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होती। सब चीजें एंडलेस, बिगनिंगलेस हैं। सिर्फ हम जो चीजें बनाते हैं, वे शुरू होती हैं और अंत होती हैं। तो लाओत्से के जो चित्रकार चित्र बनाते हैं, वे कहीं से भी शुरू हो सकते हैं, कहीं भी समाप्त हो सकते हैं।
नई चित्रकला में वह बात प्रवेश कर रही है। नई कथा में वह बात प्रवेश कर रही है। कथा कहीं से भी शुरू होती है। पुरानी कथा देखिए। एक था राजा-वहीं से शुरू होती थी। एक बिगनिंग थी। और एक अंत था कि विवाह हो गया, फिर वे दोनों सुख से रहने लगे। बस यहां सब चीजें इस फ्रेम के बीच में पूरी होती थीं। नई कथा कहीं से भी शुरू होती है; नई कथा कहीं भी पूरी हो जाती है। सच पूछा जाए, तो नई कथा पूरी होती नहीं, शुरू होती नहीं, एक फ्रैगमेंट है। क्योंकि लाओसियन जो खयाल है, वह यह है कि हम कुछ भी कहें, वह एक फ्रैगमेंट होगा। वह पूरा नहीं हो सकता। हम खुद ही पूरे नहीं हैं। सब चीजें खंड ही हैं। तो खंड ही रहने दो, फिर उनको पूर्ण करने की नाहक चेष्टा मत दिखलाओ। अन्यथा विकृति होती है, कुरूप हो जाता है सब।
काव्य में, चित्र में, संगीत में, स्थापत्य में, मूर्ति में, विज्ञान में सब तरफ से पूरब का मन प्रवेश कर रहा है। पश्चिम बहुत आक्रांत है, पश्चिम बहुत भयभीत है। हरमन हेस ने कहीं लिखा है कि पश्चिम को पता चलेगा शीघ्र कि तुमने पूरब के ऊपर हमला करके जो विजय पा ली थी, वह बहुत थोड़े दिन की सिद्ध हुई। लेकिन जिस दिन पूरब अपनी पूरी अंतर-भावनाओं को लेकर हमला कर देगा, उस दिन उनकी विजय स्थायी हो सकती है। तुमने जो विजय पा ली थी, वह बहुत ऊपरी ही सिद्ध होने वाली थी, क्योंकि वह बंदूक के कुंदे पर थी। लेकिन अगर कभी पूरब अपने पूरे अनुभव को, जो उसने हजारों वर्षों में पाला है, लेकर हमला करेगा...। निश्चित ही, उसका हमला भी और तरह का होगा। क्योंकि अनुभूति हमला नहीं करती, चुपचाप न मालूम किस कोने से प्रवेश कर जाती है। वह प्रवेश कर रही है।
पश्चिम आक्रांत है। और पश्चिम को यह बात रोज-रोज अनुभव हो रही है कि उसके मापदंड हिल रहे हैं। उसने जो तय किया था, वह कंप रहा है। और पूरब बड़े जोर से, जैसे आकाश में अचानक बादल छा जाएं, ऐसा छाता जा रहा है। वह धीरे-धीरे पूरे पश्चिम को घेर लेगा। स्वाभाविक भी है, क्योंकि पश्चिम की पूरी पकड़, ठीक से हम समझें, तो बहुत ऊपरी है, सुपरफीशियल है, सतह पर है। और सतह पर है, इसीलिए पश्चिम जल्दी सफल हो सका। पूरब की सारी पकड़ इतनी आत्मगत और गहरी है कि जल्दी सफल नहीं हो सकता।
ध्यान रहे, मौसमी फूल चार महीने में लग जाते हैं, दो महीने में लग जाते हैं। स्थायी फूल लगाने हों तो वर्षों लगते हैं। पूरब की पकड़ गहरी है। इसलिए बहुत, हजारों वर्ष लगते हैं, तब कहीं पूरब की एकाध धारणा विजय पाती है। पश्चिम की धारणाएं बहुत ऊपरी हैं। सौ वर्ष में एक धारणा विजय पा सकती है और अस्त हो सकती है। लेकिन पूरब प्रतीक्षा कर सकता है। पूरब बहुत प्रतीक्षा कर सकता है,
