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फिर तीसरी बात यह देखें कि वह वृत्ति अगर आपसे बिलकुल काट दी जाए, तो आपका व्यक्तित्व जैसा पुराना था, वैसा ही रहेगा कि बिलकुल बदल जाएगा। क्योंकि जो आपका चीफ करेक्टर है, उसके बदलने से आपका पूरा व्यक्तित्व दूसरा हो जाएगा। आप सोच ही न पाएंगे कि मैं कैसा होऊंगा, अगर आप उस हिस्से को काट दें।
एक पंद्रह दिन डायरी रखें। और पंद्रह दिन पूरे चौबीस घंटे का हिसाब-किताब रख कर निकालें नतीजा कि क्या है बात। एक पर आप पहुंच जाएंगे, जो प्राइमरी होगा। और तब उस आधारभूत वृत्ति के प्रति सजग हों। और जब भी वह वृत्ति जगे, तब एकांत में उसकी अभिव्यक्ति का दर्शन करें, साक्षी बनें। उसकी कैथार्सिस भी हो जाएगी, उसका रेचन भी होगा, उसकी पहचान भी बढ़ेगी। और आप अपने संबंध में ज्यादा मालिक अनुभव करने लगेंगे।
इस प्रक्रिया से गुजरने के लिए अगर लाओत्से की बात खयाल में रखेंगे, तो और सरलता हो जाएगी। अगर आप क्रोध को सिर्फ इसलिए जानना चाहते हैं कि क्रोध से मैं कैसे मुक्त हो जाऊं, तो आपको जानने में बहुत कठिनाई पड़ेगी। क्योंकि मुक्त होने का जो भाव है, उसमें आपने भेद निर्मित कर लिया। आप मानने लगे कि अक्रोध बहुत अच्छी चीज है, क्रोध बुरी चीज है; काम बुरी चीज है, अकाम अच्छी चीज है; लोभ बुरी चीज है, अलोभ अच्छी चीज है; अगर आपने ऐसा भेद खड़ा किया, तो आपको जानने में बड़ी कठिनाई पड़ेगी। और अगर आप किसी तरह पार भी हुए, तो वह पार होना सप्रेशन ही होगा, दमन ही होगा।
अगर लाओत्से की बात खयाल में रखें, क्रोध से अक्रोध को जोड़ने की कोई भी जरूरत नहीं है। यह भी सोचने की कोई जरूरत नहीं है कि क्रोध बुरा है। अभी तो हमें यही पता नहीं कि क्रोध क्या है। बुरे का निर्णय हम क्यों करें? बुरे का निर्णय उधार है। दूसरे लोग कहते हैं कि क्रोध बुरा है, सुन लिया है। हम भी कहते हैं, क्रोध बुरा है; और किए चले जाते हैं।
नहीं, निर्णय छोड़ें। क्रोध क्या है, इसे ही जानें। अभी जल्दी न करें कि बुरा है, अच्छा है। कौन जाने? बिलकुल निष्पक्ष होकर क्रोध को पता लगाने जाएं। अगर आप निष्पक्ष होकर गए, तो क्रोध अपने भीतर दबी हुई सारी पर्तो को आपके सामने प्रकट कर पाएगा। अगर आप कह कर गए, मान कर कि बुरा है, तो उसके गहरे हिस्से दबे रह जाएंगे, वे आपके सामने प्रकट न होंगे। उनके प्रकट होने के लिए आपके चित्त का बिलकुल ही निष्पक्ष होना जरूरी है। क्योंकि आपने दबाया ही इसलिए है कि बुरा है; इसीलिए तो दबाया। अभी भी मान रहे हैं कि बुरा है, तो दबाए चले जाएंगे। इसलिए एक बड़ी अदभुत और दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटती है कि जो लोग क्रोध से जितना बचना चाहते हैं, उतने क्रोधी हो जाते हैं। क्योंकि बचने के लिए दबाना पड़ता है। और मुक्त होने के लिए जानना जरूरी है। और जानना दबाए हुए चित्त में असंभव है।
निष्पक्ष होकर जाएं। इतना ही जान कर जाएं, आकाश में जैसे बिजली कौंधती है, न बुरी, न भली; बादल गरजते हैं, न बुरे, न भले; ऐसे ही भीतर क्रोध की चमक है, लोभ की धाराएं बहती हैं, कामवासना की ऊर्जा सरकती है; ये सब है। ये शक्तियां हैं, इन्हें देखने जाएं, निष्पक्ष मन से। कोई दुर्भाव लेकर नहीं, कोई निर्णय लेकर नहीं। कभी भी कनक्लूजन से शुरू न करें, नहीं तो आप कनक्लूजन तक कभी न पहुंचेंगे। कभी भी निष्कर्ष से शुरू न करें, निष्कर्ष को अंत में आने दें।
नहीं तो आपकी हालत वैसी हो जाती है, जैसे स्कूल का बच्चा किताब को उलटा कर पहले पीछे देख लेता है, उत्तर क्या है। और एक दफा उत्तर दिख गया तो बहुत मुसीबत हो जाती है।
उत्तर दिखने की जरूरत ही नहीं है। आपको तो प्रोसेस करना चाहिए, प्रक्रिया करनी चाहिए। उत्तर आएगा। उत्तर पहले देख लिया, तो फिर उत्तर लाने की इतनी जल्दी हो जाती है कि प्रक्रिया करने की सुविधा नहीं रहती। और हम सब उत्तर लिए बैठे हैं। हम सबने किताब उलटा कर देख ली है। या हमारे सब बाप-दादे उलटी किताब ही हमारे हाथ में दे देते हैं; कि पहले उत्तर मिल जाता है, पीछे प्रोसेस का पता चलता है। और कभी प्रोसेस का पता ही नहीं चलता, क्योंकि जिनको उत्तर पता है, वे सोचते हैं, जब उत्तर ही पता है तो प्रोसेस का क्या करना?
आपको पता ही है कि क्रोध बुरा है, आपको पता ही है कि कामवासना बुरी है।
अभी आठ दिन पहले एक मित्र आए। उन्होंने कहा कि मैंने आपको अभी गीता में सुना, तो मुझे बहुत अच्छा लगा, इसलिए आया हूं। पहले आपको मैंने कामवासना के ऊपर सुना, तो मुझे इतना बुरा लगा कि मैंने आना छोड़ दिया था। मैंने आना छोड़ दिया था बिलकुल। गीता सुनी तो बहुत अच्छी लगी, तो मैं आया हूं।
मैंने कहा, कहिए, क्या तकलीफ है?
तो तकलीफ यही है कि कामवासना मन को बुरा सताती है। तो मैंने कहा, मैं आपसे बात न करूंगा, नहीं तो आपको फिर बुरा लगेगा। आप गीता पढ़ो और अपना रास्ता निकालो।
कैसे अदभुत लोग हो! मैंने कहा, दरवाजे के बिलकुल बाहर हो जाओ और दुबारा यहां मुझसे कामवासना के संबंध में पूछने मत आना। गीता के संबंध में कुछ पूछना हो तो आना। क्योंकि जो अच्छा लगता है, वही पूछो।
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