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________________ एक ही सिक्के के दो पहल : सम्मान व अपमाब, लोभ व भय होती चली जाती है। जब कोई सफलता का शिखर चढ़ता है, तो अपने चारों तरफ असफलता की खाई भी खोद लेता है। वह प्रतिपल चल रही है। इससे बचने का कोई उपाय नहीं है। इससे बचने का एक ही उपाय है कि शिखर पर चढ़ने की बात ही न हो। जो गिरने से बचना चाहता हो, वह चढ़े ही नहीं। यह थोड़ा कठिन है। क्योंकि चढ़ना हम सब चाहते हैं, गिरना हम नहीं चाहते। दूसरे हिस्से को हम स्वीकार नहीं करते। जन्म होता है, तो हम मृत्यु को स्वीकार नहीं करते। जन्म के साथ ही मृत्यु मौजूद हो गई। जन्म लिया, उसी दिन मैंने मरने को भी स्वीकार कर लिया। लेकिन जीवन भर मैं कोशिश करूंगा कि मौत न हो। मेरी कोशिश से कोई फल होने वाला नहीं है। क्योंकि जन्म के साथ ही मौत घट गई। वह भविष्य की घटना नहीं है अब। वह भी अतीत का ही हिस्सा हो गई। मौत हो ही चुकी। क्योंकि एक छोर नहीं हो सकता, दूसरा छोर भी होगा ही। सफलता के साथ ही असफलता भी घटित होती है और सम्मान के साथ ही निंदा भी। इसलिए बहुत मजे की बात है कि जितने ज्यादा लोग सम्मानित होते हैं, ठीक उसी अनुपात में निंदा चारों तरफ व्याप्त हो जाती है। कोई और उपाय नहीं है। संतुलन है। ऐसा आदमी खोजना कठिन है इस जगत में, जिसने प्रशंसा ही पाई हो और निंदा नहीं। सम्राटों को छोड़ दें, राजनीतिज्ञों को छोड़ दें, धनपतियों को छोड़ दें, उन्हें तो निंदा मिलती है। लेकिन महावीर, बुद्ध या कृष्ण और क्राइस्ट को ही सोचें। चाहे उन्होंने सम्मान न चाहा हो और चाहे उन्हें निंदा से कोई भी फर्क न पड़ा हो, लेकिन लोगों ने सम्मान दिया, तो लोगों ने अपमान भी दिया। और उन दोनों की मात्रा बराबर थी। उस मात्रा में कमी नहीं हो सकती। इसलिए कृष्ण को अगर एक तरफ भगवान मानने वाले लोग हुए, तो एक तरफ कृष्ण को नर्क में डालने वाले लोग भी होंगे ही। अगर एक ओर बुद्ध को लोग कहेंगे परम ज्ञानी, तो बुद्ध को परम अज्ञानी कहने वाले लोग भी होंगे ही। और अगर एक तरफ जीसस को लोग ईश्वर का पुत्र कहेंगे, तो ठीक दूसरी तरफ जीसस को सूली पर लटका देने वाले लोग भी होंगे ही। और जब जीसस को सूली पर लटकाया, तो लटकाने वालों ने दो और लोगों को भी साथ में सूलियां दी थीं—दो चोरों को। जीसस को बीच में लटकाया था, दोनों चोरों को दोनों तरफ लटकाया था। चोरों के साथ सूली दी थी, ताकि यह भी वहम न रह जाए कि जीसस को हम कोई पैगंबर मान कर सूली नहीं दे रहे हैं। एक आवारा, समाज-बहिष्कृत, एक उपद्रवी, एक विक्षिप्त आदमी समझ कर सूली दे रहे हैं। और लाओत्से से अगर कोई पूछेगा, तो लाओत्से कहेगा कि यह होना ही था; यह होगा ही। जीसस को कोई प्रयोजन नहीं है, इसलिए जीसस सुखी और दुखी नहीं होते। लेकिन जीसस के शिष्य बहुत दुखी हुए जब जीसस को सूली लगी। क्योंकि जीसस के शिष्यों का खयाल था, ईश्वर का पुत्र! उसको सूली कैसे लग सकती है? लेकिन उन्हें पता नहीं था कि जब उन्होंने ईश्वर का पुत्र घोषित किया, तभी दूसरा वर्ग भी संतुलन करने को जगत में निर्मित हो जाता है। जगत एक गहन संतुलन है। यहां प्रत्येक चीज हमेशा संतुलित होती रहती है। असंतुलन कभी भी नहीं हो पाता। क्या है उपाय? लाओत्से के हिसाब से एक ही उपाय है। और वह उपाय यह है कि जो हमारी खोज है, उसमें हम विपरीत को भी देख लें। और जब आप सम्मान खोजते हों, तो ठीक से समझ लें कि आप अपमान भी खोज रहे हैं। जब आप लोभ करते हों, तब ठीक से सोच लें कि भय को पैदा कर रहे हैं। जब आप प्रेम पाने चलते हों, तो ठीक से समझ लें कि आपने घृणा की भी मांग उपस्थित कर ली। जब आप जीवन को जोर से पकड़ें, तब समझ लेना कि अब आप मौत को जोर से पकड़ रहे हैं। 145
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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