और मौका देख सकता है कि जब मौका आएगा और पश्चिम पराजय के किनारे खड़ा हो गया है और पराजय के किनारे खड़ा है, तब पूरब ने जो जाना है, वह वापस फैल जा सकता है। लाओत्से पूरब की अंतरतम प्रज्ञा है, दि इनरमोस्ट विजडम! जो सारभूत है पूरब का, वह लाओत्से में छिपा है।
संतुलन नहीं होगा, समन्वय नहीं होगा। लाओत्से की धारणा पर एक नए विज्ञान का जन्म हो सकता है। और जल्दी होगा। क्योंकि बहुत सी बातें हैं, जो कि आपके खयाल में एकदम से नहीं आ सकतीं। जैसे यूक्लिड की ज्यामेट्री पश्चिम का आधार थी अब तक। सारे विज्ञान के नीचे जो गणित का फैलाव था, वह यूक्लिडियन था। और कोई सोच भी नहीं सकता था कि नॉन-यूक्लिडियन ज्यामेट्री उसको बदल देगी। कभी कोई नहीं सोच सकता था। लेकिन पिछले डेढ़ सौ वर्षों में यूक्लिड के आधार हिल गए और उसकी जगह नॉन-यूक्लिडियन ज्यामेट्री आ गई। अब नॉन-यूक्लिडियन ज्यामेट्री बिलकुल लाओत्सियन है। कोई जानता नहीं है कि वह लाओत्सियन है, वह बिलकुल लाओत्सियन है।
यूक्लिड कहता है, दो समानांतर रेखाएं कहीं नहीं मिलती हैं। नॉन-यूक्लिडियन ज्यामेट्री कहती है कि दो समानांतर रेखाएं मिली ही हुई हैं। तो अब लाओत्सियन सूत्र जो है न-मिली ही हुई हैं! तुम्हारे खींचने की कमजोरी है कि तुम आखिर तक नहीं खींचते, अन्यथा वे मिल जाएंगी। तुम खींचे चले जाओ, एक वक्त आएगा, वे मिल जाएंगी। तुम बहुत निकट देखते हो, दूर नहीं देखते। लेकिन दूर निकट का हिस्सा है। और अब स्वीकार करना पड़ रहा है कि अगर कोई भी तरह की दो समानांतर पैरेलल रेखाएं अंतहीन बढ़ाई जाएं, तो मिल जाएंगी।
यूक्लिड कहता है कि किसी भी वर्तुल, किसी भी सर्किल का कोई खंड स्ट्रेट लाइन नहीं हो सकता। कैसे होगा? एक वर्तुल है। उसका हम एक टुकड़ा तोड़ें, तो वह घूमा ही हुआ होगा, स्ट्रेट नहीं हो सकता। नॉन-यूक्लिडियन ज्यामेट्री कहती है कि सब स्ट्रेट लाइन भी किसी बड़े वर्तुल का हिस्सा हैं। कितनी ही सीधी रेखा खींचो, अगर तुम दोनों तरफ खींचते चले जाओगे, बड़ा वर्तुल निर्मित हो जाएगा।
और अब स्वीकार करना पड़ रहा है कि वह बात ठीक है। क्योंकि इस पृथ्वी पर हम कोई भी सीधी रेखा खींचें, चूंकि पृथ्वी गोल है...। अगर मैं इस कमरे में, यह हमारा कमरा बिलकुल सीधा दिखाई पड़ रहा है न! यह रेखा बिलकुल सीधी है। लेकिन पृथ्वी गोल है, तो यह रेखा सीधी हो नहीं सकती। यह गोल पृथ्वी का, बहुत बड़ा गोल है, उसका एक छोटा सा खंड है। अगर हम किसी भी सीधी रेखा को खींचते ही चले जाएं दोनों तरफ, तो अंत में वर्तुल निर्मित हो जाएगा। इसका मतलब हुआ कि सब सीधी रेखाएं वर्तुल के खंड हैं। और यूक्लिड कहता था कि कोई वर्तुल का खंड सीधी रेखा नहीं हो सकता।
यूक्लिड की ज्यामेट्री की जगह नॉन-यूक्लिडियन ज्यामेट्री आ गई है।
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