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तो इसका तो यह अर्थ हुआ कि शत्रु भी आपको बनाते हैं, मित्र ही नहीं। और शत्रुओं के बिना भी आप कम हो जाएंगे, खाली हो
जाएंगे।
लाओत्से कहता है, जगत में विपरीत कुछ भी नहीं है; विपरीत केवल दिखाई पड़ता है।
बीमारी स्वास्थ्य के विपरीत नहीं है। और अगर हम मेडिकल साइंस से पूछें, तो वह भी कहेगी कि बीमारी भी स्वास्थ्य का ही हिस्सा है। बीमार होने के लिए भी स्वस्थ होना जरूरी है। हम स्वस्थ हुए बिना बीमार भी नहीं हो सकते। इसलिए मरा हुआ आदमी बीमार नहीं हो सकता। और इसलिए अक्सर ऐसा हो जाता है कि एक उम्र के बाद मौत भी मुश्किल हो जाती है। क्योंकि मरने के लिए भी जितना स्वास्थ्य चाहिए, अगर उतना भी आदमी के पास न बचा हो, तो बड़ी मुश्किल हो जाती है। अक्सर अस्सी और नब्बे के पार मौत बड़ी सरक सरक कर आती है।
कमान ने कहा है कि अगर आदमी कभी बीमार न पड़ा हो, तो पहली ही बीमारी में समाप्त हो जाता है। क्योंकि वह इतना जीवंत होता है कि पहली बीमारी ही मौत बन सकती है। जो आदमी बहुत बहुत बीमार पड़ा हो, वह इतनी जल्दी नहीं मरता है। मरने के लिए, तत्क्षण मर जाने के लिए, बहुत जीवंत स्वास्थ्य चाहिए।
ये उलटी बातें दिखाई पड़ती हैं। हम तो स्वास्थ्य के विपरीत देखते हैं बीमारी को । लेकिन अगर हम भीतर से भी देखें, तो भी हमें पता चलेगा कि बीमारी स्वास्थ्य की रक्षा का उपाय है। जब आप बीमार होते हैं, तो आपका शरीर स्वास्थ्य की रक्षा के लिए जो कठिन चेष्टा कर रहा है, वही आपकी बीमारी है। एक आदमी को बुखार आ गया है। बुखार कुछ भी नहीं है सिवाय इसके कि शरीर स्वस्थ रहने की इतनी चेष्टा कर रहा है कि उत्तप्त हो गया है, गर्म हो गया है; इतना लड़ रहा है स्वस्थ होने के लिए कि बीमार हो गया है।
अस्तित्व में बीमारी और स्वास्थ्य एक ही चीज के दो हिस्से हैं। और जितने भी विरोध हैं, जितनी भी विपरीतताएं हैं, लाओत्से के • हिसाब से वे कोई भी विपरीत नहीं हैं। अगर कोई आदमी सोचता हो कि अपमानित मैं कभी न होऊं, तो वह ध्यान रखे, वह सम्मानित कभी न हो सकेगा। जिसे सम्मानित होना है, उसे अपमानित होने की तैयारी रखनी पड़ती है। और जो सम्मानित होता है, वह बहुत तरह के अपमान से गुजर कर ही हो पाता है। तो लाओत्से कहता है कि अगर किसी को अपमानित न होना हो, तो उसे एक क करना चाहिए, सम्मानित होने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए। फिर उसे कोई अपमानित न कर सकेगा।
