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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free उदाहरण के लिए, हम गहरी नींद सोना चाहते हैं। तो जो आदमी गहरी नींद सोना चाहता है, वह विश्राम का प्रेमी है। और जो विश्राम का प्रेमी है, वह श्रम न करेगा। और जो श्रम न करेगा, वह गहरी नींद न सो सकेगा। लाओत्से कहता है, श्रम और विश्राम संयुक्त हैं। अगर तुम विश्राम चाहते हो, तो गहरा श्रम करो; इतना श्रम करो कि विश्राम उतर आए तुम्हारे ऊपर । लेकिन हम अरस्तू के ढंग से सोचेंगे, तो विश्राम और श्रम तो विपरीत हैं। अगर मैं विश्राम का प्रेमी हूं और गहरी नींद लेना चाहता हूं, तो मैं दिन भर आराम से बैठा रहूं। लेकिन जो दिन भर आराम से बैठा रहेगा, रात का आराम उसका नष्ट हो जाएगा। क्योंकि विश्राम के लिए श्रम के द्वारा अर्जन करना पड़ता है। इट हैज टु बी अ । विश्राम में जाना है, तो श्रम में अर्जन करना पड़ेगा। और या फिर बिना विश्राम के राजी रहना पड़ेगा। तो यह बड़े मजेदार घटना घटती है कि जो विश्राम का प्रेमी है, वह दिन भर विश्राम करता है, रात की नींद खो देता है। और जितनी रात की नींद खोता है, दूसरे दिन उतना ही विश्राम करता है कि अब नींद की कमी पूरी कर ले। जितनी कमी पूरी करता है, उतनी रात की नींद नष्ट होती चली जाती है। एक दिन वह पाता है, एक चक्कर में पड़ गया है, जहां विश्राम असंभव हो जाता है। लाओत्से कहता है, विश्राम चाहते हो तो उलटी तरफ जाओ, श्रम करो। क्योंकि श्रम और विश्राम विपरीत नहीं, सहयोगी, संगी हैं, साथी हैं। जितना गहरा श्रम करोगे, उतने गहरे विश्राम में चले जाओगे। और इससे उलटा भी सही है, जितने गहरे विश्राम में जाओगे, दूसरे दिन उतनी ही बड़ी श्रम की क्षमता लेकर जगोगे। अगर यह खयाल आ जाए, तो लाओत्से कहेगा कि सवाल विपरीत को नष्ट करने का नहीं है, सवाल विपरीत के उपयोग करने का है। अरस्तू कहता है कि प्रकृति बीमारियां देती है, तो प्रकृति से लड़ो। इसलिए पश्चिम का पूरा विज्ञान प्रकृति से संघर्ष है। सारी भाषा लड़ाई की है। रसेल ने एक किताब लिखी है: कांक्वेस्ट ऑफ नेचर - प्रकृति पर विजय । यह सारा संघर्ष की भाषा है। लाओत्से हंसेगा। लाओत्से कहेगा, तुम्हें पता ही नहीं है कि तुम प्रकृति के एक हिस्से हो। तुम विजय पा कैसे सकोगे? जैसे मेरा हाथ मेरे ऊपर विजय पाने निकल जाए, तो क्या होगा? जैसे मेरा पैर सोचने लगे कि मुझ पर विजय पा ले, तो क्या होगा? मूढ़ता होगी। लाओत्से कहता है, प्रकृति पर विजय नहीं पाई जा सकती, क्योंकि तुम प्रकृति हो । और जो विजय पाने चला है, वह प्रकृति का ही हिस्सा है। विजय पाने की कोशिश में तुम सिर्फ तनाव से भर जाओगे, संताप से भर जाओगे। प्रकृति को जीओ, विजय पाने मत जाओ। प्रकृति से लड़ कर तुम उसके राज मत पूछो, प्रकृति से प्रेम करो, उसमें