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ताओ उपनिषद भाग २
यही कठिनाई है कि कबीर कहते हैं, नाम काफी है। क्योंकि प्रेम से लिया गया नाम पर्याप्त है, और क्या चाहिए? फिर लोग सोचते हैं, नाम ही काफी है। और प्रेम का उनके पास कोई अनुभव नहीं है। तो फिर नाम जपते रहते हैं जिंदगी भर। यंत्रवत तोतों की तरह दोहराते रहते हैं। और कहते हैं, कबीर ने कहा, नानक ने कहा कि नाम काफी है, तो फिर हम नाम जप रहे हैं। नाम काफी है, नाम भी काफी है। नाम से कम और क्या होगा? नाम भी काफी है। लेकिन काफी है उस हृदय को जहां प्रेम है। और प्रेम हो, तो नाम भी गैर-जरूरी है। प्रेम ही काफी है।
लाओत्से कहता है, मिल जाए वह, फिर भी चेहरा दिखाई नहीं पड़ता। अनुगमन करो उसका, पीठ दिखाई नहीं पड़ती। मीट इट, एंड यू डू नॉट सी इट्स फेस; फालो इट, एंड यू डू नॉट सी इट्स बैक।
मिलते ही कोई सीमा नहीं दिखाई पड़ती। किसी भी उपाय से कोई मिले, मिलते ही कोई अनुभव निर्मित नहीं होता। इसलिए कोई अगर कहे कि मैंने ईश्वर को देख लिया, तो समझना कि कोई स्वप्न देखा है, धार्मिक स्वप्न देखा है। प्रीतिकर, सुखद, लेकिन स्वप्न देखा है। कोई कहे कि मैंने उसका चेहरा देख लिया, तो समझना कि कल्पना प्रगाढ़ हो गई है। उसका चेहरा कभी किसी ने नहीं देखा। कभी कोई देख भी नहीं सकेगा। उसका कोई चेहरा नहीं है। उसकी कोई रूप-रेखा नहीं है। अस्तित्व रूप-रेखा शून्य है।
'वर्तमान कार्यों के समापन के लिए जो व्यक्ति इस सनातन ताओ को सम्यकरूपेण धारण करता है, वह उस आदि स्रोत को जानने में सक्षम हो जाता है जो कि ताओ का सातत्य है।'
अंतिम सूत्र साधक के लिए है। जो बातें पहले कही गईं, वे इशारे हैं उस परम रहस्य की तरफ। उस परम रहस्य को कैसे पाया जा सके, इस आखिरी सूत्र में उसकी तरफ निर्देश है। दो-तीन बातें समझनी पड़ें।
एक, समय मनुष्य की ईजाद है। परमात्मा के लिए समय नहीं है। अतीत, वर्तमान, भविष्य हमारे विभाजन हैं। परमात्मा के लिए अतीत, वर्तमान और भविष्य नहीं हैं। तो परमात्मा के लिए जो शब्द उपयोग किया जा सके समय की जगह, वह सनातन है, पुरातन है, चिरनूतन है, इटरनल है, इटरनिटी है।
समय हमारा विभाजन है। अतीत का अर्थ है, जो अब हमारे लिए नहीं है। भविष्य का अर्थ है, जो अभी हमारे लिए हुआ नहीं। वर्तमान का अर्थ है, जो हमारे लिए है। लेकिन परमात्मा तो सभी को घेरे हुए है। अतीत भी उसके लिए अभी है; भविष्य भी उसके लिए अभी है; और वर्तमान भी उसके लिए अभी है। अगर ठीक से समझें तो परमात्मा के लिए एक ही काल-क्षण है, वह वर्तमान है।
___ इसे ऐसा समझें कि दीवार में एक छेद कर ले कोई और बाहर से देखे। एक कोने से देखना शुरू करे हाल के भीतर, तो सबसे पहले उसे मैं दिखाई पडूं। फिर क्रमशः उसकी नजर आप पर चलती जाए। जब आप उसे दिखाई पड़ें, तो मैं दिखाई पड़ना बंद पड़ जाऊं। फिर और पीछे उसकी नजर जाए, तो आप दिखाई पड़ने बंद हो जाएं। वह पीछे हटता जाए, कतार-कतार, दूसरे चेहरे उसे दिखाई पड़ें। जो नहीं दिखाई पड़ते अब, वे अतीत हो गए। जो अभी दिखाई पड़ेंगे, वे भविष्य हैं। जो दिखाई पड़ रहा है, वह वर्तमान है। लेकिन कोई इस कमरे के भीतर मौजूद है। बाहर के आदमी के लिए तीन हिस्से हो गए; कमरे के भीतर जो मौजूद हैं, उसके लिए एक ही है। सब मौजूद हैं, अभी-यहीं।
परमात्मा अस्तित्व के केंद्र पर मौजूद है, हम परिधि पर। हम जो भी देखते हैं, उसमें हमें बहुत कुछ छोड़ना पड़ेगा। हमारी आंखों की देखने की क्षमता सीमित है। हम चुन कर ही देख सकते हैं। जो छूट जाता है, वह अतीत हो जाता है। जो होने वाला है, वह भविष्य हो जाता है। जो है, वह वर्तमान। और मजे की बात है, परमात्मा के लिए सिर्फ वर्तमान है। कोई अतीत नहीं, कोई भविष्य नहीं। इसलिए वर्तमान शब्द का उपयोग करना ठीक नहीं है उसके लिए। क्योंकि वर्तमान का मतलब ही होता है : अतीत और भविष्य के बीच में। जिसके लिए कोई अतीत नहीं, कोई भविष्य नहीं, उसके लिए वर्तमान शब्द ठीक नहीं है। इसलिए सनातन, इटरनल, सदा।
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