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ताओ उपनिषद भाग २
कभी आपने खयाल न किया हो, लेकिन शायद कभी खयाल आया भी हो, या पीछे लौट कर प्रत्यभिज्ञा हो जाए, जब भी आपको कोई बहुत गहरी खबर सुनाता है, खुशी की या दुख की, तो चोट नाभि पर लगती है। रास्ते पर आप चले जा रहे हैं, साइकिल पर या कार में और एकदम एक्सीडेंट होने की हालत आ गई, आपने खयाल किया है कि पहली चोट नाभि पर लगती है, धड़ से नाभि पर चोट जाती है। नाभि कंपित होती है, तभी सब कुछ कंपित होता है।
लाओत्से कहता है, जब भी कुछ हो, तो आप सचेतन रूप से पहले नाभि पर जाएं। पहला काम नाभि, फिर दूसरा कोई भी काम। तो न सुख आपको सुखी कर पाएगा इतना कि आप पागल हो जाएं, न दुख आपको दुखी कर पाएगा इतना कि आप दुख से एक हो जाएं। तब आपका केंद्र अलग और परिधि पर घटने वाली घटनाएं अलग रह जाएंगी। और आप साक्षी मात्र रह जाएंगे। योग कहता है, साक्षी की साधना करो। लाओत्से कहता है, सिर्फ नाभि को सतत स्मरण रखो, साक्षी की घटना फलित हो जाएगी, घटित हो जाएगी।
यह जो नाभि का केंद्र है, जिस दिन ठीक-ठीक पता चल जाए, उसी दिन आप मृत्यु और जन्म के बाहर हो जाते हैं। क्योंकि जन्म के पहले यह नाभि का केंद्र आता है; और मृत्यु के बाद यही बचता है, बाकी सब खो जाता है। तो जो व्यक्ति भी इस केंद्र को जान लेता है, वह जान लेता है, न तो मेरा जन्म है और न मेरी मृत्यु है। वह अजन्मा और अमृत हो जाता है।
__ सतत स्मरण रखें। केंद्र को खोजें, सतत स्मरण रखें। पहली बात, केंद्र को खोज लें। दूसरी बात, स्मरण रखें। तीसरी बात, बार-बार जब स्मरण खो जाए, तो स्मरण खोता है इसका भी स्मरण रखें। वह थोड़ा कठिन पड़ेगा।
जैसे कि आप किसी चीज पर ध्यान दे रहे हैं। तो लोग मेरे पास आते हैं, वे कहते हैं, हमने नाभि पर ध्यान दिया, लेकिन वह खो जाता है। फिर क्या करें? तो उनसे मैं कहता हूं, खो गया, इसको भी स्मरण रखें कि अब खो गया। इसको भी ध्यान का हिस्सा बनाएं। बी अटेंटिव ऑफ दि इनअटेंशन आल्सो। वह जो घटना घट रही है खोने की, उसको भी ध्यानपूर्वक! उसको भी गैर-ध्यानपूर्वक मत खोने दें। जब भी चूक जाएं, तत्काल स्मरण करें कि चूक गया। वापस लौट जाएंगे, कुछ और करने की जरूरत नहीं, सिर्फ इतना स्मरण कि चूक गया, स्मरण वापस लौटे आएगा, धारा फिर जुड़ जाएगी।
और चौथी बात, जब स्मरण पूरा हो जाए, केंद्र स्पष्ट दिखाई पड़ने लगे, अनुभव होने लगे, तो सब कुछ केंद्र के लिए समर्पित कर दें, सरेंडर कर दें। उस केंद्र को ही कह दें कि तू ही मालिक है, अब मैं छोड़ता हूं। और यह आसान हो जाता है।
समर्पण बहुत कठिन है, जब तक केंद्र का पता न हो। लोग कहते हैं, परमात्मा के लिए समर्पण कर दो। लेकिन परमात्मा का कोई पता नहीं। जिसका पता नहीं, उसके लिए समर्पण कैसे कर दो? और परमात्मा आ भी जाए, तो भी समर्पण आपको करना हो, तो मालिक तो आप ही बने रहते हैं समर्पण के भी। अगर कल दिल नाराज हो जाए और लगे कि यह परमात्मा कुछ अपनी मनपसंद का नहीं, तो अपना समर्पण वापस ले ले सकते हैं कि छोड़ो, हमने अपना समर्पण वापस लिया। देने वाले हम थे, ले भी हम सकते हैं। क्या, परमात्मा करेगा क्या? अगर आप अपना समर्पण वापस ले लें, तो परमात्मा करेगा क्या? तो जो समर्पण वापस भी लिया जा सकता है, वह समर्पण तो नहीं है। वह दिया ही नहीं गया कभी।
लाओत्से की प्रक्रिया अलग है। लाओत्से कहता है, जिस दिन इस केंद्र का पता चलता है, उस दिन समर्पण करना नहीं पड़ता, आपको अनुभव होने लगता है कि केंद्र मालिक है ही, मेरे बिना केंद्र सब कुछ कर रहा है। श्वास ले रहा है, छोड़ रहा है; जीवन की धारा चल रही है; नींद आ रही है, जागरण आ रहा है; जन्म हो रहा है, मृत्यु हो रही है; सब केंद्र कर रहा है मेरे बिना कुछ किए। तो अब समर्पण का क्या सवाल है? समर्पण हो जाता है।
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