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सुकरात सरल व्यक्ति था। उसने सरलता को कभी साधा नहीं था। उसने असरलता के विपरीत किसी सरलता को कभी पकड़ा नहीं था। डायोजनीज जटिल था। उसने सरलता को साधा था। वह अक्सर नग्न रहता, या अगर कभी कपड़े भी पहनता, तो चिथड़ों से जोड़ कर पहनता। अगर कभी नए कपड़े उसे कोई भेंट कर देता, तो उनको पहले काट कर, टुकड़े करवा कर, पुनः जुड़वा कर, तभी उन्हें पहनता। अगर कोई नए कपड़े भेंट कर देता, तो पहले उन्हें गंदे करता, सड़ाता, खराब करता, फिर चिथड़े बनाता, फिर उन्हें जोड़ता। सरलता का अभ्यासी था।
सुकरात को मिलने आया। सुकरात से उसने कहा, तुम्हें इन इतने सुंदर वस्त्रों में देख कर मुझे लगता है, कैसे तुम साधु हो? कैसी तुम्हारी सरलता? सुकरात हंसने लगा और उसने कहा, हो सकता है, सरल मैं न होऊ; हो सकता है, तुम जो कहते हो, वह ठीक है।
डायोजनीज नहीं समझ पाया होगा कि सरल व्यक्ति का यह लक्षण है। तो डायोजनीज ने कहा कि तुम खुद ही स्वीकार करते हो? यही तो मैंने लोगों से कहा था कि सुकरात सरल आदमी नहीं है। तुम खुद भी स्वीकार करते हो, मुहर लगाते हो मेरी बात पर? सुकरात ने कहा, तुम कहते हो, तो इनकार करने का मैं कोई कारण नहीं पाता हं; असरल ही होऊंगा। डायोजनीज खिलखिला कर हंसने लगा।
जब वह उतर रहा था नीचे, तो सुकरात का शिष्य प्लेटो उसे द्वार पर मिला। उसने प्लेटो से कहा कि सुनो, तुम्हारे गुरु ने लोगों के सामने स्वीकार की है यह बात कि वह सरल नहीं है।
प्लेटो ने नीचे से ऊपर तक देखा और कहा कि तुम्हारे फटे चिथड़ों में जो छेद हैं, उनमें से सिवाय अहंकार के और कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता है। तुम कृपा करके नंगे कभी मत होना, नहीं तो सिवाय अहंकार के कुछ भी दिखाई नहीं पड़ेगा। तुम्हारे छेद में से सिर्फ अहंकार ही दिखाई पड़ता है। प्लेटो ने कहा, तुम समझ ही नहीं पाए, यही तो सरल आदमी का लक्षण है कि तुम उससे कहने जाओ कि तुम सरल नहीं हो तो वह स्वीकार कर लेगा। और तुम्हारी यह घोषित सरलता बड़ी असरल है, बहुत जटिल है।
सरलता अगर सचेष्ट है, तो जटिल हो जाती है। और जटिलता भी अगर निश्चेष्ट है, तो सरल हो जाती है।
असली सवाल द्वंद्व के बीच चुनाव का नहीं है। जब भी हम दो में से किसी एक को चुनते हैं, तो बड़ी मजे की बात यह है, कि उससे विपरीत तत्काल मौजूद हो जाता है। अगर हमने अहिंसा साधी, तो हमारे भीतर हिंसा का तत्व तत्काल मौजूद हो जाता है। इसलिए जो भी अहिंसा साधेगा, वह बहुत सूक्ष्म रूप से हिंसक हो जाएगा। उसकी हिंसा को पहचानना मुश्किल होगा, लेकिन वह हिंसक हो जाएगा। जो ब्रह्मचर्य साधेगा, वह बहुत गहरे तल पर कामातुर हो जाएगा। विपरीत के बिना हम कुछ साध ही नहीं सकते। क्योंकि साधने के लिए विपरीत से लड़ना पड़ता है।
और मजे की बात है, जिससे हम लड़ते हैं, उस जैसे ही हम हो जाते हैं। एक बार यह तो हो सकता है कि मित्र का आप पर कोई प्रभाव न पड़े, लेकिन यह नहीं हो सकता कि शत्रु का प्रभाव न पड़े। मित्र से तो आप अप्रभावित भी रह सकते हैं, लेकिन शत्रु से अप्रभावित रहना असंभव है। शत्रु का तो संस्कार पड़ेगा ही। अगर किसी ने तय किया कि मैं हिंसा का शत्रु है, तो वह कितनी ही अहिंसा साध ले, भीतर गहरे में वह हिंसक ही बना रहेगा। और किसी ने अगर निर्णय लिया कि मैं निरहंकारी होकर रहंगा, अहंकार पोंछ डालूंगा, तो डायोजनीज जैसी हालत होगी; चिथड़ों के छेदों से सिवाय अहंकार के कुछ भी दिखाई नहीं पड़ेगा।
लाओत्से कह रहा है, “असरल और सरल एक-दूसरे के भाव की सृष्टि करते हैं।'
अगर आपको यह पता चल गया है कि आप सरल हैं, तो आप जानना कि आप असरल हो चुके हैं। अगर आपको यह खयाल आ गया कि मैं अहिंसक हूं, तो आप जानना कि आपकी हिंसा पुष्ट हो चुकी है। अगर आप कहने लगे कि मैं ब्रह्मचर्य को उपलब्ध हो गया हूं, तो आप जानना कि आप अब्रह्मचर्य की खाई में गिर गए हैं। अगर आपने कहीं घोषणा की कि मैंने ईश्वर को पा लिया है, तो आप पक्का समझ लेना कि आपका हाथ ईश्वर पर से छिटक गया है। ये जो घोषणाएं हैं, ये घोषणाएं हम विपरीत के लिए ही तो कर रहे हैं। और विपरीत से बचा नहीं जा सकता। इसलिए सरलता अघोषित होती है। होती है, जिसमें होती है, उसे भी उसका पता नहीं होता।
इसे ऐसा समझें। जब आप स्वस्थ होते हैं, तो आपको स्वास्थ्य का कोई पता नहीं होता। स्वास्थ्य का पता सिर्फ बीमार आदमी को होता है। बड़ी उलटी लगती है बात, पर ऐसा ही सत्य है। अगर आप बिलकुल स्वस्थ हैं, तो आपको स्वास्थ्य का पता ही नहीं होता। बीमारी खटकती है, तो स्वास्थ्य का पता चलता है। बीमारी दरवाजा ठकठकाती है, तो स्वास्थ्य का पता चलता है। सिर्फ बीमार लोग शरीर के प्रति बोध से भरे होते हैं, स्वस्थ आदमी को शरीर का बोध नहीं होता। इसलिए आयुर्वेद में तो स्वस्थ आदमी का लक्षण है विदेह भाव-दि फीलिंग ऑफ बॉडीलेसनेस। वही आदमी स्वस्थ है, जिसे बॉडी का, शरीर का पता नहीं चलता। अगर पता चलता है, तो वह बीमार है।
असल में, जिस हिस्से में आपको पता चलता है, शरीर का वह हिस्सा बीमार होता है। अगर आपको पता चलता है कि पेट है, तो उसका मतलब पेट बीमार है। आपको पता चलता है कि सिर है, तो उसका अर्थ है कि सिर बीमार है। आपको कभी सिर का पता चला है? हेडेक के बिना हेड का कोई पता नहीं चलता। अगर थोड़ा भी पता चलता है, तो उसी मात्रा में हेडेक मौजूद है। स्वास्थ्य तो सहज स्थिति है; उसका कोई पता नहीं चलता।
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