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है। अरस्तू ने जो सिद्धांत दिए, उन्हीं का फैलाव दो हजार साल में हुआ है। अरस्तू और आइंस्टीन अलग-अलग नहीं, एक ही शृंखला के हिस्से हैं। तर्क वही है; सोचने का ढंग वही है।
लाओत्से तो बिलकुल विपरीत है। अगर लाओत्से कभी विज्ञान का आधार बने तो दूसरी ही साइंस पैदा होगी, जिसका हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि उसकी दृष्टि क्या होगी। अगर-इसको उदाहरण से समझें-अगर अरस्तू की बात सही है, तो हम मृत्यु को नष्ट करके जीवन को बचा सकेंगे। बल्कि जितना हम मृत्यु को नष्ट करेंगे, जीवन उतना ही ज्यादा बचेगा। और अगर हम किसी दिन मृत्यु को बिलकुल ही नष्ट कर दें, तो परम जीवन बचेगा, जीवन ही जीवन बचेगा। लाओत्से के हिसाब से स्थिति उलटी है। अगर हमने मृत्यु को नष्ट किया, तो हम जीवन को नष्ट कर देंगे। और अगर मृत्यु बिलकुल नष्ट हो गई, तो जीवन बिलकुल शून्य हो जाएगा।
अब इसे हम देखें कि वस्तुतः घटना क्या घटी है? यह बड़े मजे की बात है कि हमने जितनी बीमारियां नष्ट की, आदमी का स्वास्थ्य उतना कम हुआ है। आदमी का स्वास्थ्य अच्छा नहीं हुआ है बीमारियां घटने से। लाओत्से के जमाने का आदमी जितना स्वस्थ था, उतने स्वस्थ हम नहीं हैं। हालांकि लाओत्से के जमाने में बीमारियों से लड़ने के इतने उपाय नहीं थे, जितने हमारे पास हैं।
आज भी जंगल का आदिवासी है, उसके पास बीमारी से लड़ने के बहुत उपाय नहीं हैं। बीमारियां बहुत हैं, उपाय बिलकुल नहीं हैं। स्वस्थ वह हमसे बहुत ज्यादा है। और स्वास्थ्य के उसके इतने प्रमाण हैं कि हैरानी होती है। अफ्रीकी जंगल में आज भी जो असभ्य कौमें हैं, उनके शरीर पर बनाया गया कैसा भी घाव बिना किसी इलाज के अड़तालीस घंटे में भर जाता है। बिना किसी इलाज के! कुल्हाड़ी मार दी है पैर पर, अड़तालीस घंटे में घाव भर जाएगा। वैज्ञानिक कहते हैं कि उनका स्वास्थ्य अपूर्व है। वही स्वास्थ्य की इतनी ऊर्जा, वही वाइटेलिटी चौबीस घंटे में किसी भी तरह के घाव को भर देती है-बिना किसी इलाज के! और या जो इलाज हैं, वे बिलकुल इलाज नहीं हैं। कोई पत्ता बांध लिया है, कुछ कर लिया है, उससे कोई लेना-देना नहीं है। उसका कोई साइंटिफिक संबंध नहीं है, पत्ते से उस घाव के भरने का। पत्ता तो सिर्फ बहाना है, शरीर ही घाव को भर लेता है।
अफ्रीका के जंगल के आदिवासी के पास बीमारियां बहुत हैं चारों तरफ; इलाज का कोई उपाय नहीं है, मेडिसिन की कोई समझ नहीं है, कोई मेडिकल कालेज नहीं है, कोई चिकित्सक नहीं है; फिर भी स्वास्थ्य अपूर्व है।
लाओत्से सही हो सकता है। लाओत्से कहता है,तम जितना बीमारियां खत्म करने में लगोगे, उतना ही तुम स्वास्थ्य भी समाप्त कर लोगे। क्योंकि यह जगत वैत पर निर्भर है, तुम एक तरफ की ईंटें गिराओगे, दूसरी तरफ की विपरीत ईंटें तत्काल गिर जाएंगी। और अब पश्चिम का वैज्ञानिक भी इस पर सोचने लगा है कि लाओत्से की बात में सच्चाई हो सकती है।
कहानी है पुरानी कि लाओत्से को मानने वाला एक बूढ़ा अपने जवान बेटे के साथ-बूढ़े की उम है कोई नब्बे वर्ष-अपने जवान बेटे के साथ, दोनों अपने बगीचे में, जहां बैल या घोड़े जोतना चाहिए, पानी के मोट में दोनों जुत कर और पानी खींच रहे हैं। कनफ्यूशियस वहां से गुजरता है। कनफ्यूशियस और लाओत्से में वैसा ही विपरीत भेद है, जैसा अरस्तू और लाओत्से में। कनफ्यूशियस एरिस्टोटेलियन है और उसके सोचने का ढंग अरस्तू जैसा है। इसलिए पश्चिम कनफ्यूशियस को बहुत सम्मान दिया पिछले तीन सौ वर्षों में। लाओत्से का सम्मान अब बढ़ रहा है, अब खयाल में आया है, क्योंकि विज्ञान बड़ी अजीब हालत में पड़ गया और बड़ी मुश्किल में पड़ गया।
कनफ्यूशियस गुजरता है बगीचे के पास से। देखता है, नब्बे साल का बूढा, अपने तीस साल के जवान बेटे को, दोनों जुते हैं, पसीने से तरबतर हो रहे हैं, पानी खींच रहे हैं। कनफ्यूशियस को दया आई। उसने कहा, पागल, तुम्हें पता नहीं मालूम होता है। बूढ़े के पास जाकर उसने कहा कि तुम्हें पता है कि अब तो शहरों में हमने घोड़ों से या बैलों से पानी खींचना शुरू कर दिया है! तुम क्यों जुते हुए हो इसके भीतर?
उस बूढ़े ने कहा, जरा धीरे कहो, मेरा जवान बेटा न सुन ले। कनफ्यूशियस बहुत हैरान हुआ। उसने कहा, जरा थोड़ी देर से आना, जब मेरा बेटा घर भोजन करने चला जाए।
जब बेटा चला गया, कनफ्यूशियस वापस आया और उसने कहा, तुमने बेटे को क्यों न सुनने दिया?
उस बूढ़े ने कहा कि मैं नब्बे साल का है और अभी तीस साल के जवान से लड़ सकता है। लेकिन अगर मैं अपने बेटे को घोड़े जुतवा दूं, तो नब्बे साल की उम्र में मेरे जैसा स्वास्थ्य उसके पास फिर नहीं होगा। घोड़ों के पास होगा, मेरे बेटे के पास नहीं होगा। यह बात तुम मत कहो। मेरा बेटा सुन ले तो उसका जीवन नष्ट हो जाए। हमें पता चल गया है, हमें पता चल गया है कि शहरों में घोड़े जुतने लगे हैं। और हमें यह भी पता चल गया है कि मशीनें भी बन गई हैं जो पानी को कुएं से खींच लें। और हमारा बेटा चाहेगा कि मशीनों से खींच ले। लेकिन जब मशीनें कुएं से पानी खींचेंगी, तो बेटा क्या करेगा? उसके शरीर का क्या होगा? उसके स्वास्थ्य का क्या
होगा?
हम एक तरफ जो करते हैं, तत्काल उसका दूसरी तरफ परिणाम होता है। और लाओत्से सही है, तो परिणाम बहुत भयंकर होता है।
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