SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऐंद्रिक भूख की बठी-बाभि-केंद्र की आध्यात्मिक भूनच की फिक जिसके पीछे यह दौड़ रहा है, वह है ही नहीं। इसलिए दुष्पूर है, यह कभी पहुंचेगा नहीं। हमेशा दौड़ सकता है और हमेशा मान सकता है कि आगे अगर थोड़ा और दौड़ जाऊं, तो मिल जाएगा। जो भी हम जीवन में पा रहे हैं, वह वैसा ही दुष्पूर है। मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन ने पहली शादी की। तो उसने अपने नगर की जो सुंदरतम स्त्री थी, उससे विवाह किया। लेकिन दो साल बाद फिर वह नई पत्नी की तलाश में घूमने लगा। तो उसके मित्रों ने कहा कि अब क्या मामला है? तुमने सुंदरतम स्त्री को ब्याहा, अब तो गांव में उससे सुंदर कोई भी नहीं! मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा कि अब मैं सबसे कुरूप स्त्री से विवाह करना चाहता हूं। क्योंकि सुंदर को देख लिया। जो पाया, वह सिवाय दुख के और कुछ भी नहीं है। तो अब मैं सबसे कुरूप स्त्री से विवाह करना चाहता हूं। लोगों ने कहा, पागल हुए हो! जब सुंदर से सुख न मिला, तो कुरूप से क्या खाक मिलेगा! पर नसरुद्दीन ने कहा कि जरा विपरीत स्वाद, शायद! यह ढोल सुहावना सिद्ध हुआ, लेकिन ढोल निकला। अब जरा हम विपरीत को खोजें। नहीं माना, ढूंढ़ कर उसने एक कुरूप स्त्री से शादी कर ली। दो साल बाद वह फिर तलाश में था। मित्रों ने कहा, क्या पागल हो गए हो? अब तो तुमने दोनों अनुभव ले लिए, जो कि बड़े असंभव हैं जगत में। सुंदरतम और कुरूपतम को, तुमने दोनों को पा लिया। अब तुम किसकी तलाश कर रहे हो? नसरुद्दीन ने कहा कि अब की बार जब मैं आऊंगा विवाह करके, तभी तुम देखना।। बड़ी सनसनी रही गांव में। ऐसे सनसनी का आदमी था, अब यह क्या करेगा? एक दिन आखिर बैंड-बाजा बजाता हुआ, घर के सामने पालकी लेकर हाजिर हो गया। सारा गांव इकट्ठा हो गया। नसरुद्दीन बड़ी अकड़ से अपने घोड़े पर बैठा हुआ है। दूल्हे का पूरा साज बना रखा है। लोग एकदम दीवाने और उतावले हुए जा रहे हैं कि डोली उतारी जाए, देखी जाए, किससे विवाह कर लाया है! डोली उतारी गई, खोली गई, वह खाली थी। उसमें कोई भी नहीं था। नसरुद्दीन ने कहा कि अब खाली डोली से विवाह कर आया हूं। हर बार भर कर डोली लाया, दुख उठाया। अब इस बार खाली डोली ले आया हूं। और कहते हैं कि नसरुद्दीन अपनी वसीयत में लिख गया है कि जो उन दो स्त्रियों से नहीं पाया, वह खाली डोली से पाया। बड़ी शांति मिली; बड़ा सुख पाया। . खाली डोली से मिल सकता है। खाली डोली से मिल सकता है। क्योंकि जो खाली डोली को विवाह करने गया, उसकी मृग-मरीचिका टूट गई। हम बदलते रहते हैं एक आब्जेक्ट से दूसरा, दूसरे से तीसरा, तीसरे से चौथा। हर बार बदल लेते हैं वस्तु को, विषय को। लेकिन दौड़ जारी रहती है। यह दौड़ दुष्पूर है। यह कभी भर नहीं सकती। ऐसा नहीं है कि किसी और के साथ भर जाती, यह भर नहीं सकती। यह वासना का स्वभाव ही दुष्पर है। 'लेकिन संत उस भूख की चिंता करते हैं, जो कि नाभि के अंतरस्थ केंद्र में निहित है।' उस भूख की चिंता करते हैं, जो कि नाभि के अंतरस्थ केंद्र में निहित है! मैंने पीछे आपको कहा कि लाओत्से, अस्तित्व का मूल केंद्र नाभि के निकट मानता है। और ठीक मानता है। तो एक तो हमारे बाहर इंद्रियों का फैलाव है। इन इंद्रियों का सारा का सारा संबंध मस्तिष्क से है। ध्यान रहे, आंख तो मस्तिष्क में है ही, तो उसका संबंध है; कान भी मस्तिष्क में है, उसका संबंध है; लेकिन आप जान कर हैरान होंगे कि जननेंद्रिय, सेक्स की वासना तो सिर में नहीं जुड़ी है, लेकिन वह भी मन से ही संबंधित है। इसलिए मन में जरा सी कामवासना उठे कि कामवासना का केंद्र सक्रिय हो जाता है-जरा सी वासना! तो समस्त इंद्रिय और वासनाएं मस्तिष्क में ही संयुक्त हैं। और हमारी चेतना को भी हम मस्तिष्क में ही बिठाए हुए हैं। 111
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy