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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free संतुलन नहीं हो पाएगा, समन्वय भी नहीं हो पाएगा। हां, लाओत्से का विज्ञान अगर निर्मित होना शुरू हो जाए, तो आधुनिक विज्ञान जो आज तक विकसित हुआ है, उसमें धीरे-धीरे आत्मसात हो जाएगा। क्योंकि यह सिर्फ खंड है। यह एक टुकड़ा है। अनुभूति का विज्ञान विराट होगा। उसमें यह टुकड़ा समाविष्ट हो सकता है। और समाविष्ट होकर यह अपनी सार्थकता पा लेगा। समाविष्ट होकर इसका जो-जो दंश है, वह नष्ट हो जाएगा, इसमें जो-जो मूल्यवान है, वह उभर आएगा। और पश्चिम में बहुत लक्षण दिखाई पड़ने शुरू हो गए, जिनसे साफ होता है कि कई तरफ से हमला शुरू हुआ है। लाओत्से कई तरफ से प्रवेश करता है। लाओत्से का मतलब पूरब। अब जैसे कि अमरीका का एक वस्तुशिल्पी, आर्किटेक्ट है, राइट। उसने जो नए मकान बनाए हैं, वे लाओत्सियन हैं। उसके नए मकान की जो सारी-सारी योजना है, वह यह है कि मकान ऐसा होना चाहिए कि वह आस-पास के जमीन के टुकड़े, आस-पास के पहाड़ के टुकड़े, आस-पास के वृक्षों से पृथक न हो, उनका एक हिस्सा हो। तो अगर राइट मकान बनाएगा और एक बड़ा वृक्ष आ जाएगा, तो वृक्ष को नहीं काटेगा, मकान को काटेगा। वह कहेगा, मकान आदमी के हाथ की बनाई चीज है, यह कट सकता है। अगर इस बीच, कमरे के बीच में वृक्ष आ जाएगा, तो राइट उसको बचाने की कोशिश करेगा, चाहे इस कमरे को थोड़ा तोड़ना-फोड़ना पड़े। वृक्ष नहीं तोड़ा जा सकता; वृक्ष यहीं रहेगा। इस बैठकखाने में भी वृक्ष की पीड़ रहेगी और बैठकखाने को ऐसा बनाएगा कि वृक्ष की पीड़ के साथ उसका एक तालमेल, एक संगति, एक संगीत बन जाए। तो राइट ने जो मकान बनाए हैं, वे प्रकृति के हिस्से हैं। अगर दूर से उन्हें देखें, तो पता भी नहीं चलेगा कि मकान है। क्योंकि लाओत्से कहता है, ऐसा मकान, जो दिखाई पड़ जाए, वायलेंट है। वायलेंट है ही। अब जैसे कि यह तुम्हारा वुडलैंड का मकान है, अब यह वायलेंट है। अगर छब्बीस मंजिल ऊंचा मकान जाएगा, तो वृक्ष कहां रह जाएंगे? पहाड़ कहां रह जाएंगे? आदमी कहां रह जाएगा? वह सब खो जाएगा। मकान नंगा खड़ा हो जाएगा। बेतुका! उसका कोई को-एक्झिस्टेंस नहीं होगा। वह अकेला ही खड़ा हो जाएगा अपनी अकड़ से। वृक्ष उसको छाते हों, पहाड़ उससे स्पर्श करते हों, नदियां उसके पास आवाज करती हों। आदमी उसके पास से गुजरे तो ऐसा न लगे कि मकान दुश्मन है; आदमी उसके पास से गुजरे तो नाचीज न हो जाए, ऐसा न लगे कि कीड़ा-मकोड़ा है। अपनी ही बनाई चीज के सामने आदमी कीड़ा-मकोड़ा हो जाए, तो खतरनाक उसके परिणाम हैं। राइट जो मकान बनाता है, वे मकान ऐसे हैं कि उन मकानों में बगीचे भीतर चले जाएंगे, लॉन भीतर प्रवेश कर जाएगा, छतों पर वृक्ष हो जाएंगे, घास-पात उग आएगी तो उसको उखाड़ कर नहीं फेंका जाएगा। मकान ऐसा होगा कि जैसे प्रकृति में अपने आप उग आया हो-इट हैज ग्रोन। ऐसा नहीं कि हमने बना दिया, थोप दिया ऊपर से। जैसे वृक्ष उगते हैं, ऐसा मकान भी उगा है। राइट का बहुत प्रभाव हुआ है अमरीका में और यूरोप में। क्योंकि उसके मकान में एक और ही सौंदर्य है। उसके मकान की छाया में एक और ही रस है। उसके मकान में बैठना प्रकृति से टूटना नहीं है, प्रकृति में ही होना है। तो हजार रास्तों से पश्चिम के मन में लाओत्सियन खयाल प्रवेश कर रहे हैं-हजार रास्तों से। नया कवि है। तो नया कवि तुक नहीं बांध रहा है, व्याकरण की चिंता नहीं कर रहा है। क्योंकि लाओत्से कहता है, हवाएं जब बहती हैं, तो तुमने कभी सुना कि उन्होंने व्याकरण की फिक्र की हो? और जब बादल गरजते हैं, तो तुमने कभी सुना कि वे कोई तुक बांधते हों? फिर भी उनका अपना एक छंद है; छंदहीन छंद है। तो सारे पश्चिम पर, सारी दुनिया पर काव्य उतर रहा है, जो छंदहीन है। जिसमें एक आंतरिक लय है, लेकिन ऊपरी बिठाव नहीं है। जिसमें तुकबंदी नहीं है, मात्रा नहीं हैं, शब्दों की तौल नहीं है। लेकिन फिर भी भीतर एक बहाव है, एक प्रवाह है, एक धारा है। और उस धारा में एक संगीत है। पश्चिम में चित्रकार चित्र बना रहे हैं। ऐसे चित्रकार हैं कुछ, जिन्होंने अपने चित्रों पर फ्रेम लगानी बंद कर दी है। क्योंकि फ्रेम कहीं तो नहीं होती सिवाय आदमी की बनाई हुई चीजों के। आकाश में कोई फ्रेम नहीं है। सूरज निकलता है फ्रेमलेस, उसमें कहीं कोई फ्रेम नहीं है। तारे बिना फ्रेम के हैं। फूल खिलते हैं, वृक्ष होते हैं, सब एंडलेस एक्सटेंशन है। कहीं कोई चीज खतम होती नहीं मालूम पड़ती। सब चीजें चलती ही चली जाती हैं। बढ़ते चले जाओ, चलती चली जाती हैं। तो चित्रकार बना रहे हैं चित्र, जिन पर फ्रेम नहीं लगा रहे हैं। वे कहते हैं, हम फ्रेम न लगाएंगे, क्योंकि फ्रेम आदमी का बिठाया हुआ हिस्सा है। चित्र के भीतर सब आ जाना चाहिए, ऐसा भी जरूरी नहीं है। लाओत्से के अनुसार पेंटिंग पैदा हुई थी चीन में। ताओ चित्रकला अलग ही चित्रकला है। क्योंकि लाओत्से जैसा आदमी जब भी होता है, तो उसकी दृष्टि को लेकर सब दिशाओं में काम शुरू होता है। तो लाओत्से के अनुसार चित्र बनने शुरू हुए थे। उन चित्रों का मजा ही और था! उन चित्रों में फ्रेम नहीं है। उन चित्रों में चीजें शुरू और अंत नहीं होती। जिंदगी में कहीं कोई चीज शुरू और अंत नहीं इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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