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बह फूल खिलते हैं, सांझ मुरझा जाते हैं। सुबह सूरज निकलता है; सांझ ढल जाता है। जन्म है और मृत्यु में समाप्ति हो जाती है। प्रत्येक घटना शुरू होती है और अंत होती है। लेकिन अस्तित्व सदा है। अस्तित्व की न कोई सुबह है, न कोई सांझ। अस्तित्व का न कोई जन्म है और न कोई मृत्यु। लाओत्से इस सूत्र में अस्तित्व की इस जन्म-मरणहीन, अनादि, अनंत सातत्य के संबंध में सूचना दे रहा है। जो भी हम जानते हैं, उसे हम सीमाओं में बांध सकते हैं। कहीं होता है प्रारंभ और कहीं अंत हो जाता है। और जो भी इस सीमा में बंध सकता है, उसकी परिभाषा हो सकती है। परिभाषा का अर्थ ही है कि जिसे हम विचार की परिधि में घेर लें। लेकिन जो शरू न होता हो, अंत न होता हो, उसकी
परिभाषा असंभव है। क्योंकि हम विचार की परिधि में उसे घेर न पाएंगे। कहां से खींचें रेखा? कहां करें रेखा का अंत? इसलिए अस्तित्व की कोई परिभाषा नहीं हो सकती। अस्तित्ववान वस्तुओं की परिभाषा हो सकती है, स्वयं अस्तित्व की नहीं।
इसे हम ऐसा समझें। और यह सूत्र कठिन है; तो बहुत-बहुत दरवाजों से इसके रहस्य को खोलना पड़े। एक फूल दिखाई पड़ता है; कहते हैं सुंदर है। चांद निकलता है; कहते हैं सुंदर है। कोई चेहरा प्रीतिकर लगता है; कहते हैं सुंदर है। कोई कविता मन को भाती है; कहते हैं सुंदर है। कोई संगीत हृदय को स्पर्श करता है; कहते हैं सुंदर है। लेकिन क्या कभी आपने सौंदर्य को देखा? कोई गीत सुंदर होता है, कोई चेहरा सुंदर होता है, कोई आकाश में तारा सुंदर होता है, कोई फूल सुंदर होता है। आपने वस्तुएं देखीं जो सुंदर हैं, लेकिन कभी आपने सौंदर्य को देखा?
तब एक बड़ी कठिन समस्या खड़ी हो जाएगी। अगर आपने सौंदर्य को कभी नहीं देखा, तो आप किसी वस्तु को सुंदर कैसे कहते हैं?
फूल में आपको सौंदर्य दिखता है। लेकिन आपने सौंदर्य को कभी नहीं देखा। फूल का सौंदर्य सुबह खिलता है, सांझ खो जाता है। एक चेहरे में सौंदर्य दिखता है। आज है, कल तिरोहित हो जाता है। जो आज तक था और कल खो जाएगा, जो सुबह दिखा था और सांझ विसर्जित हो जाएगा, उसे आपने कभी वस्तुओं से अलग देखा? कभी आपने शुद्ध सौंदर्य देखा है?
आपने सुंदर चीजें देखी हैं, सौंदर्य नहीं देखा। तो फूल की परिभाषा हो सकती है। उसकी सीमा है, आकार है, पहचान है। लेकिन सौंदर्य की परिभाषा नहीं हो सकती। उसकी कोई सीमा नहीं, उसका कोई आकार नहीं, उसकी कोई पहचान नहीं। और फिर भी हम पहचानते हैं। नहीं तो फूल को सुंदर कैसे कहिएगा?
अगर फूल ही सुंदर है, तो फिर रात का चांद सुंदर न हो सकेगा। फल और चांद में क्या संबंध है? और अगर चांद ही सुंदर है, तो फिर किन्हीं आंखों को सुंदर न कह सकिएगा। आंख और चांद में क्या लेना-देना है? सौंदर्य
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