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________________ ताओ की साधना-योग के संदर्भ में अभी आप यहीं प्रयोग करके देख सकते हैं। एम्फेसिस का फर्क है। जब आप कुर्सी पर वजन डाल कर बैठते हैं, तो कुर्सी सब कुछ हो जाती है, आप सिर्फ लटके रह जाते हैं कुर्सी पर, जैसे एक खूटी पर कोट लटका हो। खूटी टूट जाए, कोट तत्काल जमीन पर गिर जाए। कोट की अपनी कोई केंद्रीयता नहीं है, खूटी केंद्र है। आप कुर्सी पर बैठते हैं-लटके हुए कोट की तरह। लाओत्से कहता है, आप थक जाएंगे। क्योंकि आप चैतन्य मनुष्य का व्यवहार नहीं कर रहे हैं और एक जड़ वस्तु को सब कुछ सौंपे दे रहे हैं। लाओत्से कहता है, कुर्सी पर बैठो जरूर, लेकिन फिर भी अपनी नाभि में ही समाए रहो। सब कुछ नाभि पर टांग दो। और घंटों बीत जाएंगे और आप नहीं थकोगे। __ अगर कोई व्यक्ति अपनी नाभि के केंद्र पर टांग कर जीने लगे अपनी चेतना को, तो थकान-मानसिक थकान-विलीन हो जाएगी। एक अनूठा ताजापन उसके भीतर सतत प्रवाहित रहने लगेगा। एक शीतलता उसके भीतर दौड़ती रहेगी। और एक आत्मविश्वास, जो सिर्फ उसी को होता है जिसके पास केंद्र होता है, उसे मिल जाएगा। तो पहली तो इस साधना की व्यवस्था है कि अपने केंद्र को खोज लें। और जब तक नाभि के करीब केंद्र न आ जाए-ठीक जगह नाभि से दो इंच नीचे, ठीक नाभि भी नहीं-नाभि से दो इंच नीचे जब तक केंद्र न आ जाए, तब तक तलाश जारी रखें। और फिर इस केंद्र को स्मरण रखने लगें। श्वास लें तो यही केंद्र ऊपर उठे, श्वास छोड़ें तो यही केंद्र नीचे गिरे। तब एक सतत जप शुरू हो जाता है-सतत जप। श्वास के जाते ही नाभि का उठना, श्वास के लौटते ही नाभि का गिरना-अगर इसका आप स्मरण रख सकें...। कठिन है शुरू में। क्योंकि स्मरण सबसे कठिन बात है। और सतत स्मरण बड़ी कठिन बात है। आमतौर से हम सोचते हैं कि नहीं, ऐसी क्या बात है? मैं एक आदमी का नाम छह साल तक याद रख सकता हूं। यह स्मरण नहीं है; यह स्मृति है। इसका फर्क समझ लें। स्मृति का मतलब होता है, आपको एक बात मालूम है, वह आपने स्मृति के रिकार्डिंग को दे दी। स्मृति ने उसे रख ली। आपको जब जरूरत पड़ेगी, आप फिर रिकार्ड से निकाल लेंगे और पहचान लेंगे। स्मरण का अर्थ है : सतत, कांसटेंट रिमेंबरिंग। आप जरा कोशिश करें, एक पांच मिनट के लिए प्रयोग करें कि मैं अपने पेट के उठने और गिरने का खयाल रखंगा, भूलूंगा नहीं। दो सेकेंड बाद आप पाएंगे, आप भूल चुके हैं, कुछ और कर रहे हैं। फिर घबड़ाहट आएगी कि यह तो मैं भूल गया, दो सेकेंड भी याद नहीं रख सका! श्वास अभी भी चल रही है, पेट अब भी हिल रहा है; लेकिन आप कहीं गए। फिर लौटा लाएं अपने स्मरण को। अगर आप निरंतर प्रयास करें, तो धीरे-धीरे, धीरे-धीरे, सेकेंड-सेकेंड आपका स्मरण बढ़ेगा। और जिस दिन आप कम से कम तीन मिनट सतत, मुतवातिर, एक क्षण को भी बिना चूके-तीन मिनट कोई लंबा वक्त नहीं है, लेकिन जब प्रयोग करेंगे, तब आपको पता चलेगा कि तीन साल से भी लंबा मालूम पड़ेगा—एक दफे भी चूकें नहीं, तीन मिनट केवल! तो आपको पता चलेगा कि अब आपको केंद्र का ठीक-ठीक अनुभव होना शुरू हो गया। और तब सब शरीर अलग और केंद्र अलग झलकने लगेगा। और यह केंद्र ऊर्जा का केंद्र है। इससे जो संयुक्त है, उसकी महिमा अपार है। क्योंकि वह निरंतर अनंत ऊर्जा को उपलब्ध कर रहा है। तो एक तो सतत स्मरण रखें नाभि के केंद्र का और उसके आस-पास ही अपनी चेतना को परिभ्रमण करने दें। वही मंदिर है, उसकी ही परिक्रमा जारी रखें। कुछ भी हो जाए-क्रोध हो, घृणा हो, वैमनस्य हो, ईर्ष्या हो, दुख हो, सुख हो-लाओत्से कहता है, हर हालत में, कुछ भी हो, पहला काम नाभि पर लौटने का करें, फिर दूसरा काम कुछ भी करें। किसी ने खबर दी कि प्रियजन मर गए, तो पहले नाभि पर जाएं और फिर इस खबर को ग्रहण करें। और तब, लाओत्से कहता है, कोई भी मर जाए, चित्त पर कोई चोट नहीं पहुंचेगी। - 123
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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