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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free नसरुद्दीन के जीवन में एक उल्लेख है कि वह अपने छोटे भाई को चांटा मार दिया है। और उसका पिता उससे कहता है, नसरुद्दीन, कल ही तू बाइबिल में पढ़ रहा था कि अपने शत्रु को भी प्रेम करना चाहिए। नसरुद्दीन ने कहा, वह मैं पढ़ रहा था; लेकिन यह मेरा भाई है, मेरा शत्रु नहीं है। मैं बिलकुल मानता हूं। लेकिन यह मेरा शत्रु है ही नहीं। शत्रु की स्वीकृति, लाओत्से कहेगा, निर्णय हो गया। और तुमने यह मान लिया कि इस आदमी ने बुरा किया है। इसलिए इसको बुराई से जवाब नहीं देना है, भलाई से जवाब देना है। जीसस कहते हैं कि बुराई का जवाब भलाई से दो। लेकिन बुराई उसने की है, यह निर्णय तो कर लिया। फिर जवाब तुम भलाई से देते हो, यह नैतिक हुआ, धार्मिक न हुआ। लाओत्से कहेगा, जवाब ही नहीं देते हो, क्योंकि तुम निर्णय ही नहीं लेते हो। तुम कहते हो, ऐसा हुआ, बात समाप्त हो गई। इसके आगे तुम चिंतन ही नहीं चलाते हो, विचार की रेखा ही नहीं उठने देते हो। एक आदमी ने चांटा। मारा, बात समाप्त हो गई, घटना पूरी हो गई। तुम इस घटना से कुछ शुरुआत नहीं करते अपने मन में। कुछ भी, कि इसने बुरा किया कि अच्छा किया, कि दोस्त था, कि मित्र था, कि शत्रु था; कौन है, कौन नहीं है; मैं क्या करूं, क्या न करूं; तुम कोई चिंतन का सूत्रपात नहीं करते हो। यह घटना पूरी हो गई, दरवाजा बंद हो गया, अध्याय समाप्त हुआ। तुम उसे इति कर देते हो; दि एंड कर देते हो। बात समाप्त हो गई। तथ्य पूरा हो गया। तुम उसे खींचते नहीं मन में। तो लाओत्से कहता है, तुम धार्मिक हो। अगर तुमने इतना भी निर्णय किया कि यह बुरा हुआ, अब मैं क्या करूं, तो तुम धर्म से च्युत होते हो। भेद ही धर्म से च्युत हो जाना है। निर्णय ही धर्म से नीचे गिर जाना है। लाओत्से की समस्त चेष्टा, चित्त की जो बंधी हुई आदत है चीजों को दो में तोड़ लेने की, उससे आपको सजग करना है; कि चित्त दो में तोड़ पाए, उसके पहले आप जाग जाना। इसके पहले कि चित्त चीजों को दो करे, आप जाग जाना। वह दो न कर पाए। उसने दो कर लिया, तो फिर आप कुछ भी करो, फिर आप कुछ भी करो, चित्त ने एक बार दो कर लिया तो आप फिर चक्कर के बाहर न हो पाओगे। दो करने के पहले जाग जाना। इसलिए वह सौंदर्य और शुभ, दो बातों को उठाता है। दो ही हमारे बुनियादी भेद हैं। सौंदर्य के भेद पर हमारा सारा एस्थेटिक्स, सौंदर्यशास्त्र खड़ा होता है। और शुभ और अशुभ के भेद पर हमारी ईथिक्स, हमारा पूरा नीति-शास्त्र खड़ा होता है। लाओत्से कहता है, इन दोनों में धर्म नहीं है। इन दोनों के पार! प्रीतिकर-अप्रीतिकर, रुचिकर-अरुचिकर, सुंदर-असुंदर, शुभ-अशुभ, अच्छा-बुरा, श्रेयस्कर-अश्रेयस्कर, ये सारे भेद के पार धर्म है। लाओत्से न कहेगा, क्षमा कर देना धर्म है। लाओत्से कहेगा, तुमने क्षमा की तो तुमने स्वीकार किया कि क्रोध आ गया। नहीं, जब क्रोध उठता हो या क्षमा उठती हो, तब तुम चौंक कर सजग हो जाना कि अब विपरीत का द्वंद्व उठता है। इसलिए लाओत्से को हम क्षमावान न कह सकेंगे। अगर लाओत्से से हम पूछेगे कि तुम सबको क्षमा कर देते हो? तो लाओत्से कहेगा, मैंने कभी किसी पर क्रोध ही नहीं किया। लाओत्से को अगर किसी ने गाली दी है, तो हमें लगेगा कि उसने क्षमा कर दिया, क्योंकि वह कुछ भी नहीं बोला, अपनी राह चला गया। पर हमारी भूल है। लाओत्से से हम पूछेगे तो वह कहेगा, नहीं, मैंने क्रोध ही नहीं किया; क्षमा का तो सवाल ही नहीं उठता। क्षमा तो तभी संभव है, जब क्रोध हो जाए। और जब क्रोध ही हो गया, तो फिर क्या क्षमा होगी? फिर सब लीपापोती है। फिर सब पीछे से इंतजाम है, मलहम-पट्टी है। लाओत्से कहता है, हमने क्रोध ही न किया। इसलिए क्षमा करने की झंझट में हम पड़े ही नहीं। वह तो दूसरा कदम था, जो क्रोध कर लिया होता, तो करना पड़ता। लाओत्से का गहरे से गहरा जोर इस बात पर है कि जहां वंद्व उठे, उसके पहले ही सजग हो जाना और निवंद्व में ठहरना, वंद्व में मत उतरना। प्रश्न: भगवान श्री, जैसे कल आपने कैथार्सिस, फुट पिलो बीटिंग के जरिए क्रोध-निवृत्ति का प्रयोग बताया, वैसे काम, लोभ, मोह और अहंकार की निवृत्ति के लिए कौन से प्रयोग किए जाएं, कृपया इन बातों पर दृष्टि डालिए। काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार! जैसा शब्दों से लगता है, उससे ऐसा प्रतीत होता है, जैसे बहुत सी बीमारियां आदमी के आस-पास हैं। सचाई यह नहीं है। इतनी बीमारियां नहीं हैं, जितने नाम हमें मालूम हैं। बीमारी तो एक ही है। ऊर्जा एक ही है, जो इन सब में प्रकट होती है। अगर काम को आपने दबाया, तो क्रोध बन जाता है। और हम सबने काम को दबाया है, इसलिए सबके भीतर क्रोध कमज्यादा मात्रा में इकट्ठा होता है। अब अगर क्रोध से बचना हो, तो उसे कुछ रूप देना पड़ता है। नहीं तो क्रोध जीने न देगा। तो अगर आप लोभ में क्रोध की शक्ति को रूपांतरित कर सकें तो आप कम क्रोधी हो जाएंगे; आपका क्रोध लोभ में निकलना शुरू हो जाएगा। फिर आप आदमियों की गर्दन कम दबाएंगे, रुपए की गर्दन पर मुट्ठी बांध लेंगे। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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