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लाओत्से को तो पता भी नहीं था आक्सीजन का । लाओत्से को पता भी नहीं था कि वृक्ष क्या कर रहे हैं। फिर भी वह कहता है कि चीजें सब जुड़ी हैं, तुम अकेले नहीं हो। और जरा भी तुमने हेर-फेर किया, तो तुम में भी हेर-फेर हो जाएगा। एक इंटीग्रेटेड एक्झिस्टेंस है, एक संयुक्त अस्तित्व है। उसमें अनस्तित्व भी जुड़ा है। उसमें मृत्यु भी जुड़ी है। उसमें बीमारी भी जुड़ी है। उसमें सब संयुक्त है। लाओत्से कहता है कि इन सबके बीच अगर सहयोग की धारणा हो-विजय की नहीं, साथ की, संग होने की, एकात्म की तो जीवन में एक संगीत पैदा होता है। वही संगीत ताओ है, वही संगीत धर्म है, वही संगीत ऋत है।
लगता है ऐसा कि इकोलॉजी की समझ हमारी जितनी बढ़ेगी, लाओत्से के बाबत हमारी जानकारी गहरी होगी। क्योंकि जितना हमें पता चलेगा, चीजें जुड़ी हैं, वह उतना ही हमें बदलाहट करने की जल्दी छोड़नी पड़ेगी ।
अब अभी मैं देख रहा था कि सिर्फ साठ वर्षों में, आने वाले साठ वर्षों में, जिस मात्रा में हम समुद्र के पानी पर तेल फेंक रहे हैं - हजार तरह से, फैक्टरियों के जरिए, जहाजों के जरिए जिस मात्रा में हम समुद्र के सतह पर तेल फेंक रहे हैं, साठ वर्ष अगर इसी तरह जारी रहा, तो किसी युद्ध की जरूरत न होगी, सिर्फ वह तेल समुद्र के पानी पर फैल कर हमें मृत कर देगा। क्योंकि समुद्र का पानी सूर्य की किरणों को लेकर कुछ जीवनतत्व पैदा करता है, जिनके बिना पृथ्वी पर जीवन असंभव हो जाएगा। वह नवीनतम खोज है। और जब समुद्र की सतह पर तेल की पर्त हो जाती है, तो वह तत्व पैदा होना बंद हो जाता है।
अब हम साबुन की जगह डिटरजेंट पाउडर का उपयोग कर रहे हैं। अभी इकोलॉजी की खोज कहती है कि सिर्फ पचास साल अगर हमने साबुन की जगह धुलाई के नए जो पाउडर हैं, उनका उपयोग किया, तो किसी महायुद्ध की जरूरत नहीं होगी; आदमी उनका उपयोग करके ही मर जाएगा। साबुन, जब आप कपड़े को धोते हैं, तो मिट्टी में जाकर पंद्रह दिन में रि-एब्जार्ड हो जाता है; पंद्रह
साबुन फिर प्रकृति में विलीन हो जाता है। लेकिन डिटरजेंट पाउडर को विलीन होने में डेढ़ सौ वर्ष लगते हैं। डेढ़ सौ वर्ष तक वह मिट्टी में वैसा ही पड़ा रहेगा; विलीन नहीं हो सकता। और पंद्रह वर्ष के बाद वह पायजनस होना शुरू हो जाएगा। और डेढ़ सौ वर्ष तक वह नष्ट नहीं हो सकता। उसका मतलब हुआ कि एक सौ पैंतीस वर्ष तक वह जहर की तरह मिट्टी में पड़ा रहेगा। और सारी दुनिया जिस मात्रा में उसका उपयोग कर रही है, वैज्ञानिक कहते हैं, पचास साल और पूरी की पूरी पृथ्वी पर जो भी पैदा होता है, वह सब विषाक्त हो जाएगा। आप पानी पीएंगे, तो जहर पीएंगे और आप सब्जी काटेंगे, तो जहर काटेंगे।