डूबो, वह अपने राज खोल देती है। अगर किसी दिन लाओत्से के ऊपर साइंस का पूरा ढांचा, स्ट्रक्चर खड़ा हो, तो साइंस बिलकुल दूसरी होगी। लड़ने की भाषा में नहीं होगी, सहयोग की भाषा में होगी। कांफ्लिक्ट नहीं, कोआपरेशन ! संघर्ष नहीं, सहयोग ! तब हम और ही ढंग से सोचेंगे। और जो आदमी संघर्ष की भाषा में सोचता है, उसका तर्क वही है कि अ अ है, ब ब है; इसलिए अगर अ को पाना है, तो ब को हटाओ, तो अ बढ़ जाएगा। अगर स्वास्थ्य पाना है, तो बीमारी से लड़ो। बीमारी हटा डालो, तो स्वास्थ्य बढ़ जाएगा। नहीं। पढ़ता था मैं रथ्सचाइल्ड का संस्मरण । उसने अपना पूरा मकान एयरकंडीशंड किया है। उसका पोर्च भी एयरकंडीशंड है। कार भीतर आती है, तो दरवाजा आटोमेटिक खुलता है; कार बाहर जाती है, तो आटोमेटिक बंद हो जाता है। एयरकंडीशंड कार है। उसमें बैठ कर वह अपने दफ्तर के एयरकंडीशंड पोर्च में उतरता है, फिर अपने एयरकंडीशंड दफ्तर में चला जाता है। फिर उसको पच्चीस बीमारियां आनी शुरू होती हैं। फिर चिकित्सक उससे कहते हैं कि तुम दो घंटे गर्म पानी के टब में बैठे रहो। फिर वह दो घंटे गर्म पानी के ब में बैठ कर पसीना निकलवाता है। फिर उसको खयाल आता है कि यह मैं क्या कर रहा हूं? एयरकंडीशंड करके सारी व्यवस्था मैं पसीने को रोक रहा हूं। फिर पसीने को रोक कर, दो घंटे टब में बैठ कर पसीने को निकाल रहा हूं। फिर पसीना ज्यादा निकल गया, गर्मी मालूम पड़ती है, इसलिए एयरकंडीशंड में बैठ कर अपने को ठंडा कर रहा हूं। फिर ज्यादा ठंडा हो गया, फिर पसीना नहीं निकला, बीमार पड़ता हूं, तो फिर... यह मैं कर क्या रहा हूं? करीब-करीब, संघर्ष की जो भाषा है, वह ऐसे ही द्वंद्व में डाल देती है। लाओत्से कहता है कि जिसको हम विपरीत कहते हैं, वह विपरीत नहीं है। और अगर ठंडक का मजा लेना है, तो धूप का मजा लिए बिना नहीं लिया जा सकता है। यह उलटी दिखाई पड़ती है बात, लेकिन मैं भी कहता हूं कि लाओत्से ठीक कहता है। अगर ठंडक का मजा लेना है, तो धूप का मजा लिए बिना नहीं लिया जा सकता है। और जिसने पसीने का सुख नहीं लिया, वह शीतलता का सुख न ले पाएगा। जिसने पसीने का सुख नहीं लिया, उसके लिए शीतलता भी बीमारी हो जाएगी। और जिसने बहते हुए पसीने का आनंद लिया है, वही ठंडी शीतलता में बैठ कर शीतलता का भी आनंद ले पाएगा। असल में जो गर्म होना नहीं जानता, वह ठंडा नहीं हो पाएगा। ये विपरीत नहीं हैं, ये संयुक्त हैं। और दोनों का संयोग ही जीवन का संगीत है। इसलिए लाओत्से कहता है, “उच्चता और नीचता का भाव एक-दूसरे के विरोध पर अवलंबित हैं; संगीत के स्वर और ध्वनियां परस्पर संबद्ध होकर ही समस्वर बनती हैं।' इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं - देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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