________________
Download More Osho Books in Hindi
Download Hindi PDF Books For Free
अब आज सारे यूरोप में मूवमेंट है, आंदोलन है। और वह आंदोलन इसलिए है कि वृक्ष अब न काटे जाएं; एक पत्ता भी काटना सख्त जुर्म है। क्योंकि आदमी गिर जाएगा, अगर वृक्ष गिर गए।
तो लाओत्से ढाई हजार साल पहले एक डाल के टूटने पर कहता है कि तुझे पता नहीं पागल, हम कुछ कम हो गए हैं। वह वृक्ष हमारा हिस्सा था, हमारे अस्तित्व का।
जैसे कि एक तस्वीर में से, एक पेंटिंग में से किसी ने एक कोने में एक वृक्ष को अलग कर लिया हो, तो तस्वीर वहीं नहीं रह जाती, तस्वीर कुछ और हो जाती है! एक छोटा सा बुरुश, रंग की एक छोटी सी रेखा एक तस्वीर को पूरा बदल देती है। जरा सा इशारा! अगर हमने जरा सा एक वृक्ष एक पेंटिंग में से निकाल लिया, तो पेंटिंग वही नहीं रह जाती है। क्योंकि टोटल, उसका समग्र रूप और हो जाता है। सारा संबंध बदल जाता है। आकाश के और झोपड़े के बीच में जो वृक्ष खड़ा था, वह अब नहीं है। अब आकाश और झोपड़े निपट नंगे होकर खड़े हो जाते हैं।
हमने काट डाले वृक्ष। हमने सोचा कि हम आदमी के रहने के लिए अच्छी जगह बना लेंगे। हमने जानवर मिटा डाले, हमने कुछ जानवरों की जातियां बिलकुल समाप्त कर दीं। अब इकोलॉजी-यह जो मूवमेंट चलता है, इकोलॉजी कहलाता है-उसका कहना है कि हमने जो-जो चीज कमी कर ली है, उस सब का परिणाम आदमी को भोगना पड़ रहा है। जंगल में जो पक्षी गीत गाते हैं, वे भी हमारे हिस्से हैं। और जिस दिन जंगल में कोई पक्षी गीत नहीं गाएगा, उस दिन हम प्रकृति का जो संगीत है, उसमें एक व्याघात उत्पन्न कर रहे हैं। उस व्याघात के बाद हमारे चित्त उतने शांत न रह जाएंगे, जितने उस संगीत के साथ थे। पर हमें खयाल नहीं आता। क्योंकि बड़ा है; आदमी बहुत छोटे अपने घर में, अपने कोने में जीता है। उसे पता नहीं कि आकाश में बादल चलते हैं अब या नहीं चलते, वृक्षों पर फूल आते हैं कि नहीं आते, वसंत में पक्षी गीत गाते हैं कि नहीं गाते।
पिछले तीन वर्ष पहले इंग्लैंड में एक किताब छपी: दि साइलेंट स्प्रिंग-मौन वसंत। पिछले तीन वर्ष पहले इंग्लैंड के वसंत में अचानक हैरानी का फर्क आ गया। लाखों पक्षी अचानक वसंत के मौसम में वृक्षों से गिरे और मर गए। लाखों! ढेर लग गए रास्तों पर पक्षियों के। पूरा, पूरा वसंत मौन हो गया। और बड़ी मुश्किल हुई कि क्या हुआ? क्या बात हो गई? रेडिएशन पर इंग्लैंड में जो प्रयोग चलते थे
और एटामिक इनर्जी के जो प्रयोग चलते थे, उनकी कुछ भूल-चूक से वैसा हुआ। लेकिन इंग्लैंड उस वसंत के बाद फीका हो गया! अब इंग्लैंड में वैसा वसंत नहीं आएगा कभी। गाने वाले पक्षियों का बड़ा हिस्सा एकदम समाप्त हो गया। उसको रिप्लेस करना मुश्किल है।