लेकिन इसकी हमें समझ नहीं होती कि चीजें किस तरह जुड़ी हैं। साबुन मंहगी पड़ती है, डिटरजेंट पाउडर सस्ता पड़ता है। ठीक है, बात खतम हो गई। सस्ता पड़ता है, इसलिए हम उसका उपयोग कर लेते हैं। जो भी हम कर रहे हैं, वह संयुक्त है। और जरा सा, इंच भर का फर्क बहुत बड़े फर्क लाएगा।
लाओत्से किसी भी फर्क के पक्ष में नहीं था। लाओत्से कहता था, जीवन जैसा है, स्वीकार करो। विपरीत को भी स्वीकार करो, उसका भी कोई रहस्य होगा। मौत आती है, उसे भी आलिंगन कर लो, उसका भी कोई रहस्य होगा। तुम लड़ो ही मत, तुम झुक जाओ, यील्ड करो। तुम चरण पर पड़ जाओ जीवन के; तुम समर्पित हो जाओ। तुम संघर्ष में मत पड़ो।
और लाओत्से कहता था, अगर तुम समर्पण में पड़ जाओ, तो तुम्हारे जीवन में चिंता का लेश मात्र भी पैदा नहीं होता है। समर्पित म कैसी चिंता? जिसने प्रकृति से शत्रुता नहीं पाली, उसको कैसी चिंता? जो लड़ने ही नहीं जा रहा है, उसे हारने का डर कैसा? उसकी विजय सुनिश्चित है। हार ही उसकी विजय है। लाओत्से सरेंडरिंग के लिए, समर्पण के लिए ये सारे सूत्र कह रहा है।
अंतिम सूत्र वह कहता है, “और पूर्वगमन एवं अनुगमन से ही क्रम के भाव की उत्पत्ति होती है।'
जो पहले चला गया और जो पीछे आएगा, उससे ही हम क्रम निर्मित करते हैं। अगर पहले जाने वाला न जाए, तो पीछे आने वाला नहीं आएगा। इसे ऐसा समझें कि घर में एक वृद्ध गुजर गया। हम कभी इसे जोड़ते नहीं कि घर में बच्चे के जन्म के लिए जरूरी है कि वृद्ध गुजर जाए! लेकिन जब घर में वृद्ध गुजरता है, तो हम रोते-चिल्लाते हैं। और जब घर में बच्चा पैदा होता है, हम बैंड-बाजे बजाते हैं! हालांकि हम कभी इस जोड़ को नहीं देख पाते कि घर से एक वृद्ध का जाना एक बच्चे के लिए जगह खाली करने का आयोजन मात्र है। जो पहले गया है, वह पीछे आने वाले के लिए जरूरी है।
हम वृद्ध को भी रोक लेना चाहते हैं और बच्चे को भी बुला लेना चाहते हैं। ये दोनों संभव नहीं हो सकते। कभी सोचें कि एक घर में अगर दोतीन-चार पीढ़ियों तक बूढ़े न मरें, तो उस घर में क्या हो? उस घर में बच्चे पैदा होते से ही पागल हो जाएं। इधर पैदा हुए कि उधर पागल हुए ! अगर चार-पांच पीढ़ी के वृद्ध मौजूद हों घर में, तो बच्चों का जीना असंभव है। एक ही पीढ़ी के वृद्ध काफी मुश्किल कर देते हैं। और अगर चार-पांच पीढ़ी के वृद्ध होंगे तो दोत्तीन पीढ़ी के वृद्धों की तो कोई कीमत ही नहीं होगी, उनके पीछे वाले बैठे होंगे। और वे इतने अनुभवी होंगे कि बच्चों को सीखने ही न देंगे। वे इतना जानते होंगे कि बच्चे को जानने का उपाय न रह जाएगा। वे इतनी सख्ती से बच्चे की गर्दन पर बैठ जाएंगे कि बच्चे को हिलने का मौका न रह जाएगा। बच्चे पैदा होते से ही पागल हो जाएंगे।
वृद्ध का विदा होना जरूरी है, ताकि बच्चे आ सकें। और बच्चे आएंगे, तो वृद्ध विदा होते रहेंगे।
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