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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free जिस दिन कोई व्यक्ति सच में सरल हो जाता है, उसे पता ही नहीं चलता कि वह सरल है। वह इतना सरल हो जाता है कि दूसरे उससे आकर कहें कि तुम असरल मालूम पड़ते हो, तो वह स्वीकार कर लेगा। वह इतना प्रभु को उपलब्ध हो जाता है कि दूसरे उससे आकर कहें कि तुम्हें कुछ पता ही नहीं, तो उसके लिए भी राजी हो जाएगा। वह इतना अहिंसक हो जाता है कि उसे खयाल ही नहीं होता कि मैं अहिंसक है। क्योंकि खयाल तो सिर्फ हिंसक को ही हो सकता है। “विस्तार और संक्षेप एक-दूसरे की आकृति का निर्माण करते हैं।' विस्तार बड़ी बात मालूम पड़ती है, संक्षेप छोटी बात मालूम पड़ती है; ब्रह्मांड बहुत बड़ी बात है और छोटा सा अणु बहुत छोटी बात है। लेकिन अणु-अणु मिल कर ब्रह्मांड का निर्माण करते हैं। अणुओं को हटा लें, ब्रह्मांड शून्य हो जाएगा। बूंद को हटा लें, सागर रिक्त हो जाएगा। हालांकि सागर को कभी पता नहीं कि बूंद ही उसका निर्माण करती है। और अगर बूंद और सागर की चर्चा हो, तो बूंद को सागर स्वीकार भी नहीं करेगा कि तू मुझे निर्माण करती है। यद्यपि बूंद-बूंद ही मिल कर सागर बनता है। सागर बूंदों के जोड़ के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। और अगर बूंद-बूंद से जुड़ कर सागर बनता है, तो बूंद भी छोटा सागर ही है। बूंद को अन्य कुछ कहना उचित नहीं; छोटा सागर है। तभी तो बूंद-बूंद मिल कर बड़ा सागर बन जाता होगा। तो अगर हम ऐसा कहें तो भूल न होगी कि बूंद छोटा सागर है, सागर बड़ी बूंद है। यही सत्य के करीब है कि सागर बड़ी बूंद है और बूंद छोटा सागर है। जिसे हम विस्तार कहते हैं, जिसे हम विराट कहते हैं, जिसे हम ब्रह्मांड कहते हैं, वह भी अणु ही है। और जिसे हम अणु कहते हैं, वह भी ब्रह्मांड ही है। उपनिषदों के ऋषियों ने कहा है कि पिंड और ब्रह्मांड में भेद नहीं जाना, छोटे में और बड़े में अंतर नहीं पाया, ना-कुछ और सब कुछ को एक ही जैसा देखा। लाओत्से कहता है कि यह जो हमें इतना-इतना भेद दिखाई पड़ता है, यह सारा का सारा भेद भ्रांति है। अगर हम वैज्ञानिक से पूछे, तो वह भी लाओत्से की इस बात से राजी होगा। और यह जान कर आप हैरान होंगे कि पश्चिम के कुछ नवयुवक वैज्ञानिक लाओत्से में बहुत उत्सुक हैं। और इस संबंध में भी चिंतना चलती है वैज्ञानिकों में कि क्या कभी लाओत्से को आधार बना कर किसी नए विज्ञान का जन्म हो सकेगा? और एक बहुत कीमती विचारक और गणितज्ञ ने एक किताब लिखी है: ताओ और विज्ञान। लाओत्से के विचार से क्या और तरह के विज्ञान का जन्म नहीं होगा? होगा! क्योंकि पश्चिम का जो विज्ञान निर्मित हुआ है, वह उस यूनानी धारणा के ऊपर खड़ा है, जो विपरीत को स्वीकार करती है। पश्चिम का सारा विज्ञान एरिस्टोटेलियन है, अरस्तू के सिद्धांत पर खड़ा है। और लाओत्से से बड़ा विरोधी अरस्तू का दूसरा नहीं है। अगर हम ठीक से समझें तो दुनिया में दो ही विचार हैं: एक अरस्तू का और एक लाओत्से का। पूरब का सारा विचार लाओत्से का विचार है और पश्चिम का सारा विचार अरस्तू का। तो इन दोनों के थोड़े भेद को हम खयाल में ले लें, तो बात आसानी से समझ में आ जाएगी। अरस्तू कहता है कि अंधेरा अंधेरा है, प्रकाश प्रकाश; दोनों विपरीत हैं, दोनों का कोई मिलन नहीं। और वह कहता है, प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या? जलाओ दीया, और अंधेरा मिट जाता है; बुझाओ दीया, और अंधेरा आ जाता है। अंधेरा तब आता है, जब प्रकाश नहीं होता। प्रकाश जब होता है, तब अंधेरा मिट जाता है। तो अरस्तू कहता है कि अंधेरा अंधेरा है, प्रकाश प्रकाश है; दोनों में कोई मेल नहीं। अरस्तू का पूरा सिद्धांत, उसका पूरा का पूरा तर्कशास्त्र एक बुनियाद पर खड़ा है। और वह यह है कि ए इज़ ए, बी इज़ बी; एंड ए कैन नॉट बी बी। अ अ है, ब ब है; और अ कभी ब नहीं हो सकता। लाओत्से का पूरा सिद्धांत अगर हम अरस्तू की भाषा में बनाना चाहें तो वह यह है कि ए इज़ ए एंड आल्सो बी; एंड ए कैन नॉट रिमेन ए विदाउट बिकमिंग बी। अ अ है और ब भी; और अ अ नहीं रह सकता बिना ब बने। अरस्तू का सिद्धांत ठोस धारणा का है; लाओत्से का सिद्धांत तरल, लिक्विड धारणा का है। लाओत्से कहता है, चीजें इतनी तरल हैं कि अपने विपरीत में बह जाती हैं। खाई शिखर बन जाती है, शिखर खाई बन जाता है। कल जहां खाई थी, आज वहां शिखर है। आज जहां शिखर है, कल वहां खाई हो जाएगी। जीवन मृत्यु बन जाती है, मृत्यु से पुनः जीवन आविष्कृत हो जाता है। जवानी बुढ़ापा बनती जाती है, बूढ़े नए बच्चों में जन्म लेते चले जाते हैं। नहीं, अंधेरा अंधेरा नहीं है, प्रकाश प्रकाश नहीं है। अंधेरा प्रकाश का ही धीमा रूप है, और प्रकाश अंधेरे का ही प्रखर रूप है। लाओत्से और अरस्तू-ऐसा निर्णायक स्थिति है जगत में। तो पश्चिम के वैज्ञानिक सोचते हैं इस दिशा में कि अगर कभी लाओत्से को आधार बना कर विज्ञान विकसित हो, तो दूसरा ही डायमेंशन होगा। अभी तो अरस्तू को मान कर विज्ञान विकसित हुआ। पश्चिम का पूरा विज्ञान ग्रीक विचार पर खड़ा है। अरस्तू पिता इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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