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________________ स्तित्व के परम रहस्य के संबंध में यह सूत्र है। जिन शब्दों में उस रहस्य को कहा जाता है, वे सभी शब्द छोटे पड़ जाते हैं। न केवल छोटे, बल्कि जो कहना चाहते हैं हम, उससे विपरीत उन शब्दों से प्रकट होता है। इसे दो-तीन दिशाओं से समझना जरूरी होगा। एक, मनुष्य के सभी शब्द अधूरे हैं। कोई शब्द पूरा नहीं है। और कोई शब्द पूरा हो भी नहीं सकता। क्योंकि शब्द जिस बुद्धि से निर्मित होते हैं, वह बुद्धि अस्तित्व का एक छोटा सा अंश मात्र है। और अंश से जो भी निर्मित होगा, वह पूर्ण नहीं होता। हमारे जीवन का भी बुद्धि एक छोटा सा हिस्सा है। बुद्धि से ज्यादा हैं हम। बुद्धि से बड़े हैं हम। बुद्धि से विराट हैं हम। हमारा जो होना है, उसमें बुद्धि भी एक बूंद है। लेकिन वह हमारा पूरा सागर नहीं। शब्द निर्मित होते हैं बुद्धि से। अंश से जो भी निर्मित होता है, वह पूर्ण नहीं होता, अंश ही होता है। इसलिए बुद्धि से निर्मित सभी शब्द छोटे पड़ जाते हैं। दूसरी बात, हमारे सभी शब्द इंद्रियों से प्रभावित होते हैं। अगर हम कहें कि वह परम सत्य देखा जाता है, तो उसका अर्थ हुआ कि आंखें उसे पकड़ने में समर्थ हैं। अगर हम कहें वह परम सत्य सुना जाता है, तो उसका अर्थ हुआ कि कान उसे पकड़ने में समर्थ हैं। अगर हम कहें कि वह स्पर्श किया जा सकता है, तो उसका अर्थ हुआ हाथ उसके अनुभव में समर्थ हैं। हाथ स्पर्श करता है, कान सुनते हैं, आंख देखती है। लेकिन आंख जो भी देखेगी, वह सीमित होगा। आंख की अपनी सीमा जो है। हाथ जो भी छुएगा, वह सीमित होगा। हाथ असीम नहीं है, इसलिए। और कान जो भी सुनेगा, वह क्षुद्र होगा। क्योंकि कान स्वयं क्षुद्र है। इंद्रियां सीमित हैं, इंद्रियों के अनुभव सीमित हैं। और जब हम विराट असीम को सोचने चलते हैं, तो हमारी इंद्रियों से प्रभावित सभी शब्द व्यर्थ हो जाते हैं। क्योंकि वे सभी शब्द सीमाओं की खबर देते हैं। और असीम पर सीमाएं लगाना उसकी प्रकृति को ही नष्ट कर देना है। तीसरी बात, जब भी हम विचार से किसी वस्तु को सोचते हैं, तो द्वंद्व निर्मित हो जाता है। विचार विभाजन की प्रक्रिया है। विचार चीजों को तोड़ कर देखने का ही प्रयोग है। जैसे कोई सूरज की किरण को कांच के प्रिज्म से निकाले, तो वह सात टुकड़ों में बंट जाती है। वे ही हमारे सात रंग हैं। प्रिज्म किरण को सात हिस्सों में तोड़ देता है, तो सात रंग दिखाई पड़ते हैं। किरण रंगहीन है, टूट कर सात रंग हो जाते हैं। सात रंगों को जोड़ दें, तो फिर सफेद निर्मित हो जाता है। सफेद रंग नहीं है। कांच के टुकड़े में से जो सात रंग दिखाई पड़ते हैं, वे कांच के टुकड़े से गुजर कर दिखाई पड़ते हैं। सातों रंग जुड़ जाते हैं तो सफेद दिखाई पड़ता है, कोई रंग नहीं रह जाता। ठीक बुद्धि भी प्रत्येक चीज को दो हिस्सों में तोड़ देती है। कहते हैं-ठंडा और गर्म। यह बुद्धि की प्रक्रिया से टूट गई स्थिति है। क्योंकि जिसे हम ठंडा कहते हैं, वह गरमी का ही एक माप है। और जिसे हम गर्म कहते हैं, वह भी ठंडक का एक माप है। ठंडा और गर्म दो चीजें नहीं हैं। ठंडा और गर्म तापमान की दो स्थितियां हैं-एक ही 1690
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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