SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free लाओत्से कहता है, सब क्रम बंधा हुआ है। इधर जवानी आती है, तो बचपन का जाना जरूरी है। इधर बुढ़ापा आता है, तो जवानी का जाना जरूरी है। और यह सब संयुक्त है। हम इसमें भी हिस्से बांट लेते हैं। और हम कहते हैं, इतना हमें पसंद है, यह बच जाए, जवानी बच जाए। बर्नार्ड शॉ बूढ़ा जब हो गया, कोई बर्नार्ड शॉ से पूछा है कि क्या खयाल हैं तुम्हारे अब? तो बर्नार्ड शॉ ने बहुत हैरानी की बात कही। बर्नार्ड शॉ ने कहा, जब मैं जवान था, तो मैं सोचता था, सदा जवान रह जाऊं! बूढ़ा होकर मुझे पता चला कि परमात्मा ने जवानों पर शक्ति देकर व्यर्थ ही शक्ति को गंवाया है। इतनी ताकत बूढ़ों को दी होती, तो अनुभव के साथ मजा आ जाता। जवानों को देकर, बिलकुल गैर-अनुभवी लोगों को ताकत देकर, व्यर्थ गंवा दिया। लेकिन अनुभव के बढ़ने के साथ ताकत कम हो जाती है। गैर-अनुभवी के पास ताकत ज्यादा होती है, इस प्रकृति का कुछ राज है। बच्चा सर्वाधिक शक्तिशाली होता है; बूढ़ा सर्वाधिक कमजोर हो जाता है। अगर हमारे हाथ में हो-जैसा बर्नार्ड शॉ ने सुझाव दिया-अगर हमारे हाथ में हो, तो हम ऐसा कहें, बच्चे को बिलकुल कमजोर होना चाहिए, उसके पास कोई ताकत नहीं होनी चाहिए। ताकत तो बूढ़े के पास होनी चाहिए, उसके पास अनुभव है। लेकिन कोमल गैर-अनुभवी बच्चे के पास ताकत है, फैलने की, बढ़ने की, विकसित होने की। और अनुभवी बूढे के पास कोई ताकत नहीं है। बात क्या है? बात कुछ महत्वपूर्ण है। असल में, अनुभव के इकट्ठे होने का अर्थ ही मृत्यु का पास आना है। अनुभव के इकट्ठे होने का अर्थ ही मृत्यु का पास आना है। अनुभव के इकट्ठे होने का अर्थ ही है कि जीवन का काम पूरा हो गया, अब आप विदा होते हैं। और जब जीवन का काम पूरा हो गया, विश्वविद्यालय से बाहर निकलने का वक्त आ गया-जीवन के विश्वविद्यालय से-तो आपके पास ताकत की कोई जरूरत नहीं है। कब्र में जाने के लिए किसी ताकत की कोई जरूरत नहीं है। आप चले जाएंगे। गैर-अनुभवी के लिए ताकत की जरूरत है, क्योंकि अनुभव बिना ताकत के नहीं मिल सकेगा। भूल-चूक करनी पड़ेगी, भटकना पड़ेगा, गिरना-उठना पड़ेगा। गैरअनुभवी के पास ताकत है। अनुभवी के पास कोई ताकत नहीं है, क्योंकि अब उसे भूल-चूक भी नहीं करनी पड़ती। अब उसको पक्का बंधा हुआ रास्ता मालूम है। वह उसी पर चलता है। वह लीक इधर-उधर नहीं हिलता। वह भूल नहीं करता, वह झंझट में नहीं पड़ता, वह सदा ठीक ही करता है। उसको ज्यादा ताकत की भी जरूरत नहीं है। बच्चे के पास ज्यादा ताकत है। क्योंकि अभी पूरा विस्तार अनुभव का खुला पड़ा है। अभी सीखने उसे जाना है। तो गैर-अनुभवी के पास ताकत है, क्योंकि अनुभव के लिए ताकत की जरूरत है। अनुभवी के पास ताकत नहीं है, क्योंकि अनुभवी के लिए अब मृत्यु