लेकिन अगर वैसा वसंत न आएगा, तो हम सोचेंगे, क्या हमें फर्क पड़ता है? हमारी दूकान में क्या फर्क पड़ेगा? हमारे दफ्तर में क्या फर्क पड़ेगा? नहीं पक्षी गाएंगे।
काश, जिंदगी इतनी अलग-अलग होती! इतनी अलग-अलग नहीं है। वहां सब संयुक्त है, सब जुड़ा है। अरबों प्रकाश वर्ष दूर भी अगर कोई तारा नष्ट हो जाता है, तो इस पृथ्वी पर कुछ कमी हो जाती है। अगर कल चांद मिट जाए, तो इस पृथ्वी पर फर्क हो जाएगा! आपके सागर में लहरें न उठेंगी; आपकी स्त्रियों का मासिक धर्म अव्यवस्थित हो जाएगा; वह अट्ठाइस दिन में नहीं आएगा फिर। वह चांद की वजह से अट्ठाइस दिन में आता है। सब कुछ और हो जाएगा। एक छोटा सा अंतर और सारी चीजों की स्थिति बदल जाती
है।
लाओत्से कहता था कि चीजें जैसी हैं, उन्हें वैसा रहने दो। स्वीकार करो, वे साथी हैं। विपरीत को भी मत हटाओ। जो बिलकुल दुश्मन मालूम पड़ता है, उसे भी बसा रहने दो। उसे भी बसा रहने दो, क्योंकि प्रकृति का जाल गहन है, रहस्यपूर्ण है। भीतर सब चीजें जुड़ी हैं। तुम्हें पता नहीं, तुम एक हटा कर क्या उपद्रव कर लोगे।
अब जब इकोलॉजी की चर्चा सारी दुनिया में चलनी शुरू हुई है और समझ बढ़ी है आदमी की, तो ऐसा पता चलना शुरू हुआ कि हम कितनी तरह से जुड़े हुए हैं, कहना बहुत मुश्किल है! बहुत मुश्किल है कहना कि हम कितनी तरह से जुड़े हुए हैं! उदाहरण के लिए, अगर हम जंगलों को काट डालते हैं, वृक्षों को हटा लेते हैं, तो वृक्ष जो हमारे लिए जीवन का तत्व इकट्ठा करते हैं, वह विलीन हो जाता
वृक्ष सूरज की किरणों को रूपांतरित करते हैं, उसको इस योग्य बनाते हैं कि वह हमारे शरीर में जाकर पच जाए। सीधी सूरज की किरण हमारे शरीर में नहीं पच पाएगी। वृक्ष ही उसे पीकर ट्रांसफार्म करते हैं और हमारे भोजन के योग्य बनाते हैं। वृक्ष जमीन से मिट्टी को खींचते हैं और भोजन निर्मित कर देते हैं। आप कभी सोचते भी नहीं कि सब्जी आप खा रहे हैं, वह जिन वृक्षों ने उसे निर्मित किया है, अगर वे निर्मित न करते, तो नीचे सिर्फ मिट्टी का ढेर होता। वह मिट्टी का ढेर सब्जी बन गई है, वह सब्जी बन कर आपके पचने के योग्य हो गई है।
आप पूरे चौबीस घंटे अपने श्वास को बाहर फेंक रहे हैं और आक्सीजन को पचा रहे हैं और कार्बन डाय आक्साइड को बाहर निकाल रहे हैं। वृक्ष सारी कार्बन डाय आक्साइड को पीकर आक्सीजन को बाहर निकाल रहे हैं। अगर पृथ्वी पर वृक्ष कम हो जाएंगे, तो आप कार्बन डाय आक्साइड बाहर निकालेंगे, आक्सीजन कम होती जाएगी रोज-रोज। एक दिन आप पाएंगे, जीवन शांत हो गया, क्योंकि आक्सीजन देने वाले वृक्ष कट गए।
इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज