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________________ ताओ उपनिषद भाग २ रहस्य, जहां कोई समय नहीं है। जहां कोई बनना और मिटना नहीं है, जहां कोई सुबह और सांझ नहीं है, जहां कोई जन्म और मृत्यु नहीं है। उस परम सातत्य को उपलब्ध हो जाता है। समय द्वार है। अगर आप अतीत और भविष्य में डोलते रहते हैं, तो आप संसार में हैं। अगर समय की दृष्टि से हम कहें, तो संसार का अर्थ है: अतीत + भविष्य; वर्तमान नहीं। अगर संसार से पार जाना है, तो अतीत और भविष्य जहां मिलते हैं, उस बिंदु से नीचे गिरना पड़े, वहीं से छलांग लगानी पड़े, वहीं से नीचे उतरना पड़े। शुद्ध वर्तमान अर्थात मोक्ष; शुद्ध वर्तमान अर्थात ताओ। . ___लाओत्से से कोई पूछता है कि तुम्हारा सबसे श्रेष्ठतम वचन कौन सा है? तो लाओत्से कहता है, यही! जो मैं अभी बोल रहा हूं। वानगाग से कोई पूछता है, तुम्हारी श्रेष्ठतम चित्रकृति कौन सी है? कौन सी सबसे श्रेष्ठ तुम्हारी पेंटिंग है? तो वानगाग पेंट कर रहा है और कहता है, यही! जो मैं अभी पेंट कर रहा हूं। अभी जो हो रहा है, वही सब कुछ है। इस अभी में जो सनातन को स्मरण रख कर जीना शुरू कर देता है, उसे रास्ता मिल गया, उसे सेतु मिल गया। छोड़ें अतीत को, छोड़ें भविष्य को, पकड़ें वर्तमान को। धीरे-धीरे अतीत को विसर्जित करते जाएं। हम तो उसे ढोते हैं। इसलिए बूढ़े आदमी की कमर झुक जाती है। शरीर से कम, अतीत का वजन बहुत हो जाता है। इतना अतीत हो जाता है, थक जाता है, पहाड़ छाती पर रख जाता है। सब अतीत हो जाता है। बूढ़ा आदमी बैठा हो कुर्सी पर आंख बंद किए, तो आप समझ सकते हैं कि वह क्या कर रहा होगा। वह अतीत को कुरेद रहा होगा। जवानी, बचपन; सफलताएं, असफलताएं; प्रेम, विवाह, तलाक, वह सब खोज रहा होगा। खोज रहा होगा कि क्या हुआ! बोझ बढ़ता जाता है। उसे हटाते चलें, वह बोझ खतरनाक है। क्योंकि वह सनातन से कभी न जुड़ने देगा। बच्चे को खोजें, जवान को खोजें, वह क्या कर रहा है? भविष्य! महल जो बनाने हैं, यात्राएं जो करनी हैं, सफलताएं जो पानी हैं-महत्वाकांक्षाएं, सपने। बच्चे को देखें, तो भविष्य का विस्तार है बड़ा। बूढ़े को देखें, तो अतीत का। भविष्य के सपने हैं बच्चे के पास, बूढ़े के पास उन्हीं सपनों की राख। इन दोनों के बीच हम चूक जाते हैं उसको, जो वर्तमान है। जैसा मैंने कहा कि हमारा वर्तमान वह बिंदु है जहां भविष्य अतीत बनता है, और हमारी जवानी भी वह बिंदु है जहां हमारा भविष्य अतीत बनता है, जहां हमारे सपने राख बनते हैं। कभी आपने कृष्ण की कोई मूर्ति, कोई चित्र देखा, जिसमें कृष्ण बूढ़े हों? बुद्ध का कोई चित्र देखा, जिसमें बुद्ध बूढ़े हों? महावीर की कोई प्रतिमा देखी, जिसमें महावीर बूढ़े हों? बूढ़े तो जरूर हुए थे, इसमें कोई शक-शुबहा नहीं है। बुद्ध बूढ़े हुए थे, इसमें कोई शक-शुबहा नहीं है। लेकिन चित्र हमने सब उनके जवानी के ही शेष रखे हैं। कारण हैं। कारण हैं, इस खबर को देने के लिए कि बुद्ध के लिए वर्तमान सब कुछ हो गया। जवानी सब कुछ हो गई, युवापन सतत हो गया। बूढ़े हो गए शरीर से, लेकिन चेतना बूढ़ी नहीं हुई। क्योंकि चेतना पर कोई अतीत का बोझ न रहा। यह जो खयाल है, वर्तमान में अगर कोई सतत जी रहा हो, तो एक सतत युवापन, एक ताजगी, एक प्रतिपल जीवन का नया, नवीन, प्रतिपल ताजा, निर्दोष फूल खिलता चला जाता है। वह कभी बासा नहीं पड़ता। ____ 'न उसके प्रकट होने पर होता प्रकाश, न उसके डूबने पर होता अंधेरा-ऐसा है वह अक्षय और अविच्छिन्न रहस्य, जिसकी परिभाषा संभव नहीं है।' आज इतना ही। बैठे लेकिन पांच मिनट, कीर्तन में सम्मिलित हों। 198
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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