लाओत्से ने कहा है कि मैं सदा वहां बैठा, जहां से मुझे कोई उठा न सकता था। मैं आखिरी जगह बैठा; जहां लोग जूते उतारते थे, वहां मैं बैठा। क्योंकि कोई अगर मुझे उठा कर भी फेंकता, तो उससे और ज्यादा फेंकने को कोई जगह न थी । मेरा कभी कोई अपमान नहीं कर सका है, लाओत्से ने कहा है, क्योंकि मैंने कभी सम्मान नहीं चाहा। सम्मान चाहा कि अपमान आएगा। अपमान की तैयारी न हो, तो सम्मान का कोई उपाय नहीं है। जो ऊंचा होना चाहेगा, वह नीचे गिरेगा। और जिसे नीचे गिरने में डर हो, उसे ऊंचे उठने की कोशिश में नहीं पड़ना चाहिए। और जिसे नीचे गिरने की हिम्मत हो, वह मजे से ऊपर उठ सकता है।
लाओत्से यह कह रहा है कि वह जो विपरीत है, उससे हम बचना चाहते हैं, तो हम भूल में पड़ेंगे, तो हम कठिनाई में पड़ जाएंगे। या तो दोनों से बच जाओ, या दोनों की तैयारी हो । अस्तित्व द्वैत है। जिस अस्तित्व को हम जानते हैं, जहां हम जीते हैं, जो हमारे मन का जगत है, वह द्वैत है। वहां प्रत्येक चीज ऐसे ही सम्हाली गई है, जैसे कोई आर्किटेक्ट किसी दरवाजे पर आर्क बनाता है। असल में, आर्किटेक्ट का नाम ही आर्क बनाने से शुरू हुआ। जो आर्क बना सकता है, वही आर्किटेक्ट है। दरवाजे पर जो आर्क होती है, उसकी कला सिर्फ इतनी है कि हम उसमें विपरीत ईंटें लगा देते हैं। गोल- आधी ईंटें एक तरफ रुख; आधी ईंटें दूसरी तरफ रुख । कुछ और नहीं होता। लेकिन विपरीत ईंटें बड़े से बड़े भवन को सम्हाल लेती हैं ऊपर विपरीत ईंटें एक-दूसरे को दबाती हैं, एक-दूसरे से संघर्षरत हो जाती हैं। उनके संघर्ष में शक्ति उत्पन्न होती है; वही शक्ति पूरे भवन को सम्हाल लेती है।
कोई सोच सकता है कि जब विपरीत ईंटों में इतनी शक्ति है, तो हम एक ही रुख वाली, एक ही तरफ को झुकी हुई ईंटें लगा दें तो और भी अच्छा होगा। लेकिन तब आर्क नहीं बनेगा और भवन उठेगा नहीं। विपरीत ईंटों से बनता है तोरण द्वार। फिर कितनी ही बडी भवन की क्षमता और शक्ति और वजन को उठाया जा सकता है।
पूरे जीवन का द्वार, पूरे जीवन का आधार विपरीत पर है। जहां भी कोई चीज है, तत्काल उसको सम्हालने वाली विपरीत चीज वहां खड़ी है। चाहे स्त्री हो और पुरुष; चाहे ऋण विद्युत हो और धन विद्युत; चाहे आकाश हो और पृथ्वी; चाहे अग्नि हो या जल - चारों तरफ जीवन का सारा आयोजन विपरीत को एक-दूसरे के विपरीत खड़ा करके, सहारा देकर निर्माण का है। विपरीत सहयोगी है। वे जो ईंटें उलटी लगी हैं, दुश्मन नहीं हैं, वे मित्र हैं। उनकी विपरीतता ही आधार है।
इसलिए लाओत्से कुछ उदाहरण लेता है। वह कहता है, सो इट इज़ दैट एक्झिस्टेंस एंड नॉन- एक्झिस्टेंस गिव बर्थ दि वन टु दि आइडिया ऑफ दि अदर । अस्तित्व अनस्तित्व का खयाल देता है; अनस्तित्व अस्तित्व का खयाल देता है। ऐसा समझें, जीवन मृत्यु का खयाल देती है, मृत्यु जीवन का खयाल । न तो हम सोच सकते हैं, अस्तित्व कभी ऐसा होगा जब अनस्तित्व न रह जाए। न हम सोच सकते हैं कि जीवन कभी ऐसा होगा कि मृत्यु न रह जाए। जीवन होगा तो मृत्यु होगी ही । मृत्यु के बिना जीवन के होने का कोई भी उपाय नहीं ।
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