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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free ऋषियों ने हिंदू धर्म के आधार रखे, वे कहते थे, हम कौन हैं किसी को कनविंस करने वाले! हम कौन हैं कि किसी को समझा कर बदल दें! हम कौन हैं कि किसी को कनवर्ट करें! कि उससे कहें कि तू हिंदू हो जा! हम ही नहीं हैं। तो अगर कोई पतंजलि के पास जाए, या वशिष्ठ के पास जाए, या याज्ञवल्क्य के पास जाए, तो समझा देंगे; जो पूछेगा, बता देंगे। फिर बात समाप्त हो गई। लेना-देना नहीं है। वह माना कि नहीं, इसका भी कोई हिसाब नहीं रखना है। वह राजी होकर मेरे पीछे चला कि नहीं, इसका भी कोई हिसाब नहीं रखना है। मैं हूं ही नहीं। मेरे पीछे चलने का सवाल क्या है? तुमने उठाया था सवाल, अगर मेरे प्राणों में जवाब उठा तो दे दिया, नहीं उठा तो नहीं दिया। वह भी मैंने दिया है, ऐसा नहीं। अगर आप लाओत्से से सवाल पूछे, तो जरूरी नहीं है कि जवाब आए। लाओत्से कहेगा, आएगा जवाब तो दे दूंगा, और नहीं आएगा तो क्षमा मांगता हूं। कई बार लाओत्से के पास लोग कष्ट में पड़ गए हैं। कोई बहुत दूर से यात्रा करके आया है और लाओत्से से सवाल पूछता है। और लाओत्से कहता है, लेकिन जवाब तो आता नहीं है मित्र! वह आदमी कहता है, मैं बहुत दूर से आ रहा हूं, मीलों चल कर आ रहा हूं। लाओत्से कहता है, तुम कितने ही मीलों चल कर आओ, लेकिन जो जवाब मेरे भीतर नहीं आता उसे मैं कहां से लाऊं! तुम रुको। आ जाए, तो मैं तुम्हें दे दूं। न आ जाए, तो तम क्षमा करना। कनवर्शन, दूसरे को बदलने की भी चेष्टा नहीं है। जैसे सूरज निकला, और किसी फूल को खिलना हो तो खिल जाए और न खिलना हो तो न खिले। जो फूल नहीं खिले, वे सूरज के मत्थे नहीं मढ़ जाएंगे। कल कोई परमात्मा सूरज से नहीं पूछ सकेगा कि इतने फूल नहीं खिले, उस दिन तुम सुबह निकले थे, उसका जिम्मा? और जो फूल खिल गए, उनका भी गौरव लेने के लिए सूरज किसी दिन परमात्मा के सामने हाथ फैला कर खड़ा नहीं होगा, कि इतने फूल खिल गए थे जब मैं निकला था! सूरज का काम है निकलना। फूल को खिलना हो, खिल जाए। वह फूल का काम है। सूरज निकलता है और चला जाता है। ऐसे लाओत्से जैसे व्यक्ति आते हैं और चले जाते हैं। व्यवस्था भी नहीं करते, संदेश भी नहीं देते। फिर भी जो लेने की तैयारी हो किसी की, तो उनसे संदेश मिल जाता है। और कोई अपने को व्यवस्थित करवाना चाहे, तो उनकी मौजूदगी में व्यवस्थित हो जाता है। लेकिन ये सारी घटनाएं हैपनिंग हैं। ये सारी घटनाएं नियोजित कर्म नहीं हैं। ये सहज फलीभूत होने वाली, सहज घट जाने वाली घटनाएं हैं। यह हमें खयाल में आना बहुत कठिन होता है। क्योंकि हमने कभी जीवन में ऐसा कोई काम नहीं किया, जो बिना किए किया हो। और हमने कभी कोई ऐसी बात नहीं कही, जो बिना कहे कही हो। इसलिए हमारे आयाम में, हमारे अनुभव में यह बात कहीं नहीं आती। लेकिन मैं आपसे कहता हूं, कुछ प्रयोग करके देखें। और आप पाएंगे कि आपके बात यह अनुभव में आनी शुरू हो गई। जैसे आप चाहते हों कि आपके घर में शांति हो, तो व्यवस्था मत दें, सिर्फ आप शांत होते चले जाएं। मैनेज मत करें। मैनेज करने वाले