________________
Download More Osho Books in Hindi
Download Hindi PDF Books For Free
एक बात खयाल में ले लेनी जरूरी है कि मनुष्य के पास एक ही ऊर्जा है, एक ही इनर्जी है। हम उसके पच्चीस प्रयोग कर सकते हैं। और अगर हम विकृत हो जाएं तो वह हजार धाराओं में बह सकती है। और अगर आपने एक-एक धारा से लड़ने की कोशिश की तो आप पागल हो जाएंगे, क्योंकि आप एक-एक से लड़ते भी रहेंगे और मूल से आपका कभी मुकाबला न होगा।
तो पहली बात तो यह समझ लेनी जरूरी है कि मूल ऊर्जा एक है आदमी के पास। और अगर कोई भी रूपांतरण, कोई भी ट्रांसफार्मेशन करना है, तो मूल ऊर्जा से सीधा संपर्क साधना जरूरी है। उसकी अभिव्यक्तियों से मत उलझिए। सुगमतम मार्ग यह है कि आपके भीतर इन चार में से जो सर्वाधिक प्रबल हो, आप उससे शुरू करिए। अगर आपको लगता है कि क्रोध सर्वाधिक प्रबल है आपके भीतर, तो वह आपका चीफ करेक्टरिस्टिक हुआ।
गुरजिएफ के पास जब भी कोई जाता, तो वह कहता कि पहले तुम्हारी खास बीमारी में पता कर लूं; तुम्हारी खास बीमारी क्या है? तुम्हारा खास लक्षण क्या है?
और हर आदमी का खास लक्षण है। किसी का खास लक्षण लोभ है। किसी का खास लक्षण क्रोध है। किसी का खास लक्षण काम है। किसी का खास लक्षण भय है। किसी का खास लक्षण अहंकार है। लक्षण हैं। अपना खास लक्षण पकड़ लें। और सबसे लड़ने मत जाएं। सबसे लड़ने मत जाएं, खास लक्षण पकड़ लें। वह खास लक्षण आपके मूल स्रोत से जुड़ी हुई सबसे बड़ी धारा है। अगर वह क्रोध है, तो क्रोध को पकड़ लें। अगर वह काम है, तो काम को पकड़ लें। और उस खास लक्षण पर सजगता का प्रयोग करना शुरू करें, और कैथार्सिस का। जैसा मैंने कल क्रोध के लिए आपको कहा कि एक तकिए पर भी प्रयोग एक मित्र कर रहे हैं और बड़े परिणाम हैं।
जो भी आपके भीतर खास लक्षण हो, उस पर दो काम करें। पहला काम तो यह है कि उसकी पूरी सजगता बढ़ाएं। क्योंकि कठिनाई यह है सदा कि जो हमारा खास लक्षण होता है, उसे हम सबसे ज्यादा छिपा कर रखते हैं। जैसे क्रोधी आदमी सबसे ज्यादा अपने क्रोध को छिपा कर रखता है, क्योंकि वह डरा रहता है, कहीं भी निकल न जाए। वह उसको छिपाए रखता है। वह हजार तरह के झूठ खड़े करता है अपने आस-पास, ताकि क्रोध का दूसरों को भी पता न चले, उसको खुद को भी पता न चले। और अगर पता न चले, तो उसे बदला नहीं जा सकता।
तो पहले तो सारे के सारे पर्दे हटा लें और अपनी स्थिति को ठीक समझ लें कि यह मेरी खास लक्षणा है।
दूसरा, इसके साथ सजग होना शुरू करें। जैसे क्रोध आ गया। तो जब क्रोध आता है तो तत्काल हमें खयाल आता है उस आदमी का, जिसने क्रोध दिलवाया; उसका खयाल नहीं आता, जिसे क्रोध आया। अगर आपने मुझे क्रोध दिलवाया, तो मैं आपके चिंतन में पड़ जाता हूं, अपने को बिलकुल भूल जाता हूं; जब कि असली चीज मैं हूं, जिसे क्रोध आया। जिसने क्रोध दिलवाया, उसने तो सिर्फ निमित्त का काम किया। वह तो गया। वह तो जरा सी चिनगारी फेंक गया और मेरी बारुद जल रही है। और उसकी चिनगारी बेकार हो जाती, अगर मेरे पास बारूद न होती। लेकिन मैं अपने जलते हुए बारूद के भवन को नहीं देखता, अब मैं उसकी चिनगारी को देखता हूं। और सोचता हूं कि जितनी आग मुझमें जल रही है, वह आदमी फेंक गया।
वह आदमी नहीं फेंक गया इतनी आग, वह तो चिनगारी ही फेंक गया। यह आग तो मेरी बारूद है, जो जल कर इतना बड़ा रूप ले रही है। यह इतनी आग वह आदमी नहीं फेंक गया। उसको पता भी नहीं होगा। हो सकता है, अनजाने ही फेंक गया हो। उसको खयाल भी न हो कि आप जल रहे हैं घर में।
आप इस सारी आग को उस आदमी पर आरोपित करते हैं। और इसलिए जब आप उस पर नाराज होते हैं, तो उसकी समझ में भी नहीं आता कि इतनी तो कोई बात भी न थी। उसकी भी समझ में नहीं आता, यह इसलिए हमेशा कठिनाई होती है। क्योंकि आप जितनी आरोपित करते हैं, वह आपकी है।
इसलिए वह भी चौंकता है कि इतनी तो कोई बात भी नहीं कही थी आपसे, आप इतने पागल हुए जा रहे हैं! उसकी समझ के बाहर होता है। जिस पर भी आपने कभी क्रोध किया है, आपको पता होगा कि उसकी समझ के बाहर पड़ा है कि इतने क्रोध की तो कोई बात ही न थी। आप पर भी किसी ने क्रोध किया है, तो आप भी यही सोचते हैं कि इतनी तो बात ही न थी। बात जरा सी थी, आप इतना बड़ा कर रहे हैं। लेकिन एक नेचुरल फैलेसी है, एक सहज भ्रांति है, और वह यह है कि जितनी आग मुझमें जलती है, मैं समझता हूं आपने जलाई। आप चिनगारी फेंकते हैं, बारूद मेरे पास तैयार है। वह बारुद पकड़ लेती है आग को। और कितनी बढ़ जाएगी, कहना कठिन है।
और जब भी हमें क्रोध पकड़ता है, तो हमारा ध्यान उस पर होता है, जिसने क्रोध शुरू करवाया है। अगर आप ऐसा ही ध्यान रखेंगे, तो क्रोध के कभी बाहर न हो सकेंगे। जब कोई क्रोध करवाए, तब उसे तत्काल भूल जाइए; और अब इसका स्मरण करिए, जिसको क्रोध हो रहा है। और ध्यान रखिए, जिसने क्रोध करवाया है, उसका आप कितना ही चिंतन करिए, आप उसमें कोई फर्क न करवा पाएंगे। फर्क कुछ भी हो सकता है, तो इसमें हो सकता है जिसे क्रोध हुआ है।
इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज