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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free यह एक गेस्टाल्ट है, जिसमें सभी संबंध ऐसे हो जाएंगे। ऐसा नहीं कि प्रकृति और मनुष्य का संबंध ही विकृत होगा। जब संबंध विकृत होने की दृष्टि होगी, तो कोई भी संबंध नहीं बचेगा। बाप और बेटे के बीच तब संघर्ष है। तुर्गनेव की किताब है बहुत प्रसिद्ध: फादर्स एंड संस-पिता और पुत्र। जिसमें तुर्गनेव ने यह कहा है कि पिता और पुत्र के बीच निरंतर संघर्ष है। कोई संबंध नहीं है सिवाय संघर्ष के। बेटा जो है, वह बाप का हकदार है; इसलिए बाप को हटाने की कोशिश में लगा है। वह जगह छोड़ दे, बेटा उसकी जगह बैठ जाए। यह एक गेस्टाल्ट है। देखेंगे तो दिखाई पड़ जाएगा कि बेटा बाप को हटाने की कोशिश में लगा है, कि हटो, एक चाबी दो, दूसरी चाबी दो, तीसरी चाबी दो। अब तुम घर बैठो, अब रिटायर हो जाओ, अब दुकान पर बैठने दो, दफ्तर में बैठने दो। बेटा एक कोशिश में लगा है। बाप एक कोशिश में लगा है पैर जमा कर कि जब तक बन सके, तब तक वह वहीं खड़ा रहे, बेटे को न घुस जाने दे। इसे ऐसा देखने में कोई कठिनाई नहीं है। ऐसा देखा जा सकता है; ऐसा है। जैसी हमने जिंदगी बनाई है, जिस ढंग से, उसमें ऐसा है। और बड़ी मजेदार बात है कि बाप बेटे को बड़ा कर रहा है, पाल रहा है, पोस रहा है। और सिर्फ इसीलिए कि वह उसकी जगह छीन लेगा कल। उसको शिक्षित कर रहा है, सिर्फ इसलिए कि कल वह उसके खाते-बही पर कब्जा कर लेगा। उसको बीमारी से बचा रहा है, उसको शिक्षित कर रहा है, उसको बड़ा कर रहा है, इसलिए कि कल वह चाबी छीन लेगा। मां बेटे की शादी करने के पीछे पड़ी है। कल उसकी पत्नी आ जाएगी और वह पत्नी सब छीनना शुरू कर देगी। और तब कलह शुरू होगी। और वह कलह जारी रहेगी। गेस्टाल्ट क्या है हमारे देखने का? अगर हम जीवन को एक कलह, एक कांफ्लिक्ट, एक संघर्ष, एक स्ट्रगल की भाषा में देखते हैं, तो धीरे-धीरे जीवन के सब पर्तो पर और सब संबंधों में संघर्ष हो जाएगा। तब व्यक्ति अकेला बचता है और सारा जगत उसके विपरीत शत्र की तरह खड़ा है। सारा जगत प्रतिस्पर्धा में, और अकेला मैं बचा है। स्वभावतः, इतने बड़े जगत के खिलाफ प्रतिस्पर्धा में खड़े होकर सिवाय चिंता के पहाड़ के और क्या मिलेगा? और चिंता के बाद भी विजय का कोई उपाय नहीं है, क्योंकि पराजय ही होने वाली है। बुढ़ापा आएगा ही, मौत आएगी ही, सब डूब ही जाएगा। चाहे बाप कितना ही लड़े, बेटे को दे ही जाना पड़ेगा। चाहे सास कितनी ही लड़े, बहू के हाथ में शक्ति पहुंच ही जाएगी। और चाहे गुरु कितना ही संघर्ष करे, शिष्य आज नहीं कल उसकी जगह बैठ ही जाएगा। बायजीद ने एक सूत्र लिखा है। लिखा है कि जिन-जिन को मैंने धनुर्विद्या सिखाई, उनका आखिरी निशाना मैं ही बना। जिन-जिन ने सीख ली धनुर्विद्या, बस वे आखिरी निशाना मुझे ही बनाने लगे। वह ठीक ही कहा है! अगर गुरु और विद्यार्थी के, शिष्य के बीच संघर्ष है, तो यही होगा। यही होगा कि गुरु विद्यार्थी को इसीलिए तैयार कर रहा है कि कल विद्यार्थी उसको हटाएगा। यह सारी जिंदगी एक संघर्ष है दूसरे को हटाने के लिए। और सब तरफ दुश्मन हैं, कोई मित्र नहीं। जो मित्र मालूम पड़ते हैं, वे थोड़े कम दुश्मन हैं, बस इतना ही। थोड़े अपने वाले दुश्मन हैं, इतना ही। कुछ लोग जरा दूर के दुश्मन हैं, कुछ जरा पास के दुश्मन हैं। जो पास के हैं, जरा खयाल रखते हैं। जरा दूर के हैं, बिलकुल खयाल नहीं रखते। बाकी दुश्मनी स्थिर है। लाओत्से एक दूसरे गेस्टाल्ट को प्रस्तावित करता है। और लाओत्से ने जिस तरह से उसे रखा है, काश वह कभी आदमी की समझ में आ सके, तो हम एक दूसरी ही संस्कृति और दूसरे ही जगत का निर्माण कर लें। वह कहता है, तुम अलग हो ही नहीं। इसलिए शत्रुता का सवाल कहां? तुम व्यक्ति हो ही नहीं। क्योंकि व्यक्ति तुम सिर्फ इसीलिए दिखाई पड़ रहे हो कि तुम्हें समष्टि का कोई पता नहीं। लेकिन जहां भी व्यक्ति है, वहां समष्टि से जुड़ा है। व्यक्ति हो ही नहीं सकता समष्टि के बिना। तुम हो इसलिए कि और सब हैं। वह जो वृक्ष दरवाजे पर खड़ा है, वह भी तुम्हारे होने में भागीदार है। लाओत्से ने कहा है अपने एक शिष्य को जो, सामने के वृक्ष से कुछ पत्ते तोड़ने भेजा है उसे किसी ने, वह पूरी शाखा तोड़ कर लिए जा रहा है। तो लाओत्से उसे रोकता है और कहता है, तुझे पता नहीं पागल, कि यह वृक्ष अधूरा हुआ, तो तू भी कुछ कम हुआ। यह यहां सामने खड़ा था पूरा का पूरा, तो हम कुछ और अर्थों में हरे थे। आज इसका घाव हमारे भीतर भी घाव बन गया। हम इतने अलग नहीं हैं; हम सब जुड़े हैं। हमने पृथ्वी पर से वृक्ष काट डाले। लाओत्से तो एक शाखा के तोड़ने पर यह कह रहा है। हमने सारे के सारे वृक्ष काट डाले; सारे जंगल गिरा दिए। अब हमको पता चल रहा है कि गलती हो गई। जंगल हमने काटे इसलिए कि हमने सोचा जंगल मनुष्य का दुश्मन है। क्योंकि जंगल में मनुष्य को डर था। जंगली जानवर थे, भय था, घबड़ाहट थी। जंगल काट-काट कर हमने जमीन साफ करके अपने नगर बसा लिए। हम यह भूल ही गए कि हमारे नगरों में जो पानी गिरता था, वह जंगल के बिना नहीं गिरेगा; कि हमारे नगरों पर जो हवाएं बहती थीं, वे जंगल के बिना नहीं बहेंगी; कि हमारे नगरों पर जो शीतलता छा जाती थी, वह बिना जंगलों के नहीं छाएगी; कि हम जंगल सब काट डालेंगे, तो नगर हमारे सब उजड़ जाएंगे। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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