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________________ ताओ उपनिषद भाग २ 122 घड़ी की आवाज सुनते रहें, नींद आ जाएगी। नींद की सलाह देने वाले लोग कहते हैं कि घड़ी की आवाज सुनना काफी ट्रैक्वेलाइजिंग है। और उसका कुल कारण इतना है कि नौ महीने तक बच्चा सोया रहा और टिक-टिक की आवाज, मां की धड़कन, उसको सुनाई पड़ती रही। कोई हृदय भी बच्चे के पास नहीं है, लेकिन फिर भी जीवन है। इसलिए लाओत्से कहता है: नाभि केंद्र है, न तो हृदय और न मस्तिष्क । नाभि से ही बच्चा मां से जुड़ा होता है। इसलिए जीवन की पहली झलक नाभि है। और वह ठीक है । वह वैज्ञानिक रूप से ठीक है। तो अपने भीतर खोजें। और लाओत्से कहता है, साधना की पहली बात यह है कि खोजते खोजते नाभि के पास अपने केंद्र को ले आएं। जिस दिन आपका असली केंद्र और आपकी धारणा का केंद्र एक हो जाएगा, उसी दिन आप इंटिग्रेटेड हो जाएंगे। जिस दिन फोकस मिल जाएगा, आपके चित्त का केंद्र, सोचने का केंद्र और आपका असली केंद्र जिस दिन करीब आकर मिल जाएंगे, उसी दिन आप पाएंगे कि आपकी जिंदगी बदल गई। आप दूसरे आदमी हो गए। ए न्यू ग्रेविटेशन, एक नई कशिश आपकी दुनिया में आ जाएगी। लाओत्से को मानने वाले एक छोटा सा प्रयोग सदियों से करते रहे हैं। और वह प्रयोग बड़ा बढ़िया है। वे कहते हैं कि जब तक आपके भीतर केंद्र का ही आपको पता नहीं है, यू कैन नॉट ग्रो, तब तक आपमें कोई विकास नहीं हो सकता। तो वे एक छोटा सा प्रयोग करते हैं। दो छोटे से आप हौज बना लें और पानी भर दें । बराबर एक मात्रा के हौज, एक सा पानी । एक हौज में एक लोहे का डंडा लगा दें बीच में केंद्र पर। और एक हौज में डंडा न लगाएं, खाली रखें, बिना केंद्र का। दो मछलियां, एक ही उम्र की, उन दोनों में छोड़ दें। आप हैरान होंगे, जिसमें डंडा लगा हुआ है, उसकी मछली जल्दी बढ़ेगी; और जिसमें डंडा नहीं लगा है, उसकी मछली जल्दी नहीं बढ़ेगी। जिसमें डंडा लगा हुआ है, वह मछली उसका चक्कर लगाती रहेगी दिन-रात । केंद्र है और केंद्र के आस-पास वह घूमती चली जाती है, घूमती चली जाती है। जिस हौज में डंडा नहीं लगा है, उसकी मछली इधर-उधर भटकती रहेगी। कहीं कोई केंद्र नहीं है, जिसके आस-पास घूम सके। उसकी ग्रोथ नहीं होगी, वह स्वस्थ नहीं होगी, बीमार रह जाएगी। यह हजारों साल से चलता हुआ प्रयोग है और सदा इसका एक ही परिणाम होता है कि जिसमें केंद्र है जिस हौज में, उसकी मछली स्वस्थ, जल्दी विकसित होती है, ज्यादा ताजी, ज्यादा जीवंत होती है। लाओत्से को मानने वाले कहते हैं कि जिस व्यक्ति को अपने केंद्र का पता चल जाता है, उसकी चेतना उस केंद्र का इसी मछली की तरह चक्कर लगाने लगती है । और तब चेतना में विकास शुरू हो जाता है। जिनको केंद्र ही पता नहीं है, वे उस मछली की तरह रह जाएंगे -बेजान, लोच, निर्जीव । क्योंकि कोई केंद्र नहीं है, जिसके आस-पास वे घूम सकें और विकसित हो सकें। उनको दिशा ही नहीं मालूम पड़ेगी - कहां जाएं? क्या करें ? क्या हो जाएं? भटकेंगे वे भी । एक ही परिधि पर निरंतर परिभ्रमण से चेतना विकसित होती है। तो लाओत्से कहता है कि यह जो नाभि का केंद्र है, आपको पता चल जाए, तो आपकी चेतना को एकाग्र गति मिल जाती है - ए कनसनट्रेटेड मूवमेंट आपकी चेतना फिर वहीं घूमती रहती है। लाओत्से कहता है, चलो, लेकिन ध्यान नाभि का रखो। बैठो, ध्यान नाभि का रखो। उठो, ध्यान नाभि का रखो। कुछ भी करो, लेकिन तुम्हारी चेतना नाभि के आस-पास घूमती रहे। एक मछली बन जाओ और नाभि के आस-पास घूमते रहो। और शीघ्र ही तुम पाओगे कि तुम्हारे भीतर एक नई शक्तिशाली चेतना का जन्म हो गया । इसके अदभुत परिणाम हैं। और इसके बहुत प्रयोग हैं। आप यहां एक कुर्सी पर बैठे हुए हैं। लाओत्से कहता है कि आपके कुर्सी पर बैठने का ढंग गलत है। इसीलिए आप थक जाते हैं। लाओत्से कहता है, कुर्सी पर मत बैठो। इसका यह मतलब नहीं कि कुर्सी पर मत बैठो, नीचे बैठ जाओ। लाओत्से कहता है, कुर्सी पर बैठो, लेकिन कुर्सी पर वजन मत डालो। वजन अपनी नाभि पर डालो।
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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