से कभी कुछ व्यवस्थित नहीं होने वाला है। आप सिर्फ शांत हो जाएं। अगर आप घर में शांति चाहते हैं, दस सदस्यों का परिवार है, आप चाहते हैं, घर में शांति हो, आप सिर्फ शांत हो जाएं। और थोड़े ही दिन में आप पाएंगे कि घर में अनूठी शांति उतरनी शुरू हो गई। न मालूम अनजाने रास्तों से, न मालूम अनजाने दवारों और झरोखों से शांति घर में उतरने लगी। जिनमें आपको कल सब अशांति-अशांति का उपाय दिखता था, वे भी शांत होते हुए मालूम होने लगे हैं। आप सिर्फ शांत होते जाएं, और साल भर बाद आप देखेंगे कि घर चारों तरफ शांत हो गया। और आपने कहीं भी कुछ किया नहीं। अगर कुछ किया, तो अपने भीतर किया। असल में, शांत व्यक्ति अपने चारों तरफ शांति की तरंगें पैदा करने लगता है। अशांत व्यक्ति अपने चारों तरफ पूरे समय रेडिएशन कर रहा है, किरणें फेंक रहा है अशांति की। अब तो वैज्ञानिकों ने उपाय...। अभी एक फ्रेंच वैज्ञानिक ने एक मशीन बनाई है, जो व्यक्ति को सामने खड़ा करके बता सकती है कि इस व्यक्ति के आस-पास अशांति फैलती है या शांति। उस व्यक्ति के शरीर से जो किरणें निकलती हैं, वे सामने की उस मशीन पर टकराती हैं और वह मशीन इतनी खबर देती है कि किस वेवलेंथ की किरणें इस व्यक्ति के शरीर से रेडिएट होती हैं। और हर तरह के रेडिएशन की अलग वेवलेंथ है। और हर वेवलेंथ का अलग परिणाम है। और बड़े मजे की बात है कि वह आदमी वहीं सामने खड़ा है, आप उसके कान में जाकर कह दें कि तुम्हें पता है, तुम्हारी पत्नी पड़ोसी के साथ भाग गई! फौरन उसका रेडिएशन बदल जाता है। वह मशीन फौरन खबर देती है कि रेडिएशन बदल गया। अब यह आदमी आग से जला जा रहा है। यह किसी की हत्या कर दे, ऐसी इसकी भीतरी स्थिति हो गई है। या आप उसके कान में आकर कह दें कि तुम्हें लाटरी मिल गई, कुछ पता है! उसका सारा रेडिएशन और हो जाता है। पूरे समय, हमारा शरीर जो है, एक रेडिएटर है। हम सब छोटे-छोटे न्यूक्लियस हैं, जिनसे चौबीस घंटे हजारों तरह की किरणें बाहर फेंकी जा रही हैं। और बड़े मजे की बात यह है कि जब हम किरणें फेंकते हैं और दूसरे से प्रतिफलित होकर लौटती हैं, तो हम समझते हैं, वह दूसरा हम पर क्रोध कर रहा है। अगर मैं अपने चारों तरफ ऐसी किरणें फेंक रहा हं जो दूसरे से लौट कर क्रोध बन जाएंगी, तो मुझे लगेगा कि दूसरा आदमी मुझ पर क्रोध कर रहा है। जब कि मैं यह कभी खयाल न करूंगा कि मैं जो भी उपाय कर रहा हूं अपने व्यक्तित्व से, वे ऐसे हैं कि दूसरे से लौट कर किरणे क्रोध बन जाएंगी। और हम सब यही कर रहे हैं। और एकाध आदमी नहीं, सब जब ऐसा कर रहे हों, तो एक घर में दस आदमी हैं, तो उपद्रव दस गुना; दस गना नहीं, बल्कि गणनफल हो जाता है; कछ हिसाब ही नहीं रहता उसका कि कितना उपद्रव मच जाता है-एक से दूसरे, दुसरे से तीसरे, और लौट रही हैं, और जा रही हैं-एक जाल बन जाता है। उस जाल में हम जीते हैं। और फिर हम मैनेज करते हैं। और यह परेशान आदमी, उपद्रव से भरा आदमी शांति के लिए स्थापना करने के उपाय करता है। और अशांति खड़ी कर देता है। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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