर हमारी चेतना से संयुक्त होने लगे, इसी का नाम ध्यान है। हम वर्तमान को पकड़ नहीं पाते, क्योंकि चित्त हमारा इतनी तेजी से चल रहा है और समय इतनी तेजी से भाग रहा है कि इन दोनों के बीच मिलना नहीं हो पाता। समय को हम रोक नहीं सकते, वह हमारे हाथ के बाहर है । चित्त को हम रोक सकते हैं, वह हमारे हाथ के भीतर है । अगर चित्त बिलकुल रुक जाए, तो वह जो वर्तमान का क्षण है, उससे हमारा मिलन हो सकता है। वर्तमान के क्षण से हमारा मिलन ही परमात्मा से हमारा मिलन है। फिर धीरे-धीरे अतीत और भविष्य हमारे लिए भी खो जाते हैं, वर्तमान ही रह जाता है। लाओत्से या बुद्ध जैसे व्यक्तियों के लिए कोई अतीत नहीं, कोई भविष्य नहीं; वर्तमान सब कुछ है । जिस दिन कोई व्यक्ति ऐसी अवस्था में आ जाता है कि वर्तमान सब कुछ है, उस दिन वह परमात्मा से एक हो गया, परमात्मा हो गया। अतीत और भविष्य जिस मात्रा में बड़े हैं, उसी मात्रा में हम परमात्मा से दूर हैं; जिस मात्रा में कम हैं, उतने निकट हैं; जिस दिन खो गए, उस दिन हम एक हैं। अब इस लाओत्से के सूत्र को समझें । वर्तमान कार्यों के समापन के लिए — रोज दैनंदिन काम में भी, क्षण-क्षण, वर्तमान क्षण में— जो व्यक्ति सनातन ताओ को सम्यक रूप धारण करता है। जो वर्तमान में जीते हुए एक-एक क्षण में भी सनातन को ही धारण करता है और स्मरण रखता है, जिसका न कोई अतीत है, न कोई भविष्य, जो सदा है। दुकान पर बैठा है, बाजार में है, दफ्तर में है, घर में है, भोजन कर रहा है, सो रहा है, लेकिन अतीत का स्मरण नहीं, भविष्य का स्मरण नहीं, सनातन का स्मरण ! वह जो सदा है और अभी भी है, दि इटरनल नाउ, सनातन और अभी, उसका जिसे स्मरण है। जो सम्यकरूपेण धारण करता है सनातन को, वह उस आदि स्रोत को जानने में सक्षम हो जाता है, वह उस परम स्रोत को पहचानने में पात्र हो जाता है, जो कि ताओ का सातत्य है । ताओ का अर्थ - धर्म । ताओ का अर्थ- सत्य । ताओ का अर्थ — नियम, ऋत । ताओ का अर्थ वह परम
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy