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________________ ताओ उपनिषद भाग २ जिसने पूछा था, वह पूछ रहा था, कल्पवृक्ष होंगे? वह पूछ रहा था, अप्सराएं होंगी? वह पूछ रहा था, सुख ही सुख होगा? शराब के झरने, चश्मे होंगे? कुछ ऐसी बात पूछ रहा था कि क्या होगी खास बात, जिसके लिए यह सब छोड़ने का उपद्रव मुझे करना पड़े? उसको जीसस की बात बिलकुल न जंची होगी कि देयर शैल बी टाइम नो लांगर-समय नहीं होगा। न केवल नहीं जंची होगी, बल्कि बहुत भयभीत भी कर गई होगी। क्योंकि जहां समय नहीं होगा, वहां कोई वासना नहीं हो सकती, कोई कल्पवृक्ष नहीं हो सकता। हम तो स्वर्ग भी बनाते हैं, तो हमारी वासना का ही विस्तार है। हम तो जो भी करते हैं हमारा धर्म, हमारा मोक्ष, हमारा स्वर्ग-हमारी वासना का विस्तार है। वे सब हमारे संसार के ही परिशिष्ट हैं। उनमें बहुत भेद नहीं है। मित्र पूछते हैं, मेरा पुनर्जन्म न हो। क्यों? क्यों न हो पुनर्जन्म? यही कारण न कि जीवन में दुख है! अगर जीवन में दुख है, तो पुनर्जन्म की फिक्र छोड़ें; जीवन के पूरे दुख को समझ लें। जीवन के दुख को जो समझेगा, उसके भीतर धीरे-धीरे वासना क्षीण होने लगेगी। क्योंकि सब ओर दुख है, चाहूं भी तो क्या चाहूं? चाहने योग्य कुछ भी नहीं है। सब चाह दुख में ले जाती है। सब चाह दुख की ही चाह जिस दिन मालूम पड़ने लगे, जिस दिन कहीं से भी यात्रा करूं और दुख में पहुंच जाऊं, कुछ भी सोचूं और दुख में गिर जाऊं, कुछ भी चाहूं और दुख में पहुंच जाऊं, जिस दिन सब तरफ से सब यात्रा-पथ दुख में ही ले जाने वाले दिखाई पड़ने लगें, उस दिन क्या मैं चाहूंगा कि पुनर्जन्म न हो? फिर वह भी एक चाह होगी; और सभी चाह दुख में ले जाती हैं। क्या मैं चाहूंगा कि परमात्मा मुझे मिल जाए? वह भी एक चाह होगी; और सभी चाहें दुख में ले जाती हैं। नहीं, तब मैं चाहूंगा ही नहीं। बस इतना ही होगा कि मैं कुछ भी न चाहूंगा। जिस क्षण कोई भी चाह नहीं, उसी क्षण समय मिट जाता है, भविष्य टूट जाता है, अतीत बिखर जाता है। यह वर्तमान का क्षण ही रह जाता है सब कुछ। उस क्षण में अस्तित्व तो है, जीवन नहीं है। इसे थोड़ा समझ लें। उस क्षण में अस्तित्व तो है, जीवन नहीं है। और जिस व्यक्ति ने जीवन में छिपे अस्तित्व को जान लिया, उसका फिर कोई पुनर्जन्म नहीं है। क्योंकि कुनर्जन्म जीवन का है। इसे हम ऐसा समझें कि जीवन है समस्त वासनाओं का जोड़। अस्तित्व के ऊपर, बीइंग के ऊपर जो वासनाओं का जोड़ है, वही जीवन है। पुनर्जन्म आपके इसी जीवन का सिलसिला है। वह कोई नई बात नहीं है। शरीर नया है, आपकी वासना पुरानी है। और वासना इतनी तीव्र है अभी भी कि उसे नए शरीर की जरूरत पड़ती है। इसलिए नया शरीर मिल जाता है। जिस क्षण कोई भी वासना न रही, उस क्षण नए शरीर की जरूरत न रही। तो पुनर्जन्म असंभव हो जाता है। लेकिन पुनर्जन्म न हो, ऐसी चाह मत बनाएं। अन्यथा वह कभी भी असंभव न होगा। चाह को समझें, चाह के तथ्य को पहचानें और चाह के तथ्य में गहरे उतरें, तो पाएंगे कि चाह ही दुख है। इसलिए मैंने कहा कि जीवन का चुनाव हमारे हाथ में है। पुनर्जन्म हमारे हाथ में नहीं है। अगर हम जीवन में चुनाव करते चले जाते हैं, वासना को जगाते चले जाते हैं, तो पुनर्जन्म होगा ही। उसका कोई उपाय नहीं है। अगर मैं सुख को पकड़े चला जाता हूं, तो दुख आएगा ही। अगर मैं सम्मान मांगे चला जाता हूं, तो अपमान निष्पत्ति बनेगी ही। दूसरी बात के संबंध में सोचना व्यर्थ है। पहली ही बात मेरे हाथ में है। उसका अर्थ हुआ कि अगर मैंने चाह की, तो मैं दुख पाऊंगा ही। अगर मैंने चाह ही न की...। लेकिन खयाल रखना, बारीक बात है थोड़ी सी, वहीं भूल हो जाती है। तो हम सोचते हैं कि चलो, अब हम.ऐसा करें कि चाह न करें। तब हमारी यही चाह बन जाती है : तो चलो, अब हम चाहें उस स्थिति को जहां कोई चाह नहीं होती। इच्छारहित हो जाऊं, यही चाह बन जाती है। तब हम पुनः चक्कर के भीतर खड़े हो गए। 156
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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