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करता। क्योंकि जो सक्रिय नहीं हुआ, वह द्वंद्व के जगत में नहीं आया। ऐसा प्रेम सिर्फ प्रेम ही होता है। और ऐसा प्रेम कभी समाप्त नहीं होता; क्योंकि जो शुरू ही नहीं हुआ समय की धारा में, वह समय की धारा में समाप्त भी नहीं होगा।
पर ऐसे प्रेम को पहचानना अति कठिन है। क्योंकि हम शब्दों को पहचानते हैं। हम कर्मों को पहचानते हैं। कोई व्यक्ति कहे कि मैं प्रेम करता हूं, तो समझ में आता। कोई ऐसा कर्म करे प्रेम करने जैसा, तो समझ में आता। अगर निष्क्रिय प्रेम हो, अनभिव्यक्त प्रेम हो, अघोषित प्रेम हो, तो हमारे खयाल में ही नहीं आता। हम समझेंगे, नहीं है। इसलिए बहुत बार ऐसा हुआ कि इस पृथ्वी पर ठीकठीक प्रेमी नहीं पहचाने जा सके।
जीसस एक गांव से गुजर रहे हैं। और एक वृक्ष के तले विश्राम किया है। वह वृक्ष उस जमाने की बड़ी वेश्या मेग्दालीन का वृक्ष है, उसका बगीचा है। उसने अपनी खिड़की से झांक कर जीसस को देखा, जब वह जाने के करीब थे विश्राम करके। उसने बहुत लोग देखे थे, इतना सुंदर व्यक्ति नहीं देखा था। एक सौंदर्य है जो शरीर का है, और जो थोड़े ही परिचय से विलीन हो जाता है। और एक सौंदर्य है जो आत्मा का है, जो परिचय की गहराई से गहन होता जाता है। एक सौंदर्य है जो आकृति का है। और एक सौंदर्य है जो अस्तित्व का है। उसने बहुत सुंदर लोग देखे थे। मेग्दालीन सुंदरतम स्त्रियों में एक थी। सम्राट उसके द्वार पर दस्तक देते थे। सम्राटों को भी सदा द्वार खुला हुआ नहीं मिलता था। जीसस को देख वह मोहित हो गई। वह निकली अपने भवन के बाहर, जाते हुए युवक को रोका और जीसस से कहा, भीतर आएं, मेहमान बनें मेरे।
जीसस ने कहा, अब तो मेरा विश्राम पूरा हो चुका। कभी फिर तुम्हारे राह पर थक जाऊंगा, तो अब वृक्ष के नीचे विश्राम न करके भीतर आ जाऊंगा। पर अब तो मेरे जाने का समय हुआ।
मेग्दालीन के लिए यह भारी अपमान था। वह सोच भी नहीं सकती थी कि एक भिखारी जैसा युवक हतप्रभ न हो जाएगा उसे देख कर! बड़े सम्राट उसे देख कर होश खो देते थे। और जीसस ने अपना झोला उठा लिया, वे चलने को तत्पर हो गए। मेग्दालीन ने कहा, युवक, यह अपमानजनक है! यह पहला मौका है कि मैंने किसी को निमंत्रण दिया है। क्या तुम इतना भी प्रेम मेरे प्रति प्रकट न करोगे कि दो क्षण मेरे घर में रुक जाओ?
जीसस ने कहा, जो तुम्हारे पास प्रेम प्रकट करने आते हैं, फिर से सोचना, उन्होंने तुम्हें कभी प्रेम किया है? जिन्होंने प्रकट किया है, उन्होंने कभी प्रेम किया है? मैं ही हं अकेला जो प्रेम कर सकता हूं। लेकिन अभी तो मेरे जाने का समय हुआ।
मेग्दालीन नहीं समझ पाई होगी जीसस का यह कहना कि मैं ही हूं अकेला जो प्रेम कर सकता हूं, लेकिन अभी तो मेरे जाने का समय हुआ। सैकड़ों वर्ष तक जीसस के इस वक्तव्य पर विचार होता रहा है कि जीसस का क्या मतलब था कि मैं ही हूं अकेला जो प्रेम कर सकता हूं। अगर ऐसा था, तो प्रेम प्रकट करना था। यह वक्तव्य भी बिलकुल इम्पर्सनल है, अवैयक्तिक है। जीसस ने यह नहीं कहा कि मेग्दालीन, मैं तुझे प्रेम करता हूं। जीसस ने कहा, मैं ही हूं अकेला जो प्रेम कर सकता हूं। यह किसी व्यक्ति के प्रति कही गई बात नहीं थी। सूचक थी। और अगर प्रेम था, तो थोड़ा सा कृत्य करके दिखाना था! इतना ही कृत्य करते कि उसके घर के भीतर चले जाते। यह कैसा प्रेम था?
फिर दुबारा कभी जीसस उस वृक्ष के नीचे भी नहीं रुके और दुबारा कभी मेग्दालीन के घर में भी नहीं गए। दुबारा उस रास्ते से गुजरने का मौका ही न आया। वह जीसस का जो वक्तव्य था कि मैं ही हूं अकेला जो प्रेम कर सकता हूं, वह न तो क्रिया बना और न व्यक्ति के प्रति घोषणा बना। पर उसका अर्थ क्या था?
लाओत्से को समझेंगे तो खयाल में आएगा। फिर भी, लाओत्से शायद इतना भी न कहता कि मैं ही हूं अकेला जो प्रेम कर सकता हूं। लाओत्से इतना भी न कहता। क्योंकि इतना भी बहुत हो गया। इतने में भी रूप मिल गया, आकृति बन गई। इतने में भी व्यक्त हो गई बात और समय की धारा में प्रवेश कर गई। लाओत्से चुपचाप ही चल देता; लाओत्से उत्तर भी न देता। क्योंकि लाओत्से कहता है कि जैसे ही हम कुछ प्रकट करते हैं, उससे विपरीत निर्मित हो जाता है, तत्क्षण! जैसे मैं बोलता हूं और पर्वत से प्रतिध्वनि गूंज जाती है, ऐसे ही। यहां प्रेम, वहां घृणा संगृहीत होने लगती है! यहां दया, वहां कठोरता की पर्ते जमने लगती हैं! यहां अहिंसा, वहां हिंसा निवास बनाने लगती है! हम जो भी करते हैं, उससे विपरीत से नहीं बच सकते हैं।
इसलिए एक बहुत अनूठी घटना घटती है कि जिसे भी हम प्रेम करते हैं, उसी से हम पीड़ा पाते हैं। जो भी किसी को प्रेम करेगा, वह उसी से पीड़ा पाएगा जिससे प्रेम करेगा। प्रेम से पीड़ा नहीं मिलनी चाहिए। लेकिन प्रेम प्रकट होकर तत्काल अप्रेम को पैदा कर देता है। अप्रेम से पीड़ा मिलती है।
लाओत्से कहता है, जो ज्ञानी हैं, जो जानते हैं, जिन्हें इस राज का पता है कि अस्तित्व में किसी भी चीज को बनाओ, विपरीत बन जाता है-इससे बचने का कोई उपाय नहीं है, इससे अन्यथा हो ही नहीं सकता, यही नियम है-वे क्या करेंगे?
वे व्यवस्था तो करते हैं, लेकिन बिना क्रिया के व्यवस्था करते हैं।
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