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ताओ उपनिषद भाग २
मैंने सुना है, बैनिटो मुसोलिनी एक रात एक सिनेमागृह के पास से गुजरता था। सहज ही खयाल हो आया; फिल्म तो शुरू हो चुकी थी, अंधेरे में ही जाकर वह सिनेमागृह में बैठ गया। जब फिल्म समाप्त हुई, तो मुसोलिनी को सम्मान देने के लिए इटली की फिल्मों में आखिर में मुसोलिनी का चित्र आता था और सारे लोग खड़े होकर मुसोलिनी का जय-जयकार करते थे-सारे लोग खड़े होकर मुसोलिनी का जय-जयकार किए।
स्वभावतः, मुसोलिनी तो बैठा रहा, बहुत प्रसन्न हुआ कि सारे लोग जय-जयकार कर रहे हैं। पड़ोस के व्यक्ति से उसने पूछा कि बहुत आनंद तुम्हें आ रहा है जय-जयकार करने में? उस आदमी ने कहा कि बेहतर होगा कि तुम भी खड़े होकर आनंद मनाओ। क्योंकि आनंद न मनाना बहुत मंहगा और खतरनाक है। भीतरी इच्छा तो मेरी भी यही है कि जिस शान से तुम बैठे हो, उसी शान से मैं भी बैठा रहूं। लेकिन तुम हो कौन? तुम्हें शायद पता नहीं कि तुम इटली में हो और मुसोलिनी का जय-जयकार किए बिना जीना मुश्किल है। इच्छा तो मेरी भी यही होती है कि जैसे तुम शान से पैर पसारे बैठे हो, मैं भी बैठा होता।
एक और मुझे स्मरण आता है कि चर्चिल बोलने जा रहा था पार्लियामेंट में। उसकी गाड़ी बिगड़ गई है रास्ते पर। उसने एक टैक्सी ली। लेकिन टैक्सी वाले ने कहा कि मैं नहीं ले जा सकूँगा; क्योंकि अभी-अभी रेडियो पर, . चर्चिल का व्याख्यान पार्लियामेंट में हो रहा है, वह आने वाला है। मैं खुद उसको सुनने के लिए रुका हूं। चर्चिल के प्राण स्वभावतः फूल गए होंगे, खुशी का अंत न रहा, कि ड्राइवर इनकार कर रहा है ले जाने से सवारी को! चर्चिल ने एक बड़ा नोट निकाल कर उसके हाथ में दिया और कहा कि खुश हूं तुम्हारी बात से, लेकिन चलना जरूरी है। उस आदमी ने चर्चिल को बिठा कर गाड़ी शुरू कर दी। चर्चिल ने पूछा कि व्याख्यान का क्या करोगे? तो उस आदमी ने कहा, भाड़ में जाए चर्चिल!
एक क्षण पहले इस आदमी ने चर्चिल को जैसा फुला दिया होगा, एक क्षण बाद...। लेकिन शायद चर्चिल को भी खयाल में न आया हो कि यह आत्मा का फूल जाना और सिकुड़ जाना एक टैक्सी ड्राइवर के हाथ में है। यह कुंजी चर्चिल के अपने हाथ में नहीं है। यह टैक्सी ड्राइवर के हाथ में है।
हमारी सब कुंजियां बदल गई हैं। सब कुंजियां बदल गई हैं। और जिसे हम मालिक कहते हैं, वह भी अपने गुलामों के हाथ में अपनी कंजियां दिए हुए है।
यह जो स्थिति है, इस स्थिति के लिए ही यह सूत्र है : 'हम जिसे मूल्यवान समझते हैं और जिससे भयभीत होते हैं, वे दोनों ही हमारे स्वयं के भीतर हैं। सम्मान और अपमान के संबंध में ऐसा कहने का यह अर्थ है कि सम्मान-प्राप्ति के बाद निम्न स्थिति में होना अपमान है।' • अपमान का अर्थ ही क्या है? तुलनात्मक है, रिलेटिव है। अगर कोई व्यक्ति सम्मान की एक स्थिति में रहा है, तो फिर उससे नीचेदकी स्थिति में उसका अपमान है। तो जब भी हम कोई स्थिति खोज रहे हैं, हम साथ ही अपमान की स्थिति भी खोज रहे हैं। जब भी हम ऊपर चढ़ रहे हैं, तब हम नीचे गिरने की स्थिति भी खोज रहे हैं। जब . भी हम किसी भी दिशा में, किसी भी मार्ग से, किसी भी ढंग से अपने अहंकार को भर रहे हैं, तभी हम इसके विपरीत भी रास्ता निर्मित कर रहे हैं।
वह जो विपरीत रास्ता निर्मित होता है, वह हमें दिखाई नहीं पड़ता। जब मैं सम्मान के सिंहासनों पर चढ़ता हूँ, तो मुझे यह दिखाई नहीं पड़ता कि मैं अपने गिरने का उपाय भी कर रहा हूं। मैं ही कर रहा हूं। और जब मैं गिरूंगा, तब मैं जिम्मेवारी दूसरों पर रखूगा। और जब मैं चढ़ रहा था, तब जिम्मेवारी मेरी थी।
हर ऊंचाई के बाद नीचाई है। और हर पहाड़ के बाद खाइयां हैं। और हर शिखर, खाइयों के बिना कोई भी शिखर खड़ा नहीं हो सकता। जब कोई पहाड़ बहुत ऊंचा होने की कोशिश कर रहा है, तब उसके पास खाई निर्मित
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