के सिवा और कुछ शेष नहीं बचा है। पर जीवन के इस क्रम को हम उलटाने की बहुत कोशिश करते हैं। हम कोशिश करते हैं कि बेटे को हम अनुभव दे दें, उसके समय के पहले अनुभव दे दें। उसके अनुभव के पहले हम अपना अनुभव उसे दे दें। वह कभी संभव नहीं हो पाता। वह कभी संभव नहीं हो सकता है। क्योंकि हमें खयाल नहीं, प्रकृति की जो अपनी लयबद्ध व्यवस्था है, जिसमें एक क्रम है; जिसमें पहले गया हुआ पीछे आने वाले से जुड़ा है; जिसमें पीछे आने वाला पहले जाने वाले से जुड़ा है। लेकिन हमें उसका कोई बोध नहीं है। एक व्यक्ति मेरे पास आए और मुझे श्रद्धा दे, तो मैं आशा करता हूं कि अब वह रोज मुझे श्रद्धा दे। अब मैं गलती करता हूं। अब मैं गलती करता हूं, क्योंकि जिस व्यक्ति ने मुझे श्रद्धा दी, बहुत संभावना पैदा कर ली उसने कि कल वह मुझे अश्रद्धा दे। अश्रद्धा का पूर्ण, पूर्णता कब होगी? क्योंकि जीवन तो विपरीत से मिल कर बना है। जिसने मुझे श्रद्धा दी, वह मुझे अश्रद्धा भी देगा। अगर लाओत्से की समझ गहरी हो, तो लाओत्से जानता है कि जिससे तुमने श्रद्धा ली, उससे अश्रद्धा लेने की तैयारी रखना। लेकिन हम? जिसने हमें श्रद्धा दी, उससे हम और श्रद्धा रखने की तैयारी रखते हैं! तब हम कठिनाई में पड़ते हैं। और जिसने हमें अश्रद्धा दी, उससे हम अपेक्षा रखते हैं कि और अश्रद्धा देगा, हालांकि वह अपेक्षा भी इतनी ही गलत है। जिसने हमें अश्रद्धा दी, वह आज नहीं कल हमें श्रद्धा देने की तैयारी करेगा। क्योंकि विपरीत संयुक्त हैं। एक यहूदी फकीर की कहानी मैं सदा कहता रहा हूं। एक यहूदी हसीद, उसने एक किताब लिखी है। हसीद क्रांतिकारी फकीर हैं। और यहूदी पुरोहित वर्ग उनके विपरीत है, जैसा कि सदा होता है। इस हसीद ने एक किताब लिखी और अपने प्रधान यहूदी पुरोहित के पास भेजी। जिसके हाथ भेजी, उससे कहा कि तू देखना, वह क्या व्यवहार करते हैं! कुछ बोलना मत, तुझे कुछ करना नहीं है; सिर्फ देखना, साक्षी रहना। उसने जाकर किताब दी। तो जो बड़ा पुरोहित था, वह और उसकी पत्नी दोनों बैठे थे सांझ अपने बगीचे में। उसने किताब दी और उसने कहा कि फला-फलां हसीद फकीर ने यह किताब भेजी है। उसने मुश्किल से हाथ में ले पाया था, जैसे ही सुना कि हसीद ने भेजी है. उसने जोर से किताब फेंक दी सड़क की तरफ और कहा, ऐसी अपवित्र किताब को मैं हाथ भी न लगाना चाहंगा। उसकी पत्नी ने कहा, लेकिन इतने कठोर होने की जरूरत क्या है? घर में इतनी किताबें हैं, इसको भी रख दिया होता! और फेंकना भी था तो इस आदमी के चले जाने पर फेंक सकते थे। ऐसा असंस्कृत व्यवहार करने की जरूरत क्या है? रख देते, किताबें इतनी रखी हैं, एक किताब और रख जाती। और फेंकना ही था, तो पीछे कभी भी फेंक देते। इतनी जल्दी क्या थी! इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy