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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free यह उस आदमी ने खड़े होकर सुना। उसके मन में खयाल आया कि पत्नी भली है। लौट कर उसने अपने गुरु को कहा कि पुरोहित तो बहुत दुष्ट आदमी मालूम होता है। उसको तो कभी आप अपने में उत्सुक कर पाएंगे, इसकी कोई आशा नहीं है। लेकिन उसकी पत्नी कभी आप में उत्सुक हो सकती है। उस फकीर ने कहा, पहले पूरी कथा तो कहो; तुम व्याख्या मत करो। हुआ क्या? उसने कहा, हुआ इतना ही कि पुरोहित ने तो किताब लेकर ऐसे फेंक दी, जैसे जहर हो। और कहा कि फेंको इसे, यहां मैं हाथ भी नहीं लगाऊंगा। इतनी अपवित्र को मैं छू भी नहीं सकता। और उसकी पत्नी ने कहा कि ऐसी जल्दी क्या थी? रख देते, घर में बहुत किताबें थीं, पड़ी रहती। और फेंकना था तो पीछे फेंक देते। इतना अशिष्ट होने की कोई आवश्यकता नहीं है। हसीद कहने लगा, वह फकीर कहने लगा, कि कभी पुरोहित से तो हमारा संबंध भी बन जाए, उसकी पत्नी से कभी न बन सकेगा। उस फकीर ने कहा, पुरोहित से हमारा कभी संबंध बन ही जाएगा। जो इतनी घृणा से भरा है, वह कितनी देर इतनी घृणा से भरा रहेगा? आखिर प्रेम प्रतीक्षा करता होगा, वह लौट आएगा। लेकिन जो इतनी उपेक्षा की बात कह रही है कि रख देते, पड़ी रहती, इनडिफरेंट, पीछे फेंक देते, कोई हर्जा न था, शिष्टाचार का तो खयाल रखो, उस स्त्री का हमारे प्रति कोई भी भाव नहीं है; न घृणा का, न प्रेम का। उससे हमारा संबंध बहुत मुश्किल है। लेकिन पुरोहित से हमारा संबंध बन ही जाएगा। तुम देखोगे कि पुरोहित अब तक किताब उठा कर पढ़ रहा होगा। तुम जाओ वापस। उसने कहा, क्या बात करते हैं! वह पढ़ेगा कभी? तुम वापस जाओ, तुम व्याख्या मत करो। तुम जाकर फिर देखो। लौट कर उसने देखा, द्वार बंद हैं। खिड़की से झांका, प्रोहित वह किताब लेकर पढ़ रहा है। जीवन ऐसा है! उसमें जो गाली दे जाता है, वह प्रेम करने की क्षमता जुटा कर ले जाता है। उसमें जो प्रेम प्रकट कर जाता है, वह गाली देने की क्षमता जुटा कर ले जाता है। विपरीत संयुक्त है। जो आदर करता है, वह अनादर करने की क्षमता इकट्ठी करने लगता है। जो अनादर करता है, वह क्षमा मांगने के लिए उत्सुकता इकट्ठी करने लगता है। अगर कोई जीवन को ऐसा देख पाए, तब न मित्र मित्र, न शत्रु शत्रु! तब चीजें एक विराट पैटर्न में, एक विराट ढांचे में दिखाई पड़ने लगती हैं, एक गेस्टाल्ट में दिखाई पड़ने लगती हैं। तब अगर कोई मेरे पास आता है, तो मैं जानता हूं कि दूर जाएगा। जब कोई मुझसे दूर जाता है, तो मैं जानता हूं पास आएगा। लेकिन न पास आने वाले पर कोई चिंता लेने की जरूरत है, न दूर जाने वाले पर कोई चिंता लेने की जरूरत है। जीवन का ऐसा नियम है। जब कोई जन्मता है, तो मरने के लिए; और जब कोई मरता है, तो जन्मने के लिए। ऐसा जीवन का नियम है। इस विराट नियम के वैपरीत्य को अगर हम एक ही व्यवस्था का लयबदध, छंदबदध रूप समझ लें, तो लाओत्से को समझना आसान हो जाएगा। इस सूत्र का यही अर्थ है। प्रश्न: भगवान श्री, आधुनिक विज्ञान ने मनुष्य-जाति को प्रकृति से दूर करके जीवन के अनेक आयामों को विकसित कर लिया है। कृपया बताएं कि वैज्ञानिक जीवन-प्रणाली की जटिलता के साथ ताओ-युग के सहज जीवन का संतुलन आज किस प्रकार स्थापित किया जाए? संतुलन स्थापित करने की बात नहीं है। लाओत्से और आधुनिक विज्ञान के बीच संतुलन स्थापित करने की बात नहीं है। लाओत्से की दृष्टि अगर खयाल में आ जाए, तो बिलकुल ही नवीन विज्ञान का जन्म होगा। बिलकुल नए विज्ञान का जन्म होगा। लाओत्से की दृष्टि पर एक नए ही विज्ञान का जन्म होगा, क्योंकि पूरे जीवन की दृष्टि ही और है। अरस्तू के आधार पर जो विज्ञान विकसित हुआ है, वह विज्ञान बहुत अधूरा, अज्ञानी है। उसने जीवन के इतने छोटे से हिस्से को समझने की कोशिश की है, और पूरे हिस्से को छोड़ दिया है। कहना चाहिए, वह बचकाना है, चाइल्डिश है। उसने समग्र को देखने का कोई प्रयास अभी तक नहीं किया है। लेकिन अभी तक कर भी नहीं सकता था। अब उसे करना पड़ेगा। अणु-शस्त्र के खोज लेने के बाद, अणु-ऊर्जा के विकास के बाद विज्ञान को अपनी पुरानी समस्त आधारशिलाओं पर पुनर्विचार करने को मजबूर हो जाना पड़ा है। क्यों? क्योंकि अगर विज्ञान जैसा अभी तक बढ़ रहा था, अब कहे कि हम ऐसे ही आगे बढ़ेंगे, तो सिवाय मनुष्य-जाति के अंत के कुछ और रास्ता नहीं है। तो विज्ञान को अपनी पूर्व-धारणाओं को फिर से सोचना पड़ रहा है कि कहीं कोई बुनियादी भूल है, कहीं कोई गलती हो रही है, कि हम इतनी मेहनत करते हैं और परिणाम बुरे आते हैं! चेष्टा हम इतनी करते हैं जिसका कोई हिसाब नहीं, और परिणाम विपरीत आते हैं! सारे श्रम का फल दुख ही होता है! तो विज्ञान को अपनी पूर्व धारणाओं पर पुनः विचार करना पड़ रहा है। और उसमें जो भूल कभी पकड़ में आएगी, वह अरस्तू के साथ हो गई भूल है। और तब जीवन के साथ संघर्ष का विज्ञान नहीं, जीवन के साथ सहयोग का विज्ञान! इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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